पिछले दिनों मुझे बिहार राज्य के नालन्दा के खंड़हरों से लगभग डेढ़ किलोमीटर आगे सूर्य मन्दिर के निकट स्थित सूरजकुण्ड तालाब को देखने का अवसर मिला था। यह तालाब, आहर-पईन व्यवस्था का हिस्सा है। कुछ दिन पहले तक इसे पाईन से पानी मिलता था। भले ही अब सडक निर्माण के कारण वह व्यवस्था बदल दी गई है, पर उसके जीवन्त प्रमाण तालाब के आसपास मौजूद हैं। मैंने उन प्रमाणों को अनुभव भी किया। लगा कि मुझे उस व्यवस्था को विज्ञान के नजरिए से देखना और समझना चाहिए। उस दिन, समय की कमी के कारण, यह संभव नहीं हुआ और मुझे भोपाल वापिस लौटना पड़ा। बात भले ही आई-गई हो गई हो, पर मन में गहरी कसक बनी रही। सौभाग्यवश, जिला प्रशासन और पंकज मालवीय के सौजन्य से मुझे यह अवसर मिला और मैं आठ दिसम्बर 2019 को आहर-पईन का परम्परागत गढ़ अर्थात गया जिला मुख्यालय पहुँच गया।
9 दिसम्बर, 2019 को, मैं, जिला प्रशासन के प्रतिनिधियों (डाॅ. निधि और उप-जिला अधिकारी श्री चौधरी) के साथ आहर-पईन व्यवस्था के अंतर्गत बने सूर्य मन्दिर पोखर पहुँचा। यह पोखर, जिला मुख्यालय से लगभग 15 किलोमीटर दूर है। उसका आकार लगभग चौकोर और औसत गहराई लगभग 15 फुट है। उसका पानी पीने लायक नहीं है। आसपास खेत हैं। किनारे मन्दिर है। उस तालाब के पास में लगभग 80 फुट गहरा एक नलकूप लगा है। मैंने ग्राम वासियों की मदद से उसके इतिहास और पानी के आने-जाने के रास्तों अर्थात इनलेट और आउटलेट प्रणाली के बारें में जानकारी संकलित की और उस तालाब के पास स्थित बडे गन्धार तालाब को करीब से देखा। मैं, अल्प समय में ही सही पर सूर्य मन्दिर पोखर और बड़ा गन्धार तालाब के आसपास बिखरे सैकड़ों साल पुराने जल विज्ञान को अपने नजरिए से देखना और समझना चाहता था। इसी कारण आहर-पईन से जुड़ी हर चीज को नजदीक से देख रहा था वहीं ग्राम वासियों का फोकस तालाब का जीर्णोद्धार था। चर्चा के दौरान लगा कि लोग, जल भंडारण क्षमता में वृद्धि के लिए जिला प्रशासन की मदद से सूर्य मन्दिर पोखर की गाद निकलवाना चाहते हैं। उल्लेखनीय है कि सूर्य मन्दिर पोखर के पानी का स्रोत फाल्गु नदी है जो इस तालाब से काफी दूर है। पानी पाईन के माध्यम से आता है।
सूर्य मन्दिर पोखर के आसपास के भ्रमण से समझ में आया कि इस तालाब में पानी आने और उससे पानी के बाहर निकलने के लिए तीन रास्ते हैं। अवलोकन के दौरान हमें, पानी की निकासी पाईप में जमा मिट्टी भी दिखाई दी। तालाब को गहरा करने को लेकर, आपसी चर्चा में यह सन्देह सामने आया कि कहीं गाद निकालने से तालाब का पानी सूख तो नहीं जाएगा ? स्थानीय समाज के लिए यह बेहद महत्वपूर्ण सवाल है, पर इस सवाल का उत्तर हमें, जल्दी ही सूर्य मन्दिर पोखर के बिल्कुल पास खुदे नलकूप के स्ट्राटा-चार्ट से मिल गया। स्ट्राटा-चार्ट से पता चला कि उस स्थान पर 50 फुट की गहराई तक क्ले (ब्संल) मिलती है। सभी जानते हैं कि भूजल रीचार्ज के लिए क्ले उपयुक्त नहीं है। अतः लगभग 45 फुट की गहराई तक तालाब की खुदाई की जा सकती है। इन छोटी-मोटी बातों को जानने के बाद भी मुझे कुछ बुनियादी बातों को जानने की इच्छा थी और इसके लिए मैंने आहर-पईन को उद्गम से लेकर आखिरी तालाब या खेत तक देखने का फैसला किया। आगे बढ़े। रास्ते में मुख्य पईन को विभाजित होते भी