केरल

Term Path Alias

/regions/kerala-1

केरल का सबक
Posted on 09 Sep, 2018 03:47 PM


केरल बाढ़ (फोटो साभार: इण्डियन एक्सप्रेस) केरल की बाढ़ का पहला सबक है कि भूकम्प और बाढ़ चालाक मनुष्यों द्वारा बाँटने और राज करने के लिये ईजाद किये गए विभेद को नहीं मानते। इसका दूसरा सबक यह है कि यदि हम प्रकृति का उत्पीड़न और तय की गई सीमाओं का उल्लंघन करेंगे, तो वह हमसे बदला लेगी।

केरल बाढ़ (फोटो साभार: इण्डियन एक्सप्रेस)
पहाड़ के माथे पर हरा तिलक
Posted on 11 Jul, 2012 10:12 AM

गांव वाले तो कहते थे महालिंग व्यर्थ की मेहनत कर रहा है। लेकिन महालिंग को गांव के लोगों की आलोचना सुनाई तक नहीं देती थी। असफल होने का डर भी उन्हें नहीं लगता था। हां वे चार बार असफल भी रहे। सुरंग बनाई। लेकिन पानी नहीं मिला। मेहनत बेकार चली गई। लेकिन महालिंग ने हार नहीं मानी। वे लोगों से कहते रहे कि एक दिन ऐसा आएगा जब मैं यहीं इसी जगह इतना पानी ले आऊंगा कि यहां हरियाली का वास होगा।

दक्षिण कन्नड़ के किसान महालिंग नाईक पोथी वाली इकाई-दहाई तो नहीं जानते लेकिन उन्हें पता है कि बूंदों की इकाई-दहाई, सैकड़ा-हजार और फिर लाख- करोड़ में कैसे बदल जाती है। 58 साल के अमई महालिंग नाईक स्कूल कभी गए ही नहीं। उनकी शिक्षा-दीक्षा और समझ खेतों में रहते हुए ही बनी और संवरी थी।
महालिंग नाइक का प्रयास सफल हुआ
पानी रे पानी
Posted on 13 Sep, 2010 12:14 PM
सालों पहले दक्षिण भारत जाना हुआ था। वहां जाने का मतलब था, विविध रंग-रूपों छवियों में समुद्र को देखना। लौटी तो स्मृति में केवल समुद्र नहीं था। था तो समुद्र-मूर्ति-कला और अध्यात्म के अद्भुत समंजन को सम्मोहित मन।

सालों के अंतराल के बाद पूछ रहा था- ‘केरल के बैक वाटर्ज गए हो?’

एकदम हां या ना में जवाब देना संभव नहीं था क्योंकि मन में यह तो था कि जरूर समुद्र से संबंधित ही यह जल-प्रसार होगा लेकिन उसकी कोई निश्चित छवि आंखों में नहीं थी। आंखों में तो समुद्र की विविध छवियां आ रही थीं।

हम कावेरी के बेटे-बेटी
Posted on 08 May, 2010 08:40 AM

प्रकृति ने नदियों को बनाते, बहाते समय देश-प्रदेश नहीं देखे थे। लेकिन अब देश-प्रदेश अपनी नदियों के टुकड़े कर रहे हैं। कावेरी का विवाद तो कटुता की सभी सीमाएं पार कर गया है। यह झगड़ा आज का नहीं, सौ बरस पुराना है। लेकिन नया है इस कटु प्रसंग में सख्य, सहयोग और संवाद का प्रयास। इसे बता रहे हैं महादेवन रामस्वामि।

विश्व की सभी महान नदियां मानव-जाति की अनेक सुविख्यात सभ्यताओं की जन्म-भूमि रही हैं। इन नदियों के किनारे उभरी और विकसित हुई इन सभ्यताओं का अस्तित्व बस नदी से जुड़ा रहा है। नदी ने उन्हें दैनिक जीवन की आवश्यकताओं के लिए जल प्रदान किया है। पीने का पानी, निस्तार के लिए पानी, सिंचाई के लिए पानी, पशुओं के लिए पानी, ऊर्जा के लिए पानी क्या नहीं दिया इनने। नदी पर नाव द्वारा प्रयाण करके उन्होंने अपनी आसपास की दुनिया के बारे में जाना और अन्य क्षेत्रों, पास और दूर के समाजों के साथ संबंध बनाया। मौसम व समय के अनुसार बदलती नदी की प्रणाली को आधार बनाकर इन सभ्यताओं ने अपनी जीवन-शैली, अपने रीति-रिवाज, लोक-कथाओं व मान्यताओं को ऐसे सुंदर तरीके से रचाया कि नदी का प्रवाह जीवन के हर काम में
केरल की अथिरापल्ली पनबिजली परियोजना पर ब्रेक
Posted on 07 Jan, 2010 10:39 PM

