प्राक्कथन
मुझे याद है कि केवल बीलूंडा बांध के भर जाने से ही लोसल गूजरान के कई कुओं की जलस्तर काफी ऊपर आ गया था। बाद में इस गांव में और भी बहुत काम हुए। इस गांव के कामों के पूरा हो जाने के बाद तो जहाजवाली नदी के पूरे जलागम क्षेत्र में ही जैसे एक जलक्रांति की लहर आ गई। जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके लगभग सभी गांवों में तरुण भारत संघ व गावों द्वारा आपसी सहभागिता से पानी का काम हुआ है। जहाजवाली नदी देवरी से शुरू होती है। देवरी यानी देवभूमि। जब मैं पहली बार देवरी गांव गया, तो हम दोनों एक-दूसरे के लिए अपरिचित जैसे ही थे। उन दिनों देवरी गांव बेपानी होकर चारा-पानी के संकट से जूझ रह था। यहां के बुजुर्ग अपनी-अपनी गाय भैंसों को लेकर चारा-पानी की तलाश में नीचे के गांवों में गए हुए थे। कुछ बुजुर्ग गांव में भी थे। गुवाड़ा के परताराम गुर्जर, लक्ष्मण गुर्जर भगवान सहाय गुर्जर व श्रवण लांगड़ी देवता सरीखे लोग थे। बांकाला के भम्भू, सुरजा और कैलाश गुर्जर सागदी, सरलता और सहजता की मिसाल थे। गांव देवरी के प्रभात पटेल तो जैसे साक्षात् जल-देवता ही थे। प्रभात पटेल को याद करके ही मेरे मानस पटल पर इस इलाके के लोगों की तस्वीर देवताओं जैसी बनी है। इसी गांव के पुजारी जगदीश शर्म, जिन्हें मैं पंडित जी कहता था... मुझे बहुत याद आते हैं। तरुण भारत संघ के सम्पर्क में आकर जगदीश जी एक पुजारी से सामाजिक कार्यकर्ता बन गए थे।
देवरी गांव से जैसे ही नीचे की ओर आते हैं, तो सामने राड़ा गांव आता है। राड़ा गांव के सुरजा, हरजी, घमंडी, श्रीकिशन, भरताराम, दयाराम, रूपनारायण, प्रभात डोई, ज्ञानी देवी व गंगा बहन जैसे लोगों ने प्रारम्भ से ही हमारे साथ मिलकर अपने गांव में पानी का काम शुरू कर दिया था। जगदीश व रामदयाल जैसे तरुणों ने पहले अपने गांव में फिर जहाजवाली नदी के पूरे जलागम में काम किया। बाद में तो इन्होंने संपूर्ण अलवर जिले में जल संग्रहण हेतु चेतना जगाने व ग्राम संगठन बनाने का कार्य किया। सच पूछो तो इन दोनों तरुणों के कारण ही इस क्षेत्र में पानी का हमारा काम आगे बढ़ सका। ये आज भी पानी का काम सतत रूप से कर रहे हैं। जगदीश चम्बल नदी जलागम क्षेत्र में चमन सिंह के साथ आज भी करौली जिले की सपोटरा तहसील में महेश्वरा नदी को पुनर्जीवित करने के काम से जुड़े हैं। रामदयाल पाली जिले के जोजावर गांव के आस-पास के क्षेत्र में वहां की नदी को सजल करने में जुटे हैं।
राड़ा से आगे ही नांडू गांव शुरू होता है। प्रारम्भ में यहां के सतीश शर्मा ने अपने और आस-पास के गांवों में पानी का अद्भुत काम किया। बाद में कुंजबिहारी शर्मा ने इसी काम को आगे बढ़ाया। इसी गांव की निर्मला शर्मा ने पूरे नदी जलागम क्षेत्र में महिला संगठन व जल संरक्षण के काम किए। सुभाष शर्मा ने भी पानी के काम को आगे बढ़ाया। निर्मला व सुभाष अब भी बिना किसी आर्थिक मदद के पानी व जंगल बचाने के काम में सक्रिय हैं।
