निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा कानून को लागू हुए लगभग दो वर्ष पूर्ण हो चुके हैं लेकिन बच्चे शिक्षा के अधिकार से वंचित है। बांध-परियोजना से प्रभावित लोगों को पुनर्वास स्थलों पर बसाये जाने के बावजूद इन परिवारों के बच्चों की शिक्षा की स्थिति में कोई खास सुधार देखने को नहीं मिल पा रहा है। शिक्षा पाने का अधिकार विस्थापन से पुनर्वास के बीच कहीं गुम हो गया है। केन्द्र और राज्य सरकार शिक्षा का अधिकार अधिनियम का पालन करते हुए हर बच्चे को निःशुल्क और अनिवार्य शिक्षा प्रदान करने के लिए संकल्पित है। हमारे देश का प्रत्येक बच्चा स्कूल जाए, शिक्षा ग्रहण करे इसके लिये भारतीय संविधान के अनुच्छेद 21 में संशोधन करते हुए 21 (क) में शिक्षा का अधिकार भी मौलिक अधिकार में जोड़ा गया। शिक्षा का अधिकार समाज के गरीब कमजोर वर्ग के बच्चों को दूर सूदूर, दुर्गम इलाकों, गांवों, मजरों, टोलो, फलियों में रहने वाले बच्चों को भी मिले यह जिम्मेदारी अब सरकार की है। 1 अप्रैल 2010 से देश-प्रदेश में लागू हुए इस कानून को दो वर्ष हो चुके हैं। इन दो वर्षों में निःशुल्क एवं अनिवार्य शिक्षा का अधिकार कानून का पालन ग्रामीण इलाकों में किस प्रकार हो रहा है ? डूब क्षेत्र से विस्थापित होकर जो आदिवासी परिवार पुर्नवास स्थलों में रह रहे हैं, उनके बच्चों को शिक्षा का अधिकार मिल पा रहा है अथवा नहीं? गरीब, कमजोर, वंचित वर्ग के बच्चे शिक्षा का अधिकार अधिनियम से किस प्रकार लाभान्वित हो रहे है? क्या अब भी कुछ ऐसे बच्चे है, जो स्कूल नहीं जा पा रहे है? क्या ऐसे बच्चे भी हैं जिनका स्कूल जाना किसी कारणवश बन्द हो गया है?
इन सवालों का जवाब हमने मध्य प्रदेश के हरदा जिले में बनाये गए गुआड़ी नामक पुनर्वास स्थल पर तलाशने का प्रयास किया है। गुआड़ी पुनर्वास स्थल में पहुंचने पर पाया कि शिक्षा का अधिकार तो दूर वहां बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के जीने का अधिकार ही मुश्किल में है।
गुआड़ी वह जगह है जहां हरदा जिला प्रशासन ने इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर में डूबे 29 से ज्यादा गांवों के 127 परिवारों को बसाया है। इस पुनर्वास स्थल पर 40 टीन के शेड बने है जिसमें दो-दो परिवारों को रहने के कहा गया है। यहां न जमीन समतल है, न टीन के शेड बेहतर है। बिजली, आंगनवाड़ी, स्कूल, शौचालय विहीन यह पुर्नवास स्थल जहरीले जीव-जन्तुओं के बीच विस्थापित परिवारों को रहने पर मजबूर कर रहा हैं। इस स्थल पर लगभग 40 बच्चे ऐसे है, जिनकी उम्र पढ़ने योग्य है, लेकिन ये बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। राहुल, रमा, टीना, अशोक, भूरी, जैसे अनेक बच्चों का दिन पुनर्वास स्थल पर दिन भर इधर-उधर घूमते हुए बीतता है। वे पढ़ना चाहते है, लेकिन विस्थापन से पुर्नवास तक की उथल पुथल भरी प्रक्रिया में स्कूल, कापी, किताबें सब कहीं छूट गई है।
यह स्थिति केवल गुआड़ी नामक पुनर्वास स्थल की नहीं है। हरदा जिले के डूब प्रभावित गांव करनपुरा, सेनगुढ़, कालीसराय, महनगांव, गोपालपुरा, मनावा, बिछौला, उवां, खरदना, बैसवाड़ा, जोगा खुर्द, झांझरी, साकटिया, बरमलाय, सुकलीतलाई, देवपुर, डोंगरी, जामदा, सिरालिया सहित कुछ अन्य गांवों के बच्चों की पढा़ई नहीं हो पा रही हैं। इन बच्चों का स्कूल जाने, शिक्षा पाने का अधिकार विस्थापन से पुनर्वास के बीच कहीं गुम हो गया है। विस्थापित परिवारों में से एक मुखिया तोताराम आदिवासी कहते हैं कि जब खाने पीने की व्यवस्था ही नहीं हो पा रही है तो फिर बच्चों की शिक्षा के बारे में कैसे विचार करें?
