गया के आशा सिंह मोड़ से जब हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी की एमआइजी 87 में आप दाखिल होंगे, तो आपका सामना सामने ही शान से खड़े आम के एक ठिगने-से पेड़ से होगा। इस पेड़ के पास हरी घास व फूल के पौधे मिलेंगे, जो आपको यह अहसास दे देंगे कि यहाँ रहने वाला व्यक्ति पर्यावरण, पानी व पेड़ों को लेकर संवेदनशील होगा।
लंबी कदकाठी के 58 वर्षीय शख्स रवींद्र पाठक यहीं रहते हैं। रवींद्र पाठक मगध क्षेत्र और खासकर गया में पानी के संरक्षण के लिये लंबे समय से चुपचाप काम कर रहे हैं, आम लोगों को साथ लेकर।
उनसे जब बातचीत शुरू होती है, तो सबसे बड़ी मुश्किल होती है, उस सिरे को पकड़ना जहाँ से बातचीत एक रफ्तार से आगे बढ़ेगी, क्योंकि उनके पास गिनाने के लिये बहुत कुछ है। वह खुद पूछते हैं, ‘आप बताइये कि आप क्या जानना चाहते हैं।’
खैर, बातचीत का सिलसिला आगे बढ़ता है, तो वह फ्लैशबैक में जाते हैं। आज से करीब तीन दशक पीछे। तब वह कॉलेज में पढ़ा करते थे। वह कहते हैं, “कॉलेज के दिनों में मैं सोच रहा था कि आखिर मुझे किस विषय पर काम करना चाहिए। इसी दौरान वराहमिहिर की किताब बृहद संहिता मेरे हाथ लग गयी। इस किताब को मैंने पढ़ना शुरू किया। वहीं से मुझमें पानी को लेकर काम करने की रूचि जगी। इसके बाद फिर पीछे मुड़कर नहीं देखा।”
बृहद संहिता में जल प्रबंधन पर काफी कुछ लिखा गया है। इस पुस्तक में उदकार्गल नामक एक अध्याय है जिसमें भूगर्भ जल के बारे में बताया गया है। इस अध्याय में पेड़ पौधों को देखकर भूगर्भ जल की प्रकृति का पता कैसे लगाया जा सकता है, इस बारे में विस्तृत व्याख्या की गयी है। पुस्तक में पानी को पीने योग्य कैसे बनाया जा सकता है, इसके उपाय भी बताये गये हैं।
उन्होंने सबसे पहले गया के भूगर्भ जल पर काम करना शुरू किया। इसके लिये उन्होंने ग्राउंड वाटर की पड़ताल शुरू की। इस काम में उनकी जीवन संगिनी प्रमिला पाठक ने भी साथ दिया व दोनों ने ग्राउंड वाटर पर काफी काम किया। वह कहते हैं, “हालाँकि उस वक्त गया में जल संकट नहीं था, लेकिन हमने महसूस किया कि यहाँ ग्राउंड वाटर को रिचार्ज करना बहुत जरूरी है।”
यह सब करते हुए वर्ष 2005 में उन्होंने वृहत तौर पानी को लेकर काम करना शुरू किया। पानी को लेकर चुपचाप काम करनेवाले कई लोगों को उन्होंने जोड़कर मगध जल जमात का गठन किया। यह संगठन कारवां की शक्ल लेता कि बीच रास्ते में ही कई लोग इससे अलग हो गये। पाठक कहते हैं, “ये लोग वैचारिक बहसों में साथ थे, लेकिन जब ग्राउंड पर काम करने की बारी आयी, उन्होंने अपने हाथ खींच लिये। हाँ, एक अच्छी बात यह हुई कि कुछ लोगों ने कदम पीछे खींच लिये, तो कई लोग नये सिरे से इस संगठन से जुड़े भी।”
असल में मगध जल जमात के काम करने का तरीका एनजीओ की तरह नहीं था। जल जमात की अपनी पृथक नीति थी जिसके तहत काम होता था। दक्षिण बिहार को लेकर अलग नीति बनायी गयी और जब बिहार सरकार ने अपनी नीति बदली, तो उनकी लाइन पर चलते हुए दक्षिण बिहार में पानी पर काफी काम हुआ। आहर-पइन से लेकर नदियों व जलाशयों तक का जीर्णोद्धार किया गया। गया की ब्रह्मयोनी पहाड़ी पर 60-70 रिचार्ज स्ट्रक्चर तैयार करने का श्रेय उन्हें ही जाता है। ये स्ट्रक्चर अब भी काम कर रहे हैं।