आखिर वह भी हुआ जो होना चाहिए था। जी हां, केरल में प्रस्तावित अथिरापल्ली पनबिजली परियोजना पर ब्रेक लग गया। केन्द्रीय पर्यावरण एवं वन मंत्रालय ने गत 4 जनवरी 2010 को परियोजना को दी गई मंजूरी वापस लेने की सिफारिश कर दी। साथ ही मंत्रालय ने इस संबंध में केरल राज्य विद्युत बोर्ड से 15 दिनों में अपनी प्रतिक्रिया देने को कहा है। केरल में चालकुडी नदी पर प्रस्तावित इस 163 मेगावाट की पनबिजली परियोजना

हम पी रहे है मीठा जहर
Posted on 08 Oct, 2009 10:26 AM

गंगा के मैदानी इलाकों में बसा गंगाजल को अमृत मानने बाला समाज जल मेंव्याप्त इन हानिकारक तत्वों को लेकर बेहद हताश और चिंतित है। गंगा बेसिनके भूगर्भ में 60 से 200 मीटर तक आर्सेनिक की मात्रा थोडी कम है और 220मीटर के बाद आर्सेनिक की मात्रा सबसे कम पायी जा रही है। विशेषज्ञों केअनुसार गंगा के किनारे बसे पटना के हल्दीछपरा गांव में आर्सेनिक की मात्रा1.8 एमजी/एल है। वैशाली के बिदुपूर में विशेषज्ञों ने पानी की जांच की तोनदी से पांच किमी के दायरे के गांवों में पेयजल में आर्सेनिक की मात्रादेखकर वे दंग रह गये। हैंडपंप से प्राप्त जल में आर्सेनिक की मात्रा 7.5एमजी/एल थी ।

तटवर्तीय मैदानी इलाकों में बसे लोगों के लिए गंगा जीवनरेखा रही है। गंगा ने इलाकों की मिट्टी को सींचकर उपजाऊ बनाया। इन इलाकों में कृषक बस्तियां बसीं। धान की खेती आरंभ हुई। गंगा घाटी और छोटानागपुर पठार के पूर्वी किनारे पर धान उत्पादक गांव बसे। बिहार के 85 प्रतिशत हिस्सों को गंगा दो (1.उत्तरी एवं 2. दक्षिणी) हिस्सों में बांटती है। बिहार के चौसा,(बक्सर) में प्रवेश करने वाली गंगा 12 जिलों के 52 प्रखंडों के गांवो से होकर चार सौ किमी की दूरी तय करती है। गंगा के दोनों किनारों पर बसे गांवों के लोग पेयजल एवं कृषि कार्यों में भूमिगत जल का उपयोग करते है।


गंगा बेसिन में 60 मीटर गहराई तक जल आर्सेनिक से पूरी तरह प्रदूषित हो चुका है। गांव के लोग इसी जल को खेती के काम में भी लाते है जिससे उनके शरीर में भोजन के द्वारा आर्सेनिक की मात्रा शरीर में प्रवेश कर जाती है।

केरल में पंपा नदी घाटी संरक्षण के लिए विशेष प्राधिकरण
Posted on 19 Sep, 2009 04:48 PM

केरल विधानसभा ने पंपा नदी घाटी प्राधिकरण विधेयक को पारित कर दिया है। इस विधेयक के तहत पंपा नदी घाटी एवं उसके जल संसाधनों का संरक्षण किया जाएगा। विधेयक के तहत एक प्राधिकरण बनाया जाएगा, जो पंपा कार्य योजना के मुताबिक नदी के संरक्षण के उद्देश्यों को हासिल करने के लिए अलग-अलग परियोजनाएं चलाने वाला वैधानिक निकाय होगा। नदी और इसकी घाटी को अलग ईकाई माना जाएगा। नदी में जल की गुणवत्ता, प्रदूषण रोकना आदि

पानी के पादरी
Posted on 07 Dec, 2008 07:45 AM

यह पूरा इलाका खारे पानी से भरा है। कुदायूं (केरल) के पास राष्ट्रीय राजमार्ग १७ के आसपास का यह इलाका मीठे पानी के लिए मुश्किल जगह है। लेकिन ७० साल के फादर बेंजामिन डीसूजा ने ऐसा अभिनव प्रयोग किया है कि सबके लिए मीठे पानी तक पहुंच का रास्ता खुल गया है। चर्च के अपने पास चार एकड़ जमीन है। फादर बेंजामिन ने तय किया कि वे इस भूभाग पर बरसनेवाली हर बूंद को रोकेंगे और इस खारे पानी के इलाके में कुओं को

फादर बैंजामिन
×