साब, हमारी जमीन डूब गई, रोजगार छूट गया, घर छोड़कर यहां जंगल में पडे़ हैं। ऐसे में शिक्षा की बात तो छोड़िये हम हमारे बच्चों का जीवन बचा लें यही बहुत बड़ी बात है। डूब प्रभावित उवां गांव के रामविलास राठौर का कहना है कि इस क्षेत्र के 200 से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई अब बन्द हो गई है। जामदा गांव में रहने वाले परिवारों के दो दर्जन से अधिक बच्चे बिछौला गांव में पढ़ने जाया करते थे। अब बांध के बैक वाटर के कारण बच्चों का स्कूल आना जाना बन्द हो गया है। माता-पिता भी अपने बच्चों को नाव से दूसरे गांव के स्कूल में भेजना नहीं चाहते हैं। देवपुर गांव में बच्चों के माता-पिता प्रतिदिन नाव से स्कूल आने-जाने के लिए तीस रूपये नाव का किराया देने की स्थिति में नहीं है। इस क्षेत्र के जनपद सदस्य महेश पटेल का कहना है कि पढ़ने योग्य उम्र के अनेक बच्चे पढा़ई से वंचित हो गये हैं। डूब प्रभावित हर गांव के परिवार में बच्चे स्कूल जाते थे, लेकिन अब स्कूल छूट गया है। पुनर्वास स्थल पर बच्चों की शिक्षा के लिए इंतजाम नहीं हो पाये हैं।
इस बारे में हरदा जिला शिक्षा विभाग के जिला परियोजना समन्वयक सरदार सिंह पटेल का कहना है कि डूब प्रभावित किन-किन गांवों में कितने-कितने बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं? इसका कोई आकंड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि सैकड़ों की संख्या में बच्चे पढ़ाई से वंचित हैं तो पुनर्वास स्थल पर शिक्षा के इंतजाम किये जाएंगे।
यहां यह कहना जरूरी होगा कि प्रशासन विस्थापित परिवारों के बेहतर पुर्नवास के प्रति गंभीर नहीं है। इसलिये बच्चों की शिक्षा के उचित इंतजाम भी नहीं हो पाये हैं। सरकार ने बच्चों को शिक्षा का जो अधिकार दिया है, वह अभी हरदा जिले के पुनर्वास स्थल गुआड़ी तक नहीं पहुंचा है। देश-प्रदेश में ऐसे और भी कई पुनर्वास स्थल हैं जहां बच्चे शिक्षा के अधिकार का इंतजार कर रहे हैं।
परिचय - श्री अमिताभ पाण्डेय स्वतंत्र लेखक है।
इन सवालों का जवाब हमने मध्य प्रदेश के हरदा जिले में बनाये गए गुआड़ी नामक पुनर्वास स्थल पर तलाशने का प्रयास किया है। गुआड़ी पुनर्वास स्थल में पहुंचने पर पाया कि शिक्षा का अधिकार तो दूर वहां बच्चों, बुजुर्गों और महिलाओं के जीने का अधिकार ही मुश्किल में है।
गुआड़ी वह जगह है जहां हरदा जिला प्रशासन ने इंदिरा सागर बांध के बैक वाटर में डूबे 29 से ज्यादा गांवों के 127 परिवारों को बसाया है। इस पुनर्वास स्थल पर 40 टीन के शेड बने है जिसमें दो-दो परिवारों को रहने के कहा गया है। यहां न जमीन समतल है, न टीन के शेड बेहतर है। बिजली, आंगनवाड़ी, स्कूल, शौचालय विहीन यह पुर्नवास स्थल जहरीले जीव-जन्तुओं के बीच विस्थापित परिवारों को रहने पर मजबूर कर रहा हैं। इस स्थल पर लगभग 40 बच्चे ऐसे है, जिनकी उम्र पढ़ने योग्य है, लेकिन ये बच्चे स्कूल नहीं जा पा रहे हैं। राहुल, रमा, टीना, अशोक, भूरी, जैसे अनेक बच्चों का दिन पुनर्वास स्थल पर दिन भर इधर-उधर घूमते हुए बीतता है। वे पढ़ना चाहते है, लेकिन विस्थापन से पुर्नवास तक की उथल पुथल भरी प्रक्रिया में स्कूल, कापी, किताबें सब कहीं छूट गई है।
