कोलकाता जिला

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खेतों से क्रोमियम को दूर भगाएगा बैक्टीरिया
Posted on 15 Mar, 2018 02:01 PM
पश्चिम बंगाल का सुन्दरबन क्षेत्र रिहायश के लिहाज से दुर्गम इलाकों में एक है। यहाँ करीब 40 लाख लोग रहते हैं। पानी से घिरे इस क्षेत्र के लोगों के दरवाजे पर साल भर मुश्किलों का डेरा रहता है। इसके बावजूद मुश्किलों से जूझते हुए जीवन बिताते हैं।
सुन्दरबन
मल से मालामाल करने वाले शख्स थे ध्रुवज्योति घोष
Posted on 13 Mar, 2018 01:54 PM
कोलकाता रोजाना लगभग 75 करोड़ लीटर सीवेज निकालता है। किसानों और मछुआरों के जलस्रोतों में यह मलजल पहुँचता है। पूर्वी कोलकाता वेटलैंड (ईकेडब्ल्यू) परिसर रामसर साइट का हिस्सा है, जहाँ सीवेज की सूर्य के प्रकाश, सूक्ष्मजीव और ऑक्सीजन द्वारा व्यवस्थित रूप से सफाई की जाती है। इससे यह पोषक तत्वों का पावरहाउस बन जाता है जो प्रतिदिन प्रतिदिन 150 टन सब्जियाँ, प्रतिवर्ष 10,500 टन मछली पैदा करता है और 50
डॉ. ध्रुवज्योति घोष
दीपांकर चक्रवर्ती - अपना घर जलाकर उजाला करने वाला शख्स
Posted on 04 Mar, 2018 03:25 PM

श्रद्धांजलि


सन 1983 में केसी साहा ने पश्चिम बंगाल के पानी में जब पहली बार आर्सेनिक की मौजूदगी पर शोध किया था, तो कोई नहीं जानता था कि आखिर यह क्या बला है और क्यों है।

लेकिन, आज पश्चिम बंगाल में आर्सेनिक बहस का मुद्दा है। यहाँ की एक बड़ी आबादी आर्सेनिक की चपेट में है।
दीपांकर चक्रवर्ती
एक अनोखी आर्द्रभूमि बचाने को आतुर इकलौता आदमी
Posted on 20 Feb, 2018 03:41 PM
यह स्टोरी ‘द गार्जियन’ में जब छपी थी, तब ध्रुवज्योति घोष जीवित थे। उनका निधन 1
चला गया ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स का प्रहरी
Posted on 16 Feb, 2018 06:04 PM


विनम्र श्रद्धांजलि- (16 फरवरी 2018), डॉ. ध्रुव ज्योति घोष के जाने से ईस्ट कोलकाता वेटलैंड आज अनाथ हो गया।

डॉ. ध्रुव ज्योति घोेषडॉ. ध्रुव ज्योति घोेषप्रकृति-पर्यावरण को लेकर कुछ लोगों के काम को देखकर अनायास ही यह ख्याल जेहन में कौंध जाता है कि उनका इस धरती पर आने का उद्देश्य ही यही रहा होगा।

पानी को लेकर काम करने वाले अनुपम मिश्र के बारे में ऐसा ही कहा जा सकता है। कोलकाता में रह रहे एक और शख्स के काम को देखकर यही ख्याल आता है। वह शख्स थे डॉ. ध्रुवज्योति घोष।

डॉ. ध्रुव ज्योति घोेष
राष्ट्रीय झील को बचाने के लिये अन्तरराष्ट्रीय मुहिम
Posted on 27 Jul, 2017 12:30 PM
सन 1920 में शहर को विकसित व व्यवस्थित करने के लिये 20 वर्षीय योजना शुरू की गई और इसी के तहत सन 1920 में जंगलों से भरी 192 एकड़ जमीन का अधिग्रहण किया गया। अधिग्रहण का उद्देश्य क्षेत्र को रिहाइशी इलाके में तब्दील करना था। 192 एकड़ में से 73 एकड़ भूखण्ड में झील के निर्माण की योजना बनाई गई। झील के लिये खुदाई से निकली मिट्टी से आसपास के क्षेत्रों को भरा गया और इस तरह झील बनकर तैयार हो गई। उस वक्त इसे ढाकुरिया लेक कहा जाता था। वर्ष 1958 में रवींद्र नाथ टैगोर को श्रद्धांजलि देते हुए इसे रवींद्र सरोवर नाम दिया गया। दक्षिण कोलकाता (पश्चिम बंगाल) में करीब 73 एकड़ में फैली एक राष्ट्रीय झील को बचाने के लिये पर्यावरणविदों व झील प्रेमियों ने अन्तरराष्ट्रीय मुहिम शुरू कर दी है।

झील के आसपास कंक्रीट के जंगल बोये जाने के खिलाफ पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेंज डॉट ओआरजी पर याचिका दी है और इसे बचाने की गुहार लगाई है। देश-विदेश के लोगों ने इस मुहिम से खुद को जोड़ते हुए झील को बचाने की माँग की है।

याचिका देने वाले संगठन लेक लवर्स फोरम से जुड़े पर्यावरण विशेषज्ञ सौमेंद्र मोहन घोष कहते हैं, ‘24 जून को हमने इस प्लेटफॉर्म पर याचिका दायर की थी और अब तक देश-विदेश के 1 हजार से अधिक लोगों ने इस पर हस्ताक्षर कर दिये हैं। इससे जाहिर होता है कि वे झील को लेकर कितने चिन्तित हैं। चेंज डॉट ओआरजी के अलावा हम फेसबुक पर भी मुहिम चला रहे हैं, ताकि सरकार पर चौतरफा दबाव बनाया जा सके।’
खेती व पानी के दोहन ने वेटलैंड्स की खोदी कब्र
Posted on 24 Jun, 2017 01:27 PM
वेटलैंड यानी आर्द्रभूमि न केवल विभिन्न प्रकार के जलीय जंतुओं व प्रवासी पक्षियों का निवास स्थल होता है, बल्कि यह ईको सिस्टम को भी बनाये रखता है।
ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स का अस्तित्व मिटाने की तैयारी
Posted on 27 Apr, 2017 03:17 PM
रोज करीब 250 मिलियन लीटर गंदे पानी का परिशोधन करने वाले व कार्बन को सोखने की अकूत क्षमता रखने वाले ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स पर अतिक्रमण का आक्रमण बढ़ रहा है। यह हमला अगर आने वाले समय में भी जारी रहा, तो एक दिन इसका अस्तित्व ही मिट जायेगा।

चार पर्यावरणविदों द्वारा किये गये एक शोध में खुलासा हुआ है कि वेटलैंड्स (आर्द्रभूमि) का तेजी से अतिक्रमण किया जा रहा है और उस पर मकान बनाये जा रहे हैं।

एक चलता-फिरता बाग
Posted on 16 Mar, 2017 01:40 PM
ऊपर हरी घास से भरा एक छोटा-सा लॉन है। पीछे की तरफ 6 गमलों में आकर्षक पौधे व सामने की तरफ सजावटी पौधों के भरे दो गमले रखे हुए हैं।

42 वर्षीय धनंजय चक्रवर्ती इस छोटे से बाग के बागवान हैं। बड़े जतन से वह रोज इन पौधों व लॉन में पानी डालते हैं और फिर इसे लेकर सड़क पर उतरते हैं।
हरियाली का सन्देश दे रही है सबुज रथ
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