मैं किस-किस के नाम गिनाऊं? इतने हाथ इस काम में लगे रहे कि गिनती गिनना मुश्किल है। नांडू से आगे आता है गांव-लोसल गूजरान मुझे याद है। अस्सी के दशक के अंत में देवरी में काम शुरू हुआ था, तभी लोसल गुजरान में भी जल-जंगल बचाने के काम की अद्भुत शुरुआत हुई। लक्ष्मण, बुद्धा, रामकरण, हरसहाय, कैलाश, नवरत्न, देवाराम व श्रीराम गुर्जर जैसे कर्मठ लोग काफी भूमिका में थे। इस गांव में शुरू में तो गोवर्धन पंडित ही आए थे, पर बाद में श्रवण शर्मा ने यहां स्कूल चलाने की जिम्मेदारी अपने हाथ ले ली थी। श्रवण ने स्कूल चलाने के अलावा गांव के संगठन पर भी काफी जोर दिया। जल्दी ही यहां पर जल क्रांति के बीज बो उठे थे। लोग अपने गांव का पानी रोकने के लिए जागरुक होने लगे थे। लोसल गूजरान में एक बांध बनाने की बात तय हुई। इस काम में जगदीश व रामदयाल का विशेष सहयोग रहा। फलस्वरूप यहां के बीलकूंडा बांध का काम बड़े जोरों से शुरू हुआ। इस काम में नरेंद्र सिंह ने भी ट्रैक्टर द्वारा बड़ी ही लगन से काम करके गांव के पानी को रोकने में सहयोग किया। इन सभी के संयुक्त प्रयास से ही यह गांव पानीदार बन सका।
इस गांव से मैंने बहुत कुछ सिखा है। मुझे याद है कि केवल बीलूंडा बांध के भर जाने से ही लोसल गूजरान के कई कुओं की जलस्तर काफी ऊपर आ गया था। बाद में इस गांव में और भी बहुत काम हुए। इस गांव के कामों के पूरा हो जाने के बाद तो जहाजवाली नदी के पूरे जलागम क्षेत्र में ही जैसे एक जलक्रांति की लहर आ गई। जहाजवाली नदी जलागम क्षेत्र एक ऐसा क्षेत्र है, जिसके लगभग सभी गांवों में तरुण भारत संघ व गावों द्वारा आपसी सहभागिता से पानी का काम हुआ है।
इस क्षेत्र के समाज ने मुझे जो स्नेह दिया है, मैं उसे भुला नहीं सकता। मुझे स्नेह देने वाले अधिकांश बुजुर्ग तो अब स्वर्ग सिधार गए हैं, पर उनकी यादें आज भी मेरे साथ हैं। परताराम गुर्जर, बोदन पटेल, कानाराम व रामकंवार (गुवाड़ा); कन्हैयालाल व कोशल्या (बांकाला); प्रभात पटेल व रामधन मीणा (देवरी); बख्शी पटेल, हरलाल, हरसहाय, मुरली, छीतर, हरजी, मंगला राम, सुरजा राम, जयनारायण, कन्हैया लाल, घमंडी, श्रीमती संगारी व कौशल्या (राड़ा), पांचू व सरदारा (कैरवाड़ा); गणेश, मुरली, नारायण व बदरी (राड़ी); भगवान सहाय पटेल (नांडू); सरदारा, हरसहाय, ख्यालीराम व देवाराम जागवाला (लोसल गूजरान); भगवान सहाय मिश्र व श्योसहाय पटेल (लोसल ब्राह्मणान); कन्हैयालाल पटेल व सुगम सिंह (घेवर); हरसहाय पटेल, (नायाला) तथा लक्ष्मी नारायण शर्मा, भगवान सहाय शर्मा व सुखचंद गुर्जर (चावा का बास) की यादें मुझे बिना प्रयास स्मरण हैं। इन सभी कामों के शुरुआती दौर में, तालाबों के निर्माण करने में तरुण भारत संघ का किसी न किसी रूप में सक्रिय सहयोग रहा है। पाटन गांव के जगदीश शर्मा (पंडित जी) का जिक्र मैं पहले ही कर चुका हूं। जहाजवाली नदी क्षेत्र की उक्त दिवंगत आत्माओं के पुण्य काम अगली पीढ़ी को भारतीय पानी परंपरा जीवित रखने की प्रेरणा दें। ऐसी मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं।
