स्टाजिंग कुजांग आंग्मो

स्टाजिंग कुजांग आंग्मो
पानी रे पानी तू हर जगह, लेकिन पीने को एक बूंद नहीं
Posted on 02 Nov, 2011 10:01 AM

हम स्वंय के द्वारा की गई गलतियों को महसूस करें और दूसरों को इसके प्रति जागरूक करने की कोशिश करें तथा उन्हें प्रोत्साहित करें। हमारे बीच अपने पर्यावरण को बचाने वाला कोई भी न हो उससे बेहतर है कि कम से कम कोई एक व्यक्ति तो ऐसा हो जो इसके बारे में बात करे। इसके लिए काम करे। आधुनिक बनने के लिए आवश्यक नहीं है कि आप अपने जीवन का पारंपरिक तरीका भूल जाएं। सही अर्थों में एक सफल और विकसित समाज वो है जो इन दोनों के बीच एक संतुलन बनाए रखते हुए तरक्की करे।

लेह की सड़कों पर चलते हुए जैसे-जैसे मैं पुरानी बातों को याद करती हूं, तो बचपन की यादें किसी फूल की तरह ताजा हो जाती हैं। ऐसा लगता है कि जैसे कल की ही बात हो जब मैं अपने साथियों के साथ इन हरे-भरे चारागाहों, सुंदर और भव्य इलाकों और हीरे जैसी साफ पहाड़ियों के दामन में शरारतें किया करती थी। गांव के किनारे बहती नदी के शोर में खेलना किसी अद्भुत स्वप्न की तरह प्रतित होता है। अचानक मुझे एहसास हुआ कि मैं जिन चीजों और वातावरण के बीच पली बढ़ी हूं, अब वे पहले जैसे नहीं रह गए हैं। मैदान छोटे हो गए हैं, शहर सजी हुई जरूर है परंतु उसकी सुदंरता खो गई है। बड़ी-बड़ी दुकानों और भीड़भाड़ के बीच संस्कृति को झलकाने वाली इमारतें सिकुड़ कर रह गई हैं। ऐसा लगता है जैसे पूरा वातावरण बदल गया है। यहां तक कि पानी भी वैसा साफ नहीं रहा जैसा मेरी यादों में सुरक्षित था।
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