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लद्दाख
पाइप से 24X7 पानी की आपूर्ति दुनिया के शीर्ष पर पहुंची
Posted on 12 Nov, 2021 05:13 PMदेश का एक छोटा सा शहर लेह जो उत्तरी हिमालय में चीन की सीमा से सटे 11,562 फीट की ऊंचाई पर स्थित है, जो ऊंचे पहाड़ों, रंग-बिरंगे मठों और अपरिवर्तनशील चिनार का पर्यटन स्थल होने के बावजूद बेहद निर्मम है। अधिकांश लद्दाख क्षेत्र, जहां शहर स्थित है,अक्सर बर्फ से ढका रहता है। हवाएं भी जमा देने वाली है। यहां तक कि मोबाइल नेटवर्क की कनेक्टिविटी भी बेहद मुश्किल से मिल पाती है ।
हिमनद - जानकारी का संकट
Posted on 18 Dec, 2017 02:07 PMभारतीय हिमालय के 9,575 ग्लेशियर में से केवल 25 का ग्राउंड-लेवल डेटा उपलब्ध है।
लद्दाख के वातावरण को बचाने का अनोखा प्रयास
Posted on 12 Jun, 2017 12:16 PMऊँची-ऊँची पहाड़ियों और बर्फ की सफेद चादर से ढका हुआ लद्दाख सुंदर क्षेत्रों में से एक है। यहाँ की खूबसूरत वादियों में रहता है एक अद्भुत जानवर जिसे ‘स्नो-लेपर्ड’ के नाम से जाना जाता है। इसे ‘भूरे भूत’ का नाम भी दिया गया है कारण है इसके पीले और गहरे रंग के फर का होना जिस कारण ये लद्दाख के बर्फ में यूँ सम्मिलित हो जाता है कि पता ही नहीं चलता कि ये कब ऊपर
हिमालय पार का क्षेत्र
Posted on 19 Mar, 2017 04:46 PMभारत के हिमालय पार के क्षेत्र में जम्मू-कश्मीर का लद्दाख का सर्द रेगिस्तान और कारगिल क्षेत्र तथा हिमाचल प्रदेश की लाहौल और स्पीति घाटियाँ आती हैं।
Application of Remote Sensing and Geographic Information System in Groundwater Resource Management: A Case Study from Ladakh, Jammu & Kashmir
Posted on 08 May, 2016 03:59 PMINTRODUCTION
बदल रहा है लद्दाख का पर्यावरण
Posted on 01 Jun, 2012 11:38 AMदेश के चुनिंदा पर्यटन स्थलों में लद्दाख का एक अलग ही स्थान है। दूसरे पर्यटन स्थलों पर लोग जहां केवल प्रकृति की अनुपम सुंदरता के दर्शन करते हैं वहीं लद्दाख में उन्हें प्रकृति के साथ-साथ इंसानी जीवनशैली भी आकर्षित करती है। लद्दाख अपनी अद्भुत संस्कृति, स्वर्णिम इतिहास और शांति के लिए विश्व भर में प्रसिद्ध है। दुनिया भर से लाखों की संख्या में पर्यटक खूबसूरत मठों, स्तूपों और एतिहासिक धरोहरों को देखनलद्दाख में पॉलीबैग के खिलाफ लड़ाई
Posted on 09 Nov, 2011 12:36 PMदेखा जाए तो पर्यावरण को हानि पहुंचाने में यदि कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले धुएं जिम्मेदार हैं तो छोटी-छोटी वस्तुएं भी इसमें अहम भूमिका अदा कर रही है। बल्कि यूं कहें तो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली वस्तुएं भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे का असर विश्व पर्यावरण पर नजर आ रहा है। कहीं बेमौसम बारिष, कहीं अचानक आई बाढ़ तो कहीं अकाल इसी की देन है। ये सारी परेशानियां किसी अन्य ग्रह के वासियों के कारण नहीं बल्कि पृथ्वी पर वास करने वाला सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य के कारण उत्पन्न हुई है। विकास और औद्योगिकीकरण के अंधे दौड़ में पर्यावरण का जमकर विनाश किया गया। हालांकि पर्यावरण के बढ़ते खतरे से अन्य प्राणियों के साथ-साथ स्वंय मनुष्य भी प्रभावित हो रहा है। यही कारण है कि विश्व भर में पर्यावरण को बचाने के लिए कई स्तर पर प्रयास जारी है। देखा जाए तो पर्यावरण को हानि पहुंचाने में यदि कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले धुएं जिम्मेदार हैं तो छोटी-छोटी वस्तुएं भी इसमें अहम भूमिका अदा कर रही है। बल्कि यूं कहें तो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली वस्तुएं भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। !पानी रे पानी तू हर जगह, लेकिन पीने को एक बूंद नहीं
Posted on 02 Nov, 2011 10:01 AMहम स्वंय के द्वारा की गई गलतियों को महसूस करें और दूसरों को इसके प्रति जागरूक करने की कोशिश करें तथा उन्हें प्रोत्साहित करें। हमारे बीच अपने पर्यावरण को बचाने वाला कोई भी न हो उससे बेहतर है कि कम से कम कोई एक व्यक्ति तो ऐसा हो जो इसके बारे में बात करे। इसके लिए काम करे। आधुनिक बनने के लिए आवश्यक नहीं है कि आप अपने जीवन का पारंपरिक तरीका भूल जाएं। सही अर्थों में एक सफल और विकसित समाज वो है जो इन दोनों के बीच एक संतुलन बनाए रखते हुए तरक्की करे।
लेह की सड़कों पर चलते हुए जैसे-जैसे मैं पुरानी बातों को याद करती हूं, तो बचपन की यादें किसी फूल की तरह ताजा हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो जब मैं अपने साथियों के साथ इन हरे-भरे चारागाहों, सुंदर और भव्य इलाकों और हीरे जैसी साफ पहाड़ियों के दामन में शरारतें किया करती थी। गांव के किनारे बहती नदी के शोर में खेलना किसी अद्भुत स्वप्न की तरह प्रतित होता है। अचानक मुझे एहसास हुआ कि मैं जिन चीजों और वातावरण के बीच पली बढ़ी हूं, अब वे पहले जैसे नहीं रह गए हैं। मैदान छोटे हो गए हैं, शहर सजी हुई जरूर है परंतु उसकी सुदंरता खो गई है। बड़ी-बड़ी दुकानों और भीड़भाड़ के बीच संस्कृति को झलकाने वाली इमारतें सिकुड़ कर रह गई हैं। ऐसा लगता है जैसे पूरा वातावरण बदल गया है। यहां तक कि पानी भी वैसा साफ नहीं रहा जैसा मेरी यादों में सुरक्षित था।हिमालय की गोद में छिपा है सस्ती दवाओं का खजाना
Posted on 01 Oct, 2011 10:29 AMविश्व स्वास्थ्य संगठन की एक रिपोर्ट के अनुसार दुनिया की तीन चौथाई आबादी आधुनिक तकनीक से तैयार