जहाजवाली का प्रवाह

निवेदन


सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले कहते हैं कि समाज सहयोग नहीं करता। यह सच नहीं है। सच यह है कि अच्छे काम के सहयोग में समाज कभी पीछे नहीं रहता। बशर्ते नीति व नीयत में खोट नहीं हो। आज अलवर के समाज के पसीने से ही जहावाली नदी सदानीरा बन सकी है। इसलिए इसका सब श्रेय यहां के समाज को ही जाता है। इन सब के पराक्रम को एक दस्तावेज के रूप में लिखकर मैं अगली पीढ़ी को सौंपना चाहता हूं; जिससे वे विरासत में मिले इस पुण्य को आगे बढ़ा सकें। मेरी जवानी का बहुत सारा समय जहाजवाली नदी क्षेत्र की तमाम जल संरचनाओं के निर्माण में बीता है। इसी काम में मुझे मेरे जन्म लेने की सार्थकता महसूस होती है। इसी काम के लिए मैं तरुण भारत संघ से जुड़ा। हालांकि मुझे पहले से कई कोई समझ नहीं थी कि संस्था क्या है? मैं क्या करूंगा? क्यों करूंगा? ...आदि आदि। मैं तो सामान्य-सा काम मानकर ही इस काम में जुट गया था। काम करते-करते गांव के लोगों से अनुभव मिलता गया। अलग-अलग गांवों में काम करने पर अलग-अलग समस्याएं आती थीं जिन्हें लोग बड़ी सहजता से सुलझा लेते थे। इसे देखकर भी सीखने का अवसर मिला।

फिर तरूण भारत संघ में देश भर के अनेक विद्वान, विचारक, बुद्धिजीवी, समाजसेवी, पर्यावरणविद्, एवं वैज्ञानिकों आदि से भी समय-समय पर सम्पर्क होता ही था। प्रेरक व मार्गदर्शक विद्वानों की तो कमी कभी रही ही नहीं। बहुत सारे संघर्ष, आंदोलन व राष्ट्र निर्माण के कार्यों में शामिल रहने का भी अवसर मिलता रहा। समाज के काम में अंतरात्मा से ओत-प्रोत होकर गुवाड़ा से लेकर टहला तक...सभी गांवों में कार्य करते रहने में मेरी आयु का कितना भाग बीत गया! कभी ध्यान ही नहीं आया। यह सब संयोग ही तो है।

इस कार्य में शामिल रहते हुए लगता है कि लोकतंत्र की भावना के अनुरूप मैं देश की खुशहाली में अपना योगदान दे रहा हूं। मैं अनुभव से कहता हूं। यह एक सिद्धांत की तरह है। जहां चरवाहा, किसान, पुजारी, व्यापारी कामगार...सभी एक चौपाल पर बैठकर अपने गांव के हित का रास्ता खोजते हैं...वहां लाभ न हो, ऐसा कभी हो ही हीं सकता। मेरी जिंदगी में कभी ऐसा अवसर नहीं आया; जब समस्या आई हो और समाधान न हुआ हो।

संस्था को अबाध गति से गतिमान रखने वाले श्री राजेंद्र सिंह जी भाईसाहब के साथ मेरे जीवन के बीते क्षण मेरे मन-मानस में एक चलचित्र की भांति अंकित हैं। भाईसाहब के मार्गदर्शन में ही मैंने अलवर की कई नदियों के जलागम में पानी का काम करने हेतु लोगों को जोड़ने का काम किया है। इससे मेरे जीवन की कुशलता भी बढ़ी है।

मैं हमेशा चाहूंगा कि जहाजवाली नदी की माला बनी रहे। इसके जलागमक्षेत्र में बने तालाब इसके मोती बन इसे समृद्ध करते रहें। हमें हमेशा इनका संरक्षण व संवर्द्धन करना होगा। आवश्यकतानुसार नए-नए जोहड़ों का निर्माण भी करते रहना होगा। जहाजवाली नदी क्षेत्र में मेरे साथ सक्रिय लोगों का एक समूह था। इसमें गोवर्धनजी शर्मा, श्रवणजी शर्मा, गोपाल सिंह जी, जगदीश पंडित जी, रामदयाल गुर्जर व सतीश शर्मा जी प्रमुख थे। ये ऐसे साथी रहे, जो किसी भी मोर्चे पर अपने लायक काम में कभी पीछे नहीं रहे। प्रातः चार बजे से रात बारह बजे तक काम करते रहने पर भी इन्हें थकान नहीं होती थी। सचमुच! इसमें आनंद ही आता था। गांव के लोग आज भी हमें बहुत स्नेह देते हैं। मुझे गर्व होता है कि आज भी हमारे समाज में सेवाभाव, पारदर्शिता और प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण की समृद्धि मौजूद है।

सरकारी योजनाओं का क्रियान्वयन करने वाले कहते हैं कि समाज सहयोग नहीं करता। यह सच नहीं है। सच यह है कि अच्छे काम के सहयोग में समाज कभी पीछे नहीं रहता। बशर्ते नीति व नीयत में खोट नहीं हो। आज अलवर के समाज के पसीने से ही जहावाली नदी सदानीरा बन सकी है। इसलिए इसका सब श्रेय यहां के समाज को ही जाता है। इन सब के पराक्रम को एक दस्तावेज के रूप में लिखकर मैं अगली पीढ़ी को सौंपना चाहता हूं; जिससे वे विरासत में मिले इस पुण्य को आगे बढ़ा सकें।

अग्रज सदृश श्री राजेंद्र सिंह जी ने प्रेरणा दी। मेरे प्रिय व आदरणीय श्री गोपाल सिंह जी ने बार-बार पकड़कर मुझसे यह पुस्तक लिखवाई। जहां मैं रुका, वहां लिखने में सहयोग व सलाह दी। सामग्री संकलन में जहाजवाली नदी क्षेत्र के गांवों में बसे विद्वज्जनों के साथ-साथ सर्वश्री श्रवण शर्मा, रामदयाल गुर्जर, भगवान सहाय मीणा, महादेव शर्मा, देवयानी कुलकर्णी और विनोद कुमार का विशेष सहयोग रहा है। इसके अलावा मैं श्री अरुण तिवारी जा की बहुत आभारी हूं, जिन्होंने इस पुस्तक को क्रमबद्ध व विषयानुसार लिखने हेतु मार्गदर्शन किया।

मैं लेखक नहीं हूं। मैनें पहली बार कोई पुस्तक लिखी है। इसमें कितना सफल रहा, यह तो आप ही तय करेंगे। आप सभी की प्रत्किया...टिप्पणियों की प्रतीक्षा रहेगी।

जगदीश गुर्जर
गांव राड़ा(नांडू), राजगढ़ अलवर (राजस्थान)

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