हरदा ज़िला

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बाँधों में लबालब पानी, फिर भी खरीदी बिजली
Posted on 15 Mar, 2017 04:35 PM
एक बाँध परियोजना को पूरा होने में कितने लोगों को विस्थापित क
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नर्मदा घाटी - लड़ाई तो जीती मगर युद्ध जारी है
Posted on 10 Feb, 2017 10:34 AM
मैदान ही में नहीं होता युद्ध
जगहें बदलती रहतीं
कभी -कभी उफ तक नहीं होती वहाँ
जहाँ घमासान जारी रहता!

चन्द्रकान्त देवताले
इंदिरा सागर बांध प्रभावित करेंगे जल सत्याग्रह
Posted on 01 Sep, 2013 03:08 PM मध्य प्रदेश में इंदिरा सागर बांध के जलाशय में पानी का भराव 260 मीटर से अधिक नहीं करने समेत अन्य मांगों को लेकर नर्मदा बचाओ आंदोलन (एनबीए) ने बांध क्षेत्र के गांव बड़खालिया (खंडवा), उंवा (हरदा) व मेल पिपलिया (देवास) में एक सितंबर से जल सत्याग्रह करने की चेतावनी दी है।
विस्थापन, पुनर्वास में गुम शिक्षा का अधिकार
Posted on 11 Dec, 2012 12:40 PM निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून को लागू हुए लगभग दो वर्ष पूर्ण ह
आखिरी लड़ाई की जद्दोजहद
Posted on 28 Sep, 2012 04:49 PM

बांध और विकास योजनाओं की नींव में पत्थर नहीं डले, बल्कि आदिवासियों और ग्रामीणों की हड्डियां डाली गई। आज तक भारत

मगर सत्ताधीशों को शर्म नहीं आती
Posted on 27 Sep, 2012 04:35 PM

मध्य प्रदेश सरकार कहती है हमने शिकायत निवारण केंद्र बना रखा है। उसमें आइए और अपनी शिकायत करिए। आंदोलन करने की को

