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पटना जिला
बिहार की अपनी योजना हो
Posted on 09 Jan, 2015 02:30 PMदेश के कई हिस्सों से नदियों को निजी हाथों में बेचने की खबरें आ रहीसिर्फ टूटन
Posted on 02 Jan, 2015 04:54 PMमिथिला के उत्तरी सीमांत की तरफ एक ‘नद’ है - बुढ़नद। कथा है कि सांवलअतीत का चेहरा
Posted on 02 Jan, 2015 04:38 PMमॉनसून आने में अभी शायद देर है!लेकिन बिहार की अधिकांश नदियों में मॉनसून की आहटें अभी से सुनाई देने लगी हैं। उन नदियों में भी, जहां साल के अधिकतर दिनों पानी की बजाय रेत भरी रहती है। खासकर, बिहार की वो नदियां, जो अपने पानी के बहाव के लिए तो कम लेकिन अपने किनारे बसे गांवों में बहने वाले लहू की रंगत के लिए ज्यादा विख्यात हैं।गंगा में आग
Posted on 29 Dec, 2014 01:10 PMजब कोई अपने शहर से दूर रहता है, तो अपने शहर को पुकारता है। परंतु इस शीला को क्या हो गया... ‘ओ बारौनी, आमार डाक शोनो रे...’ पटना में एमए करते समय, उसके उसने छात्रावास से एक खत लिखा था - ‘मुंगेर शहर नहीं है। वहां के दिन, शवयात्रा से लौटे लोगों की तरह इतने अधिक उदास और टूटे हुए होते हैं, कि वे और ज्यादा उदास हो ही नहीं सकते... मुंगेर शहर नहीं, एक दार्शनिक है... अकेला, उदास, चुप-चुप और इसे कभी भूला नहीं जा सकता है, कम से कम अपने अस्वीकृत क्षणों में तो नहीं....’मगर उस दिन, शीला अपने शहर को भूल गयी थी। मैं भूल गया था। मुंगेर के तमाम लोग भूल गये थे। ओ बारौनी, आमार डाक शोनो रे... ओ तोइयलो शोधागार। और हर पुकार, प्रतिध्वनि की तरह वापस लौट आयी था। बरौनी, पत्थर का बुत। एक सख्त ऐब्स्ट्रैक्ट चेहरा।
बिहार वन विभाग के आयोजनों में नहीं दिखेंगे बोतलबन्द पानी
Posted on 28 Dec, 2014 12:56 PMजल की शुद्धता के प्रति आज हमें सचेत नहीं किया जा रहा है, भयभीत किया जा रहा है। यह भय हमें एक खत
जहाँ गंगा सफाई न्याय और लोकतन्त्र का मुद्दा
Posted on 27 Dec, 2014 12:41 PMबिहार और झारखण्ड में सबसे अधिक लम्बा प्रवाह मार्ग गंगा का ही है। शामरगंगा में दूब
Posted on 23 Dec, 2014 10:05 AMएक बार गंगा मैया अपने दोनों बाजू बसे गाँव वालों के उत्पात् से तंग आप्लांट लगने के बावजूद बढ़ रहा है फ्लोरोसिस का खतरा- डॉ. अशोक घोष
Posted on 28 Nov, 2014 10:44 AM यह देखकर अच्छा लगता है कि बिहार की राजधानी पटना के अनुग्रह नारायण सिंह कॉलेज में पयार्वरण एवं जल प्रबंधन विभाग भी है। इस विभाग में मिलते हैं डॉ. अशोक कुमार घोष, जो पिछले तेरह-चौहद सालों से बिहार के विभिन्न इलाकों में पेयजल में मौजूद रासायनिक तत्वों और उनकी वजह से यहां के लोगों को होने वाली परेशानियों पर लगातार न सिर्फ शोध कर रहे हैं, बल्कि लोगों को जागरूक कर रहे हैं और इस समस्या का बेहतर समाधान निकालने की दिशा में भी अग्रसर हैं।
राज्य की गंगा पट्टी के इर्द-गिर्द बसे इलाकों में पानी में आर्सेनिक की उपलब्धता और आम लोगों पर पड़ने वाले इसके असर पर इन्होंने सफलतापूर्वक सरकार और आमजन का ध्यान आकृष्ट कराया है। पिछले तीन-चार साल से वे पानी में मौजूद एक अन्य खतरनाक रसायन फ्लोराइड की मौजूदगी और उसके कुप्रभावों पर काम कर रहे हैं। उनके प्रयासों का नतीजा है कि बिहार की सरकार भी इन मसलों पर काम करने की दिशा में सक्रिय हुई है और पूरे राज्य के जलस्रोतों का परीक्षण कराया गया है।
बिहार के आठ जिलों का पानी ही पीने लायक
Posted on 22 Nov, 2014 02:58 PM 38 जिलों वाले बिहार राज्य के आठ जिलों का पानी ही प्राकृतिक रूप से पीने लायक है, शेष 30 जिलों के इलाके आर्सेनिक, फ्लोराइड और आयरन से प्रभावित हैं। इन्हें बिना स्वच्छ किए नहीं पिया जा सकता। बिहार सरकार के लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग ने राज्य के 2,70,318 जल स्रोतों के पानी का परीक्षण कराया है।
इस परीक्षण के बाद ये आंकड़े सामने आए हैं। इन आंकड़ों के मुताबिक बिहार के उत्तर-पूर्वी भाग के 9 जिले के पानी में आयरन की अधिक मात्रा पाई गई है, जबकि गंगा के दोनों किनारे बसे 13 जिलों में आर्सेनिक की मात्रा और दक्षिणी बिहार के 11 जिलों में फ्लोराइड की अधिकता पाई गई है। सिर्फ पश्चिमोत्तर बिहार के आठ जिले ऐसे हैं जहां इनमें से किसी खनिज की अधिकता नहीं है। पानी प्राकृतिक रूप से पीने लायक है।