उत्तराखंड

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जंगल का विनाशक बना आय का साधन
Posted on 15 Sep, 2011 10:52 AM

कुछ अध्ययनों में यह भी सिद्ध हुआ है कि पिरूल में कुछ ‘फाइटोटाक्सिन्स’ नामक हानिकारक रसायन होते

हिमालय को स्थिर ही रहने दीजिए
Posted on 12 Sep, 2011 01:50 PM

पहले वनों को आग के हवाले झोंका जा रहा है फिर वनीकरण का खेल खेला जा रहा है। पानी का संग्रहण करने

हिमालय का संकट
Posted on 10 Sep, 2011 10:28 AM

पहाड़ी क्षेत्रों में विकास कार्यों में भ्रष्टाचार और प्राकृतिक संपदाओं की लूट को रोकने के लिए स

जल मंगल की रचयिता हैं बसंती बहन
Posted on 08 Sep, 2011 11:09 AM

इस दल की महिलाओं ने उस समय कोसी के जल में खड़े होकर संकल्प लिया- ‘कोसी जीवन दायिनी है, हम इसको

जंगल की सुरक्षा का संकल्प
Posted on 08 Sep, 2011 11:02 AM लक्ष्मी आश्रम की बसंती बहन का नाम कौशानी, अल्मोड़ा, उत्तरांचल में जाना पहचाना है। जाने भी क्यों नहीं जब उनकी प्रेरणा से इस वक़्त कौशानी और अल्मोड़ा के आस-पास के गांवों में लगभग 200 महिला मंगल दल चल रहे हैं। प्रत्येक दल में 10-15 महिलाएं हैं। यह महिलाएं गांव में सुरक्षा प्रहरी की तरह काम करती हैं। हर गलत के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने से लेकर हर सही कार्य के साथ खड़े होने का काम। महिला मंगल दल स्वयं सेवी म
नदियों के किनारे चल पड़ी हैं पदयात्रियों की टोलियाँ
Posted on 08 Sep, 2011 10:46 AM

कोसी का जल प्रवाह यदि रुका तो सबसे पहले रामनगर की निकटवर्ती ग्रामीण बसाहटों पर संकट आयेगा और पी

मानसून में कई रूप दिखते हैं हिमालय के…
Posted on 30 Aug, 2011 04:53 PM

मानसून में हिमालय के कई रूप दिखते हैं। जरा-सा मौसम खुले तो समूचा पहाड़ पॉलिश किया सा लगता है और वहीं पल भर में मौसम ने करवट बदली और प्रकृति का दूसरा भयावह चेहरा सामने दिखता है। तूफानी बारिश के साथ ही चारों ओर फैला कोहरा अजीब सी सिहरन पैदा कर देता है। पर्वतारोहियों की एक टोली जब नंदा खाट की क्लाइंबिंग से वापस लौटी तो उनका रोमांच सुन, मन हिमालय में जाने के लिए बैचेन सा हो उठा। पर्वतारोही योगेश पर

लोहाजंग के पास
हिमालय आत्मा में बस जाता है
Posted on 22 Aug, 2011 06:36 PM

बात उन दिनों की है, जब मैं इंग्लैंड में रह रहा था। उन दिनों लंदन की भीड़भाड़ और भागमभाग के बीच मुझे हिमालय बहुत याद आता था। उन दिनों हिमालय की स्मृति सबसे ज्यादा तीव्र और स्पष्ट थी। मैं उन्हीं नीले-भूरे पहाड़ों के बीच पला-बढ़ा था। हिमालय मेरी धमनियों में बह रहे रक्त के साथ प्रवाहित था और अब हालांकि मैं उससे बहुत दूर पहुंच गया था और बीच में हजारों मील लंबा समंदर, मैदान और रेगिस्तान था, लेकिन हिम

हिमालय का एक सुंदर दृश्य
पत्तियों के पीछे पहाड़ थे
Posted on 22 Aug, 2011 05:02 PM

नींद खुली तो फैक्टरी के सायरन सरीखी वह दूरस्थ गूंज सुनाई दी, लेकिन वह वास्तव में मेरे सिरहाने मौजूद नींबू के दरख्त पर एक झींगुर की मीठी भिनभिनाहट थी। हम खुले में सो रहे थे। इस गांव में जब मैं पहली सुबह जागा था तो छोटी-छोटी चमकीली पत्तियों को देर तक निहारता रहा। पत्तियों के पीछे पहाड़ थे। आकाश के अनंत विस्तार की ओर लंबे-लंबे डग भरता हिमालय। हिंदुस्तान के अतीत की अलसभोर में एक कवि ने कहा था हजारो

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