जल सत्याग्रह: न्याय का आग्रह
Posted on 25 Sep, 2012 03:09 PM देश में चल रही बड़ी परियोजनाओं का दो कारणों से जनविरोध है। पहला ज्यादातर परियोजनाएं गांव, जंगल और नदियों, समुद्र के आसपास हैं और उन पर लोगों की आजीविका ही नहीं बल्कि उनकी सांस्कृतिक और सामाजिक पहचान भी निर्भर करती है इसलिए उन परियोजनाओं से प्रभावित होने वाले लोग प्राकृतिक संसाधनों की सुरक्षा चाहते हैं। वे एक एकड़ जमीन के बदले 10 लाख रुपए नहीं, बस उतनी ही जमीन चाहते हैं। वे एक सम्मानजनक पुनर्वास चाहते हैं। दूसरा, लोग यानी समाज जानता है कि यदि जंगल खत्म हो गए, नदियां सूख गईं और हवा जहरीली हो गई तो मानव सभ्यता खत्म हो जाएगी। मध्यप्रदेश के खंडवा जिले में स्थित घोघलगांव और खरदना गांव में 200 लोग 17 दिनों तक नर्मदा नदी में ठुड्डी तक भरे पानी में खड़े रहे। वे न तो कोई विश्व रिकार्ड बनाना चाहते थे और ना ही उन्हें अखबार में अपना चित्र छपवाना था। बल्कि विकास के नाम पर उनकी जलसमाधि दी जा रही थी, जिसके विरोध में उन्होंने जल सत्याग्रह शुरू किया। उनका कहना था कि यदि यह बांध देश के विकास के लिए बना है तो इससे उनके जीवन के अधिकार को क्यों खत्म किया जा रहा है। वैसे भी जमीन, पानी और प्राकृतिक संसाधन ही उनके जीवन के अधिकार के आधार हैं। मध्यप्रदेश में दो बड़े बांधों - इंदिरा सागर और ओंकारेश्वर से बिजली बनती है और इनसे थोड़ी बहुत सिंचाई भी होती है। इन बांधों के दायरे के बाहर की दुनिया को इन बांधों से बिजली मिलती है और उनके घर इससे रोशन होते हैं। रेलगाड़ियां भी चलती हैं। नए भारत के शहरों को, उन उद्योगों को, जो रोजगार खाते हैं, मॉल्स और हवाई अड्डों को भी यही की बिजली रोशन करती है।
पुलिस दमन द्वारा 245 जल सत्याग्रही गिरफ्तार एवं रिहा
Posted on 14 Sep, 2012 04:49 PM 10 सितम्बर को राज्य सरकार ने ओंकारेश्वर बांध में जारी जल सत्याग्रह की मांगों को स्वीकार करते हुए ओंकारेश्वर बांध में पानी का स्तर 189 मीटर तक करने का निर्णय लिया एवं प्रभावितों को जमीन के बदले जमीन देने की घोषणा की है। परन्तु सरकार द्वारा इंदिरा सागर बांध में पानी कम करने की मांग न स्वीकार करने के कारण इंदिरा सागर परियोजना के डूब में गांव खरदना में जल सत्याग्रह जारी रहा। इंदिरा सागर परियोजना के डूब के ग्राम खरदना में गत 15 दिन से जारी जल सत्याग्रह पर सैकड़ों पुलिसकर्मियों द्वारा दमनात्मक कार्यवाही करते हुए 245 सत्याग्रहियों को गिरफ्तार कर लिया गया, जिसमें 104 महिलाएं और 141 पुरुष शामिल हैं, इनमें नर्मदा आंदोलन की वरिष्ठ कार्यकर्ता सुश्री चित्तरूपा पालित भी शामिल हैं। बाद में बढ़ते जनआक्रोश के चलते शाम को इन्हें रिहा कर दिया गया। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने सरकार के इस दमन की निंदा की। नर्मदा बचाओ आंदोलन ने विज्ञप्ति में कहा है कि आंदोलन मध्यप्रदेश उच्च न्यायालय में अवमानना याचिका दायर कर बांध का जलस्तर 260 मी. तक लाने की मांग करेगा।
पानी में गलते विस्थापितों की जीत
Posted on 14 Sep, 2012 04:26 PM सुनो/वर्षों बाद
अनहद नाद/दिशाओं में हो रहा है
शिराओं से बज रही है/एक भूली याद वर्षों बाद ......।


ओंकारेश्वर और इंदिरा सागर बांध के संबंध में वर्ष 1989 में नर्मदा पंचाट के फैसले में यह स्पष्ट कर गया था कि हर भू-धारक विस्थापित परिवार को जमीन के बदले जमीन एवं न्यूनतम 5 एकड़ कृषि योग्य सिंचित भूमि का अधिकार दिया जायेगा। इसके बावजूद पिछले 25 सालों में मध्यप्रदेश सरकार ने एक भी विस्थापित को आज तक जमीन नहीं दी है। लेकिन 17 दिन के जल सत्याग्रह से सत्याग्रहियों ने सरकार को नाकों चने तो चबवा दिए हैं।

दुष्यंत कुमार की ये पंक्तियां 10 सितम्बर 2012 को तब चरितार्थ हो गई जबकि मध्य प्रदेश सरकार ने खंडवा जिले के घोघलगांव में पिछले 17 दिनों से जारी जल सत्याग्रह के परिणामस्वरूप सत्याग्रहियों की मांगे मान लीं तथा विस्थापितों को जमीन के बदले जमीन देने का भी एलान किया। सरकार ने ओंकारेश्वर बांध का जलस्तर घंटों में कम भी कर दिया। यह एक ऐतिहासिक जीत थी। सवाल यह है कि आखिर ऐसी कौन सी मजबूरियां गांव वालों के सामने रहीं कि वे उसी मोटली माई (नर्मदा), जिसे वे पूजते हैं, में स्वयं को गला देने के लिए मजबूर हो गए।
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