गया जिला

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विकलांग हो गया विनोबा भावे का बसाया गांव
Posted on 20 Apr, 2018 05:24 PM


गया जिले के आमस चौक से कुछ पहले स्थित एक स्कूल के करीब से बायीं तरफ एक सड़क जाती है। कुछ दूर चलने पर यह सड़क बायीं तरफ मुड़ जाती है। वहीं से दायीं तरफ एक पगडंडी शुरू हो जाती है। आड़ी-तिरछी, उतार-चढ़ाव और गड्ढोंवाली यह पगडंडी पहाड़ों के बीच से होकर एक गांव तक पहुंचती है। इस गांव का नाम भूपनगर है।

दशरथ कुमार
मौर्यकालीन तकनीक से मगध बना पानीदार
Posted on 25 Mar, 2018 02:52 PM

भगीरथ प्रयास का परिणाम बेहतरीन रहा। इससे जमुने-दसईं पईन के आसपास बसे 150 गाँव व बरकी नहर के आसपास बसे 250 गाँवों के खेतों के लिये सिंचाई आसान हो गई। इन गाँवों में खरीफ व रबी की फसल उगाने के साथ ही साग-सब्जियाँ, दलहन व तिलहन की खेती भी की जाती है। पईन व नहर के जीर्णोंद्धार से कृषि संकट भी कम हो गया। आसपास के रहने वाले किसानों में जान आ गई। कई किसान आत्महत्या और पलायन का विचार छोड़कर सिंचाई व्यवस्था को मजबूत करने में सहयोग करने लग गए।

मौर्यकाल में अर्थव्यवस्था पूरी तरह से कृषि पर आधारित थी। चूँकि कृषि आधार थी, तो सिंचाई के लिये पानी भी जरूरी था।

इसे देखते हुए मौर्यकाल में जल संचयन की अपनी पृथक व्यवस्था विकसित की गई थी। इसके अन्तर्गत काफी संख्या में तालाब और आहर-पईन बनाए गए थे।

मगध क्षेत्र में जल संचयन की अलग व्यवस्था करने की जरूरत इसलिये भी महसूस की गई क्योंकि इस क्षेत्र में पर्याप्त बारिश नहीं होती है। आहर-पईन और तालाबों का निर्माण बारिश के पानी को संग्रह कर रखने के लिये किया गया था।
गायब हो रहे गया के तालाब
Posted on 19 Sep, 2017 01:08 PM


ऐतिहासिक व धार्मिकों मान्यताओं से भरपूर गया शहर जितना पुराना है, उतने ही पुराने यहाँ के तालाब भी हैं। कभी गया को तालाबों का शहर भी कहा जाता था, लेकिन बीते छह से सात दशकों में गया के आधा दर्जन से अधिक तालाबों का अस्तित्व पूरी तरह खत्म हो चुका है।

जहाँ कभी तालाब थे, वहाँ आज कंक्रीट के जंगल गुलजार हैं। इन्हीं में से एक नूतन नगर भी है। इसके बारे में कहा जाता है कि यहाँ पहले विशाल तालाब हुआ करता था।

रामसागर तालाब में पसरी गन्दगी
रवींद्र पाठक : पानी बचाने को आतुर एक व्यक्तित्व
Posted on 08 Jun, 2017 11:35 AM
गया के आशा सिंह मोड़ से जब हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी की एमआइजी 87 में आप दाखिल होंगे, तो आपका सामना सामने ही शान से खड़े आम के एक ठिगने-से पेड़ से होगा। इस पेड़ के पास हरी घास व फूल के पौधे मिलेंगे, जो आपको यह अहसास दे देंगे कि यहाँ रहने वाला व्यक्ति पर्यावरण, पानी व पेड़ों को लेकर संवेदनशील होगा।

लंबी कदकाठी के 58 वर्षीय शख्स रवींद्र पाठक यहीं रहते हैं। रवींद्र पाठक मगध क्षेत्र और खासकर गया में पानी के संरक्षण के लिये लंबे समय से चुपचाप काम कर रहे हैं, आम लोगों को साथ लेकर।

उनसे जब बातचीत शुरू होती है, तो सबसे बड़ी मुश्किल होती है, उस सिरे को पकड़ना जहाँ से बातचीत एक रफ्तार से आगे बढ़ेगी, क्योंकि उनके पास गिनाने के लिये बहुत कुछ है। वह खुद पूछते हैं, ‘आप बताइये कि आप क्या जानना चाहते हैं।’

मुक्ति की आस में मुक्तिदायिनी फल्गु
Posted on 16 May, 2017 11:16 AM
गंगा पदोदकं विष्णो फल्गुहर्यादि गदाधर:।
स्वयं हि द्रवरूपेण तस्माद्गंगाधिकां विद:।।


(गंगा भगवान विष्णु का चरणामृत है। फल्गु रूप में स्वयं आदि गदाधर ही हैं। स्वयं भगवान द्रव (जल) रूप में हैं। इसलिए फल्गु को गंगा से अधिक समझना चाहिए।)

मुक्तिर्भवति पितृणां कतृणां तारणाय च।
ब्रह्मणा प्रार्थितो विष्णु: फल्गुरूपो भवत्पुरा।।

चूल्हे में बच्चों का स्वास्थ्य
Posted on 20 Feb, 2017 01:26 PM
आँगनबाड़ी केन्द्रों में ईंधन के तौर पर लकड़ी व उपलों के इस्तेमाल के चलते वायु प्रदूषण बना बच्चों के लिये बड़ा खतरा
विष्णु नगरी में फ्लोराइड का धब्बा
Posted on 28 Jan, 2017 10:35 AM

पानी में फ्लोराइड की सुरक्षित मात्रा प्रति लीटर 1 मिलीग्राम है। पानी में अधिकतम 1.5 मिलीग

डॉक्टर तलाशेंगे स्केलेटल फ्लोरोसिस के रोगियों का निदान
Posted on 11 Jan, 2015 12:20 AM स्केलेटल फ्लोरोसिस के मरीजों के लिए उम्मीद की नयी रोशनी सामने आयी है। गया में राज्य भर के हड्डी रोग विशेषज्ञ एकजुट होकर इस मसले पर विचार-विमर्श करेंगे। यह कांफ्रेंस बोध गया में 13-15 फरवरी के बीच होगा। यह जानकारी कांफ्रेंस की स्वागत समिति के अध्यक्ष डॉ फरहत हुसैन और आयोजन सचिव डॉ प्रकाश सिंह ने दी। उन्होंने बताया कि इस कांफ्रेस में नेशनल ऑर्थोपेडिक एसोसियेशन के कम से कम पांच पूर्व सचिव भाग लेंगे।
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