यह स्थिति केवल गुआड़ी नामक पुनर्वास स्थल की नहीं है। हरदा जिले के डूब प्रभावित गांव करनपुरा, सेनगुढ़, कालीसराय, महनगांव, गोपालपुरा, मनावा, बिछौला, उवां, खरदना, बैसवाड़ा, जोगा खुर्द, झांझरी, साकटिया, बरमलाय, सुकलीतलाई, देवपुर, डोंगरी, जामदा, सिरालिया सहित कुछ अन्य गांवों के बच्चों की पढा़ई नहीं हो पा रही हैं। इन बच्चों का स्कूल जाने, शिक्षा पाने का अधिकार विस्थापन से पुनर्वास के बीच कहीं गुम हो गया है। विस्थापित परिवारों में से एक मुखिया तोताराम आदिवासी कहते हैं कि जब खाने पीने की व्यवस्था ही नहीं हो पा रही है तो फिर बच्चों की शिक्षा के बारे में कैसे विचार करें?
साब, हमारी जमीन डूब गई, रोजगार छूट गया, घर छोड़कर यहां जंगल में पडे़ हैं। ऐसे में शिक्षा की बात तो छोड़िये हम हमारे बच्चों का जीवन बचा लें यही बहुत बड़ी बात है। डूब प्रभावित उवां गांव के रामविलास राठौर का कहना है कि इस क्षेत्र के 200 से ज्यादा बच्चों की पढ़ाई अब बन्द हो गई है। जामदा गांव में रहने वाले परिवारों के दो दर्जन से अधिक बच्चे बिछौला गांव में पढ़ने जाया करते थे। अब बांध के बैक वाटर के कारण बच्चों का स्कूल आना जाना बन्द हो गया है। माता-पिता भी अपने बच्चों को नाव से दूसरे गांव के स्कूल में भेजना नहीं चाहते हैं। देवपुर गांव में बच्चों के माता-पिता प्रतिदिन नाव से स्कूल आने-जाने के लिए तीस रूपये नाव का किराया देने की स्थिति में नहीं है। इस क्षेत्र के जनपद सदस्य महेश पटेल का कहना है कि पढ़ने योग्य उम्र के अनेक बच्चे पढा़ई से वंचित हो गये हैं। डूब प्रभावित हर गांव के परिवार में बच्चे स्कूल जाते थे, लेकिन अब स्कूल छूट गया है। पुनर्वास स्थल पर बच्चों की शिक्षा के लिए इंतजाम नहीं हो पाये हैं।
इस बारे में हरदा जिला शिक्षा विभाग के जिला परियोजना समन्वयक सरदार सिंह पटेल का कहना है कि डूब प्रभावित किन-किन गांवों में कितने-कितने बच्चे स्कूल नहीं जा रहे हैं? इसका कोई आकंड़ा नहीं है। उन्होंने कहा कि यदि सैकड़ों की संख्या में बच्चे पढ़ाई से वंचित हैं तो पुनर्वास स्थल पर शिक्षा के इंतजाम किये जाएंगे।
यहां यह कहना जरूरी होगा कि प्रशासन विस्थापित परिवारों के बेहतर पुर्नवास के प्रति गंभीर नहीं है। इसलिये बच्चों की शिक्षा के उचित इंतजाम भी नहीं हो पाये हैं। सरकार ने बच्चों को शिक्षा का जो अधिकार दिया है, वह अभी हरदा जिले के पुनर्वास स्थल गुआड़ी तक नहीं पहुंचा है। देश-प्रदेश में ऐसे और भी कई पुनर्वास स्थल हैं जहां बच्चे शिक्षा के अधिकार का इंतजार कर रहे हैं।
परिचय - श्री अमिताभ पाण्डेय स्वतंत्र लेखक है।
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