देखा। अन्त में, सब लोग उस स्थान पर पहुँचे जहाँ से मुख्य पईन को लगभग 77 किलोमीटर लम्बी फाल्गु नदी (¼2A4D4 –watershed code/identity½) से पानी मिलता है। प्रथम दृष्टि में यह सम्बन्ध बैक-वाटर जैसा लगा। जल प्रदाय स्थान को देखकर सबका अभिमत बना कि फाल्गू नदी में प्रवाह की कमी है। यह कमी आहर-पईन व्यवस्था पर, रबी के मौसम में संकट का संकेत है। इस संकेत ने फाल्गू और आहर-पईन के सम्बन्ध को न केवल उजागर किया वरन मुझे दिशा दिखाई। उल्लेखनीय है कि पाईन को जल प्रदाय के लिए इस स्थान के अपस्ट्रीम में एक बैराज निर्माणाधीन है।
मुझे लगता है कि सूर्य मन्दिर पोखर और उसके आसपास की खेती की या समूची व्यवस्था की समस्या का सम्बन्ध फाल्गू नदी के प्रवाह की निरन्तरता से है। यह सच है कि बरसात के सीजन में फाल्गू नदी में पानी की उपलब्धता पर अधिक संकट नहीं है, इसलिए प्रवाह की कमीपेशी के बावजूद आहर-पईन व्यवस्था से लाभान्वित धान की खेती को लाभ मिलता रहेगा। पर यदि रबी के सीजन में फाल्गू नदी का प्रवाह टूटता है तो, कालान्तर में, रबी के सीजन में आहर-पईन व्यवस्था, पानी उपलब्ध कराने में असफल सिद्ध होने लगेगी। अर्थात आहर-पईन व्यवस्था पर रबी के मौसम में संकट के बादल घिरेंगे। अर्थात हालात स्थायी समाधान की मांग करते हैं।
आहर-पईन व्यवस्था के सामने मुख्यतः दो प्रकार के संकट हैं। पहला संकट है - पानी प्रदान करने वाली नदी में घटता गैर-मानसूनी प्रवाह। दूसरा संकट है, आहर-पईन प्रणाली में गाद का जमाव। इसके अतिरिक्त कुछ अन्य स्थानीय संकट हो सकते हैं। यदि सिलसिलेवार संकटों के समाधान पर विचार किया जाए तो समझ में आता है कि सबसे अधिक चुनौतिपूर्ण काम है नदी के गैरमानसूनी प्रवाह को बढ़ाना। बरसात की मात्रा और गंगा कछार के सकारात्मक गुणों के कारण यह काम संभव है। गाद की समस्या को दो भागों में विभाजित कर निपटा जा सकता है। पहले भाग के अनुसार जो गाद तालाबों और पईन में जमा है उसे निकालना। यह काम तालाब और पईन की मूल डिजायन को बिना नुकसान पहुँचाए करना होगा। यह बेहद आवश्यक है। भविष्य में गाद जमाव को नियोजित करने के लिए अध्ययन कराना होगा ताकि उसका अधिकांश हिस्सा पाईन में जमा हो। उस स्थिति में पईन से गाद की निकासी को हर साल के सामान्य रख-रखाव का हिस्सा बनाया जा सकता है। उसमें समाज की भागीदारी सुनिश्चित की जा सकती है। तीसरा संकट पानी की गुणवत्ता का है। यह मामला जागरुकता और स्थानीय स्तर पर गंदगी और प्रदूषण को नियंत्रित करने का है। गुड गवर्नेन्स, समझदारी और भागीदारी से हल खोजा जा सकता है।
यह कहना काफी हद तक सही है कि आहर-पईन का विकल्प समय की कसौटी पर खरा उतरा विकल्प है। अतः आवश्यक है कि हम आहर-पईन के विभिन्न घटकों के योगदान और उस योगदान को हानि पहुँचाने या कम करने वाले घटकों को अच्छी तरह समझ लें। क्रियान्वयन की उपयुक्त रणनीति का रोडमैप बना लें। समाज से जुड़कर रोडमैप पर अमल करें। यह टाॅप-डाउन व्यवस्था है। उम्मीद है, बिहार सरकार का आहर-पईन जीर्णोद्धार प्रोग्राम उसी समन्वित सोच को जमीन पर उतारने का उदाहरण बनेगा तथा धान के इलाकों के लिए मिसाल बनेगा। जल, जीवन और हरियाली मिशन को सफल बनाने में योगदान देगा।
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