इनरेम फाउंडेशन द्वारा नीति आयोग के समक्ष प्रस्तुत की गई मिशन की एक झलक
मुख्य बिंदु:
- पानी की खराब गुणवत्ता और उससे पैदा होने वाली बीमारियों से लड़ने के लिये एक राष्ट्रीय कार्यक्रम
-यह सरकार द्वारा वर्तमान में चलाई जा रही योजनाओं और कार्यक्रमों पर आधारित होने के साथ ही उसके सम्मिलन को भी प्रस्तावित करता है
- इन योजनाओं और कार्यक्रमों का सम्मिलन जिला स्तर पर होना सुनिश्चित किया जाना चाहिए
- राष्ट्रीय स्तर पर नीति आयोग जबकि राज्यों में इनके बीच समन्वय की जिम्मेवारी एसआईटीए और डब्लूएसएसओ की होगी
- प्रारम्भ के तीन वर्षों में इनका फोकस- 10 राज्यों, 50 जिलों जिनमें पानी की गुणवत्ता निम्न हो पर होगा जिसे एसडीजी द्वारा निर्धारित लक्ष्य और समयसीमा के अनुसार इन स्थानों से प्राप्त अनुभवों के आधार पर बढ़ाया जा सकेगा
पृष्ठभूमि
फ्लोराइड, आर्सेनिक, नाइट्रेट सहित अन्य हानिकारक रासायनिक और जैविक पदार्थों की अधिकता से ग्रसित पानी के सेवन से लोगों के स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ता है। पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय के अनुसार देश के 593 जिले, जिनके आँकड़े उपलब्ध हैं उनमें से 203 फ्लोराइड, 206 आयरन, 137 क्षारीयता, 109 नाइट्रेट और 35 आर्सेनिक की अधिकता से प्रभावित हैं (डीडीडब्ल्यूएस 2006)। जैविक संक्रमण लोगों में आँत सम्बन्धी दोष पैदा करते हैं जिससे पूरा देश ग्रसित है। इतना ही नहीं यह शिशु मृत्यु के साथ ही माताओं के स्वास्थ्य सहित इनसे सम्बन्धित अन्य समस्याओं के लिये भी जिम्मेवार हैं। दूषित पानी से पैदा होने वाली स्वास्थ्यगत समस्याओं ने एक वृहद स्थानिक रूप ले लिया है। अनुमान के मुताबिक़ देश में 65 मिलियन लोग फ्लोरोसिस (डॉ. ए के सुशीला 2001) वहीं केवल पश्चिम बंगाल में 5 मिलियन लोग (डब्लूएचओ 2002) आर्सेनिकोसिस से ग्रसित हैं। प्राप्त अनुभव के आधार पर यह भी कहा जा रहा है कि इससे कहीं विकराल स्थिति बिहार और असम की है जिसका सही मूल्यांन नहीं किया जा सका है।
फ्लोरोसिस की समस्या भूजल में उपस्थित अधिक फ्लोराइड की मात्रा वाले जल के सेवन के कारण पैदा होती है। इससे ग्रसित लोगों की हड्डियाँ टेढ़ी हो जाती हैं। वहीं दूसरी ओर आर्सेनिकोसिस के कारण त्वचा पर जख्म की समस्या होती है जो बाद में फेफड़े और गॉलब्लाडर के कैंसर का रूप ले लेते हैं। ये समस्याएँ अन्य रोगों को भी जन्म देती हैं जिसमें दिमागी असन्तुलन भी शामिल है। इतना ही नहीं फ्लोरोसिस और आर्सेनिकोसिस से ग्रसित लोगों के बच्चे भी शारीरिक अक्षमता सहित अन्य गम्भीर रोगों से भी प्रभावित हो जाते हैं।
इन रोगों से प्रभावित लोगों की एक अलग पहचान होने के कारण उन्हें समाज की बेरुखी का भी सामना करना पड़ता है जिसकी जड़ इन बीमारियों के बारे लोगों में फैली अज्ञानता होती है। खासकर ग्रामीण भारत में बड़ी तादाद में लोग इन बीमारियों से ग्रसित हैं। इन समस्याओं से निपटने के लिये विभिन्न स्तरों पर कार्य करने की आवश्यकता है। केवल स्वच्छ पानी उपलब्ध कराना काफी नहीं है।
चूँकि, संक्रमित पानी के इस्तेमाल से विभिन्न गम्भीर जानलेवा बीमारियाँ पैदा होती हैं जिससे बच्चे, महिलाएँ और वयस्क सभी प्रभावित होते है इसीलिये इनसे जुड़ी समस्याओं से निपटने के लिये जिम्मेवार सभी मंत्रालयों को मिलकर काम करना होगा। यही समय की माँग भी है और प्रस्तावित “ राष्ट्रीय जल स्वास्थ्य मिशन” (आरजेएसएम) का मूल सार भी है।