गुवाड़ा के सुरस्ती देवी, जयराम, मंगलराम व बांकाला के भम्भू, उमराव व भोलाराम; देवरी के बाबूलाल, भगवान सहाय, गिर्राज, छोटेलाल, दास, हरीकिशन, मोहरपाल, सम्पत्ति देवी व किशनी; राड़ा के श्रीकिशन, लक्ष्मण, बीरबल, रूपनारायण, अर्जुन, जयराम, जगदीश, दयाराम, हरफूल, बोबड़ा, नारायणसहाय, प्रभातीलाल, घासी, रामकिशन, उमराव, गोपी, प्रहलाद, कैरवाड़ा के गिर्राज, सियाराम व रामावतार; राड़ी के रामकर्ण, रामप्रसाद व हीरालाल; नांडू के रामेश्वर शर्मा ‘बड़ा पटेल’, शिवदयाल लट्ठमार, मुरलीपुरा के रामदयाल, लीलाधर, श्रीराम व लहरी, लोसल गूजरान के टूंडाराम, धन्नाराम, रामकिशन, रामफूल, लोसल ब्राह्म्णान के अणतराम, मनोहरलाल, किशनलाल, जदगीश वकील व गजानंद; तालाब के कजोड़ प्रजापत, मनोहर पंडा, बिशन सहाय शर्मा व गंगालहरी महंत; धोल्ला राड़ा के रामजी लाल राजोरिया, रमेश राजोरिया व मदन पटेल; लाडूया का गुवाड़ा के श्री किशन मास्टर, रामप्रताप, जगदीश व रामस्वरूप; रूपबास के रामावतार सैनी, प्रभातीलाल सैनी व कन्हैया नया बासी; चावा का बास के मुकेश शर्मा, सुभाष शर्मा, गोकुल गुर्जर व रामजी लाल गुर्जर; धेवर के देबीसहाय, प्रहलाद, मूलचंद गुप्ता, रामावतार गुप्ता, रामजीलाल चौबे, हरीकिशन जांगिड़, मिश्रीलाल बैरवा व कैलाश प्रजापत; भोज्याला के रामकरण व लीलारम; राजड़ोली के नानगराम व हरसहाय गुर्जर; नाभाला के देबी सहाय., छोटेलाल, श्रीराम व रामप्रताप; टहला के हरीश जैमन, रामकृपाल मास्टर व बाला सहाय मास्टर जैसे कई अन्य नाम मेरे जेहन में बस गए हैं। एक नाम जंगलात के अच्छे रेंजर श्री भोजराम सिंह का भी है।
पिछले 25 वर्षों से मुझे व तरुण भारत संघ के मेरे साथियों को इन सभी का बहुत सहयोग व प्रेम मिला है। मल्ला बाबा को भला मैं कैसे भूल सकता हूं, जहाज पुनर्जीवन उनकी भी कामना थी। आप सभी जहाज की भागीरथ शक्तियां रही हैं। आप सभी लोगों के श्रम व सहयोग के कारण ही जहाजवाली नदी पुनर्जिवित हो सकी। आप सभी लोग तरुण संघ को अपना ही सगंठन मानकर आज भी बिना किसी स्वार्थ के सामाजिक कार्य के लिए समय दे रहे हैं। ऐसा विरला समाज हमारे लिए सदैव वंदनीय रहेगा।
श्री जगदीश गुर्जर की लिखी यह पुस्तक जहाज के समाज को समर्पित पुष्प गुच्छ की भांति ही है। इसे जहाज के समाज व पाठकों तक पहुंचाकर तरण भारत संघ सचमुच आनंद महसूस कर रहा है।... साथ ही निश्चिंतता भी एक ऐसा समाज अपनी नदी को फिर कभी नहीं मरने देगा। जहाजवाली हमेशा बहती रहेगी। आभार!
राजेंद्र सिंह
अध्यक्ष, तरुण भारत संघ
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