देखा जाए तो पर्यावरण को हानि पहुंचाने में यदि कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले धुएं जिम्मेदार हैं तो छोटी-छोटी वस्तुएं भी इसमें अहम भूमिका अदा कर रही है। बल्कि यूं कहें तो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली वस्तुएं भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं।
ग्लोबल वार्मिंग के बढ़ते खतरे का असर विश्व पर्यावरण पर नजर आ रहा है। कहीं बेमौसम बारिष, कहीं अचानक आई बाढ़ तो कहीं अकाल इसी की देन है। ये सारी परेशानियां किसी अन्य ग्रह के वासियों के कारण नहीं बल्कि पृथ्वी पर वास करने वाला सर्वश्रेष्ठ प्राणी मनुष्य के कारण उत्पन्न हुई है। विकास और औद्योगिकीकरण के अंधे दौड़ में पर्यावरण का जमकर विनाश किया गया। हालांकि पर्यावरण के बढ़ते खतरे से अन्य प्राणियों के साथ-साथ स्वंय मनुष्य भी प्रभावित हो रहा है। यही कारण है कि विश्व भर में पर्यावरण को बचाने के लिए कई स्तर पर प्रयास जारी है। देखा जाए तो पर्यावरण को हानि पहुंचाने में यदि कलकारखानों से निकलने वाले जहरीले धुएं जिम्मेदार हैं तो छोटी-छोटी वस्तुएं भी इसमें अहम भूमिका अदा कर रही है। बल्कि यूं कहें तो हमारे रोजमर्रा की जिंदगी में काम आने वाली वस्तुएं भी ग्लोबल वार्मिंग को बढ़ाने में महत्वपूर्ण भूमिका अदा करते हैं। ! इस लिस्ट में पॉलीथीन या पॉलीबैग का भी नाम सबसे उपर रखा जा सकता है।हमारे प्राचीन पहाड़, जंगल, राजमार्ग, शहरों और नदियों को धीरे-धीरे इस पॉलीबैग ने घुट कर रहने के लिए मजबूर कर दिया है। लद्दाख भी इससे अछूता नहीं है। हालांकि देश के अन्य भागों की तरह यहां भी पॉलीबैग के प्रयोग के खिलाफ आवाज उठायी जा रही हैं। इस अभियान में महिलाओं ने भी बढ़चढ़ कर भाग लिया है। वर्ष 1991 में पहली बार महिलाओं ने स्वयंसेवी समूह वुमेंस ऐसोसिएशन ऑफ लद्दाख (वॉल) का गठन किया। जो समाज से जुड़े अपने आत्म कौशल, लेह के विकास तथा पॉलीबैग की बुराई को जड़ से खत्म करने के लिए सामने आये हैं। हालांकि इस कार्य को करने के लिए विशेषज्ञों की टीमें कार्यरत है जिन्होंने इन मुद्वों पर गहराई से शोध किया है, परंतु वे इसके फायदे नहीं उठा पा रहें थे क्योंकि लद्दाख और उसके दूर-दराज वाले क्षेत्र उनके पहुंच से दूर थे। जबकि पॉलीबैग के खिलाफ स्थानीय महिलाओं द्वारा चलायी जा रही एक मुहिम थी, जो साधारण और अनपढ़ किसान हैं तथा वे अपने भरण पोषण के लिए अपनी जमीन पर विभिन्न प्रकार के फसलों को उपजाना चाहते हैं, उन्हे पॉलीथीन के रूप में खेतों को प्रदूशित कर रहा है। पॉलीथीन के बांधों में फंसे रहने से सिंचाई पूर्ण तरीके से नहीं हो पाती है और जल जमाव के कारण प्रदूषित जल पीने से पशु अक्सर बीमार हो जाते हैं और यहां तक की उनकी मृत्यु हो जाती है।
वॉल की पूर्व निदेशक डोलमा तेजरिंग कहती हैं कि शुरूआत में हम इस पर प्रतिबंध नही लगा सकते थे, लेकिन हमलोग उन्हें प्रदूषण के प्रति जागरूक कर सकते थे। हमने लेह शहर के गलियों और सिचाई के लिए नहरों की सफाई कर लोगों का ध्यान इस ओर आकृष्ट करना शुरू किया। समूह ने निर्णय लिया कि इस मुद्वे को एक बड़े मंच के रूप में प्रस्तुत करने की जरूरत पर भी बल दिया जाना चाहिये। वे लद्वाख बौद्ध संघ, लद्वाख मुस्लिम एसोसिएशन और लद्वाख व्यापारी संघ को शामिल कर चर्चा करने पर भी बल देना शुरू किया। जिसके उत्साहजनक परिणाम सामने आए। 1995 में पहली बार लद्वाख में पॉलीबैग के प्रयोग पर पूर्ण प्रतिबंध की मांग शुरू की गई थी। अब धीरे धीरे यह अभियान स्थानीय गैर सरकारी संगठन और जनता द्वारा मिलकर इस मुद्वे को जिला प्रशासन के समक्ष उठाया जा रहा है। यह समाज के भीतर इन प्रयासों के लिए महिलाओं के लिए जीत थी।
अभियान को जटिलता से जारी रखते हुए वे न केवल प्रतिबंध के अधिकारिक घोषणा से संतुष्ट हैं बल्कि समुदाय में लागू करने के लिए स्वयं महिलाओं ने एक बार फिर से कोशिश शुरू कर दी थी। वॉल की एक और पूर्व निदेशक तेसरिंग पुतित के अनुसार इसे और प्रभावी बनाने के लिए गैर सरकारी संगठनो द्वारा कपड़े से बने बैग को व्यापारियों के बीच उपहार की निशानी के रूप में वितरित की जाय। हालांकि इस संबंध में कुछ लोगों का तर्क था कि इससे दुकानदारों को परेशानी होगी और वह इसका विरोध करेंगे। लद्वाख मर्चेंट एसोसिएशन के पूर्व निदेशक रियाज़ अहमद के अनुसार ग्राहको को भी अपने रवैये में धीरे-धीरे परिवर्तन करने की आवश्यकता है। ग्राहकों को खरीददारी के समय कपड़े से बने बैग का इस्तेमाल करने के लिए प्रेरित किए जाने की आवश्यकता है।
वॉल स्वयंसेवक व्यापारियों के उपर पॉलीबैग के प्रयोग पर बाज़ की तरह नजर रखते हैं। इसे रोकने के लिए प्रशासन के साथ लगातार संपर्क भी बनाये हुए हैं। परिणास्वरूप प्रतिबंध की घोषणा के एक माह के अंदर शहर के विभिन्न दुकानों में छापा मारा करीब 25000 पॉलीथीन बैग जब्त किए गए। बढ़ती जागरूकता के साथ रियाज़ अहमद कहते हैं कि अगर इसपर जल्द काबू नहीं पाया जाता तो आने वाले समय में लेह हिमालय का सबसे ज्यादा प्रदूषित स्थानों में एक होता। स्वंयसेवी महिलाओं की यह मुहिम हमलोगों के लिए विनम्र व शक्तिशाली पाठ है। यह पर्यावरण के रक्षा के लिए महत्वपूर्ण मुद्दे हैं, जिसे महिला समूह ने अपने स्तर से पूरा करके दिखाया है। दुनिया के सबसे दूरस्थ क्षेत्रों में एक अंटार्कटिक में भी डिस्पोजल अपशिष्ट पदार्थ के ढ़ेर मिलतें हैं, वहां की परिस्थिति भी संवेदनशील है। जिससे यह क्षेत्र सबसे ज्यादा हानिकारक सिद्ध हो रहा है।
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