आरजेएसएम की रूपरेखा
राष्ट्रीय जल स्वास्थ्य मिशन का उद्देश्य:
भारत में पानी की खराबी से पैदा होने वाली सभी स्वास्थ्यगत समस्याओं का 2025 तक निवारण करने के साथ ही इससे जुड़ी अन्य समस्याओं के निदान के तरीकों की खोज 2022 तक करना।
1. आरजेएसएम सभी मंत्रालयों और संस्थानों को मजबूती देने के साथ ही समस्याओं के निवारण के लिये एक समेकित दूरदर्शिता प्रदान करने का काम करेगा
2. आरजेएसएम पानी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं के सम्बन्ध में हो रहे शोधों को गति प्रदान करने के लिये देश के विभिन्न संस्थानों को प्रोत्साहित करने का कार्य करेगा ताकि प्राप्त जानकारियों का प्रसार हो
3. इस कार्यक्रम का झुकाव वार्षिक और निश्चित समयान्तराल पर किये जाने वाले सैंपल सर्वे से प्राप्त आँकड़ों के आधार पर समस्याओं को ढूँढने पर भी होगा
4. आरजेएसएम सामुदायिक सहभागिता के सिद्धान्त पर कार्य करेगा ताकि विभिन्न स्तरों पर इस कार्यक्रम से ज्यादा-से-ज्यादा संस्थाओं और विभागों को जोड़ा जा सके
आरजेएसएम का कार्यान्वयन जिला स्तर पर होगा ताकि सभी विभागों को इससे जोड़ा जा सके। राज्य स्तर पर स्थापित समन्वय इकाइयों की स्थापना की जा सकती है जो सभी विभागों को एक पटल पर लाने का काम करेंगी। वहीं, राष्ट्रीय स्तर पर इसके कार्यान्वयन की जिम्मेवारी नीति आयोग की होगी जो समन्वय और निगरानी के तरीके निर्धारित करेगी।
आरजेएसएम के लिये मौजूद अवसर
हम ऐसा महसूस करते हैं कि विभिन्न मंत्रालयों द्वारा चलाई जा रही मौजूदा योजनाएँ और कार्यक्रम आरजेएसएम की शुरुआत के लिये अच्छा अवसर प्रदान करेंगी।
सारणी-1 में वर्तमान में जारी योजनाओं सहित भविष्य में शुरू की जाने वाली योजनाओं का व्योरा दिया गया है। यह विस्तृत विवरण न होकर वर्तमान योजनाओं से जुड़ी सम्भावनाओं को दर्शाता है। ये योजनाएँ फ्लोराइड और आर्सेनिक से जुड़ी समस्याओं को समाप्त करने करने में मददगार साबित हो सकती हैं। इतना ही नहीं मौजूदा योजनाएँ बढ़े हुए संसाधनों के साथ नई समस्याओं का भी हल ढूँढने में कारगर साबित हो सकती हैं। साथ ही आईसीएआर, आईसीएमआर, सीएसआईआर और आईआईटी जैसे संस्थानों को भी शोध के क्षेत्र में और भी ज्यादा सक्रिय होने की जरुरत है ताकि आरजेएसएम का कार्यान्वयन को बेहतर-से-बेहतर किया जा सके।
मौजूदा कार्यक्रम जो आरजेएसएम के सहायतार्थ हो सकते हैं
सीरियल नंबर |
मंत्रालय |
कार्यक्रम |
प्रसांगिकता |
1. |
पेयजल एवं स्वच्छता मंत्रालय |
नेशनल वाटर क्वालिटी सब मिशन |
फ्लोराइड और आर्सेनिक से प्रभावित बसावट |
2. |
स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्रालय |
नेशनल प्रोग्राम फॉर प्रिवेंशन एंड कंट्रोल ऑफ फ्लोरोसिस |
फ्लोरोसिस की समस्या को खोजने के साथ ही उसका हल ढूँढना |
3. |
आईसीडीएस एवं महिला और बाल विकास मंत्रालय |
पोषण सहित पानी की गुणवत्ता और स्वास्थ्य से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण समस्याओं की देख-रेख |
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4. |
नीति आयोग |
जिलों में आकांक्षापूर्ण कार्यक्रम