वह आगे बताते हैं, हमने जो भी काम किया, चंदा जुटाकर कर ही किया, कभी किसी से फंड नहीं लिया। लोगों को पानी के प्रति जागरुक करने के लिये बुकलेट्स छपवाये, छोटी फिल्म बनवायी व पानी से सरोकार रखने वाले लोगों के साथ बैठकें कीं।
पानी को लेकर वह कई किताबें लिख चुके हैं। चूँकि उनके काम करने का तरीका एकदम अलग है, इसलिए उसका प्रभाव भी अलग तरह से पड़ा है। असल में उन्होंने आम लोगों को जागरुक करने के लिये बहुत काम किया और इसी का परिणाम है कि आम लोग खुद तालाबों का जीर्णोद्धार करते हैं और फिर उन्हें उनका जायजा लेने के लिये बुलाते हैं। वह कहते हैं, “आमलोग अपने स्तर पर चंदा जुटाकर तालाबों का जीर्णोद्धार कर रहे हैं। यह अच्छी बात है। हम चाहते थे कि यहाँ के आमलोग स्वावलंबी बनें, व विकेंद्रित रूप में काम हो। खुशी की बात है कि यह हो रहा है।”
पानी को बचाने को लेकर उनकी बेचैनी का अंदाजा आप उनकी इस बात से लगा सकते हैं कि उनकी देखरेख में 175 किलोमीटर आहर-पइन पर काम किया गया, लेकिन उनका मानना है कि इस पर अभी और काम करने की जरूरत है।
वह मानते हैं कि आहर-पइन पर जितना काम होना चाहिए उतना नहीं है। इस पर व्यापक स्तर पर काम करने की जरूरत है। वह कहते हैं, हम चाहते हैं कि एक नागरिक संगठन खड़ा हो, जो आहर-पइन को संभाल ले।
इन सबके बीच उनके प्रयास व आम लोगों और जनप्रतिनिधियों के सहयोग से गया के नौ तालाबों का जीर्णोद्धार किया गया। यही नहीं, गया के धार्मिक महत्त्व के आठ तालाबों की सफाई भी करायी गयी।
उनके काम करने में खास बात यह है कि वह जनप्रतिनिधियों को सीधे तौर पर चुनौती दे देते हैं - आप करवाइये या हम करवायेंगे। यही वजह रही कि जनप्रतिनिधियों व वन तथा सिंचाई विभाग ने भी उनके आह्वान पर काम किया।
उनकी पहल पर तालाबों के जीर्णोद्धार के साथ ही नये तालाब व कुंड भी बनाये गये। ऐसा ही एक तालाब पुलिस लाइन में है। गया के बाराचट्टी के पर्वतिया में दो बड़े कुंड बनाये गये, जहाँ भूगर्भ से पानी आता है। इनमें से एक कुंड के पानी का इस्तेमाल मवेशियों के लिये दूसरे का इस्तेमाल लोगों के लिये होता है।
मगध जल जमात की ही कोशिश थी कि 5 वर्ग किलोमीटर क्षेत्रफल में फैले वाटर कलेक्शन एरिया पर बाँध बनवाया गया।
फिलहाल, वह पानी को लेकर उतना सक्रिय नहीं हैं, जितना पहले थे। लेकिन, उनमें काम करने का जज्बा थोड़ा भी कम नहीं हुआ है। उन्होंने कहा, ‘हम व्यापक सामाजिक चुनौतियों के दौर में हैं। इससे लड़ना है। हम देख रहे हैं कि स्थानीय स्तर पर क्या प्रयोग किया जाना चाहिए कि गया व दक्षिण बिहार के जलस्रोत सुरक्षित संरक्षित हों।’
रवींद्र पाठक जी का संपर्क सूत्र
एमआईजी-87 हाउसिंग बोर्ड कॉलोनी, गया, पिन कोड - 823001, बिहार, मोबाइल नंबर - 9431476562, ईमेल आईडी - rkp.gaya@gmail.com
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