क्यों होती है कम या ज्यादा बरसात

बच्चों, बारिश कैसे आती है, यह जानने से पहले यह याद रखो कि हवाएं हमेशा उच्च वायुदाब से कम वायुदाब वाले इलाके की ओर चलती हैं। गर्मी के दिनों में भारत के उत्तरी मैदान और प्रायद्वीपीय पठार भीषण गर्मी से तपते हैं और यहां निम्न वायुदाब का क्षेत्र बन जाता है। इसके उलट दक्षिण में हिंद महासागर ठंडा रहता है। ऐसी भीषण गर्मी के कारण ही महासागर से नमी लेकर हवाएं भारत के दक्षिणी तट से देश में प्रवेश करती हैं।

जून के करीब केरल तट और अंडमान-निकोबार द्वीप समूह में मानसून सक्रिय हो जाता है। हमारे देश में वर्षा ऋतु के अमूमन तीन या चार महीने माने गए हैं। दक्षिण में ज्यादा दिनों तक पानी बरसता है। यानी वहां वर्षा ऋतु ज्यादा लंबी होती है जबकि जैसे-जैसे हम दक्षिण से उत्तर की ओर जाते हैं तो वर्षा के दिन कम होते जाते हैं। कभी ऐसा भी होता है कि मानसून से पहले ही देश के कुछ हिस्सों में बारिश हो जाती है। ऐसा इन जगहों पर बहुत ज्यादा निम्न दबाव और स्थानीय दशाओं के कारण होता है। मानसून जब आने वाला होता है तो तेज उमस होती है और हवाओं का चलना रुक जाता है। ऐसी स्थिति में अचानक मौसम बदलता है और घनघोर काले बादल आकर छा जाते हैं और बरसते हैं। इसे मौसम विज्ञानी 'मानसून प्रस्फोट' कहते हैं।

भारत में मानसून की दो शाखाएं


हमारे देश भारत में मानसून की दो शाखाएं होती हैं। एक अरब सागर से उठने वाली और दूसरी बंगाल की खाड़ी से। जब अरब सागर से उठने वाली हवाएं भारत के तटीय प्रदेशों पर पहुंचती हैं तो पश्चिमी घाट से टकराकर पश्चिमी तटीय भागों में तेज बारिश करती है। यही कारण है कि मुंबई जैसे तटीय शहरों में बहुत तेज और लगातार बारिश होती है लेकिन इन घाटों को पार करने के बाद जब ये मानसूनी हवाएं नीचे उतरती हैं तो इनका तापमान बढ़ जाता है और ये शुष्क होने लगती हैं। इस कारण प्रायद्वीपीय पठार के आंतरिक भाग बारिश से वंचित रह जाते हैं। इसलिए इन भागों को 'रेनशेडो एरिया' भी कहा गया है। यही वजह है कि तटीय शहर मंगलौर में वर्षा 280 सेंटीमीटर तक होती है, जबकि बेंगलुरू में केवल 50 सेमी तक ही वर्षा होती है।

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