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जिलों में पीने के पानी की व्यवस्था सुनिश्चित करना |
आरजेएसएम के कार्यान्वयन को सुनिश्चित करने के लिये नीति आयोग के अधीन प्रोजेक्ट मैनेजमेंट यूनिट (पीएमयू) के गठन किया जा सकता है। नीति आयोग के अधीन आरजेएसएम के लिये एक एडवाइजरी काउंसिल/कमिटी का गठन भी किया जाना चाहिए। इसके अलावा सभी राज्यों में पीएमयू के अन्तर्गत स्टेट इनोवेशन एंड ट्रांसफॉर्मेशन आयोग (एसआईटीए) और वाटर सप्लाई एंड सेनीटेशन आर्गेनाईजेशन (डब्ल्यूएसएसओ) अथवा इस मिशन को कार्यान्वित करने में सक्षम किसी अन्य बॉडी का गठन किया जाना चाहिए।
जिला और आरजेएसएम
आरजेएसएम, जिलों को कार्यक्रम के कार्यान्वयन और सभी विभागों के बीच समन्वय बनाने की एक इकाई के रूप में प्रस्तावित करता है। इस पहल की वजह भारत के छह राज्यों- राजस्थान (दुर्गापुर), तेलंगाना (नलगोंडा), ओड़िशा (बालासोर), कर्नाटक (चिकबल्लापुर), बिहार (बक्सर, भागलपुर), असम (जोरहाट, नलबारी, ग्रामीण कामरूप, कारबी अंग्लोंग, होजाइ और नागांव) में फ्लोराइड और आर्सेनिक की समस्या को जिला स्तरीय विभागों के बीच समन्वय के माध्यम से ठीक किया जाना है। असम में डब्ल्यूएसएसओ ने राज्य के चार जिलों में फ्लोराइड मिटिगेशन प्रोग्राम के लिये समन्वय के सिद्धान्त को ही अपनाया है। इनरेम फाउंडेशन फॉर फ्लोराइड और saciWATERs फॉर आर्सेनिक नामक दो संस्थाएँ राज्य और जिलों के प्रशासन के साथ समन्वय बनाकर पीने के पानी को फ्लोराइड और आर्सेनिक मुक्त करने के हेतु काम कर रही हैं। यूनिसेफ, राजस्थान भी इस कार्यक्रम में सहभागी है। राजस्थान के दुर्गापुर से शुरू हुआ यह अभियान पूरे राज्य में इंटीग्रेटेड फ्लूरोसिस मिटिगेशन (आईएफएम) की बुनियाद रखने वाला है।
जिला स्तर पर आरजेएसएम की पहल के फायदे
क. यह स्थानिक रूप से उत्पन्न होने वाली समस्याओं के निदान के साथ ही उनसे सम्बन्धित योजनाएँ तैयार करने में सक्षम है
ख. जिलाधिकारी की देख-रेख में इस मिशन को एक लोकल लीडरशिप मिलती है जो बहुत ही महत्त्वपूर्ण है
ग. विभागों और हितधारकों के बीच समन्वय इस कार्यक्रम से जुड़ी समस्याओं और उनकी गम्भीरता को साझा करके भी स्थापित किया जा सकता है
घ. आरजेएसएम जैसे राष्ट्रीय स्तर के कार्यक्रम के कार्यान्वयन लिये जिले सही घटक हैं
आरजेएसएम के आगे
इस मिशन को भारत सरकार के प्रमुख कार्यक्रम में शामिल किये जाने और नीति आयोग द्वारा सम्पोषित किये जाने के लिये यह जरुरी है कि इसके उद्देश्य, कार्यान्वयन और समन्वय से जुड़ी प्रणाली निर्धारित कर ली जाये। इसके लिये देश के 10 राज्यों के 50 सबसे प्रभावित जिलों पर आधारित तीन वर्षों की अवधि वाला एक कार्यक्रम शुरू किया जा सकता है। और इससे प्राप्त अनुभव के आधार पर पूरे देश में इसकी शुरुआत की जा सकती है। इसके लिये एक सलाहकार पार्षद का भी गठन किया जा सकता है जिसमें वरिष्ठ प्रशासक, शिक्षाविद, सामजिक विशेषज्ञ, तकनीकीविद आदि को शामिल हो सकते हैं। इस सलाहकार पार्षद के सदस्य ही आरजेएसएम के गठन और और उसके कार्यान्वयन सम्बन्धित मसौदे को तैयार करने के लिये जिम्मेवार होंगे। यह कहना गलत नहीं होगा कि “राष्ट्रीय जल स्वास्थ्य मिशन” के गठन का यही उचित अवसर है जिसे बाधित नहीं किया जाना चाहिए।
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