Posted on 15 Oct, 2013 01:38 PM(1) नदी ने जो सहा नदी जानती है उसके दो किनारे हैं उनका शासन भी वह मानती है जहाँ भी वह जाती है उन्हें अपने साथ पाती है (2) नदी तो बहती है, बहेगी वह थिर क्यों रहेगी
(3) नदी को समुद्र से जा मिलने की इच्छा है तीव्र इच्छा
Posted on 15 Oct, 2013 01:37 PMबाढ़ में बहते जाते हैं पुरखों के संदूक सारा माल-मता औजार हमारे मामूली रोजगार के कागज-पत्तर जिनमें थे हारों के दुखों के हाल जिन्हें कोई दर्ज नहीं करता कला कर्म की भाषा के धंधे और इतिहास जिनसे बेखबर रहते हैं हर कहीं गाफिल एक से
पानी में दिखता है कभी तेज बहाव में छटपटाता हुआ कोई बेमानी मगर उसकी छटपटाहट बिलकुल निरुपाय
Posted on 15 Oct, 2013 12:25 PMपेयजल आपूर्ति विभाग, ग्रामीण विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा 1अप्रैल 2009 को राष्ट्रीय ग्रामीण पेयजल कार्यक्रम (NRDWP) का शुभारंभ किया गया।
भारत सरकार, ग्रामीण भारत के लोगों के बेहतर स्वास्थ्य और जीवन स्तर सुनिश्चित करने हेतु एक अभियान मोड़ में स्वच्छता कवरेज को बढ़ावा दे रही है। इसके कार्यान्वयन में तेजी
Posted on 11 Oct, 2013 04:15 PMनरेद्र मोदी की माने तो देवालय से ज्यादा शौचालय की जरूरत है। हमारा काम देवालय गए बगैर भी चल सकता है लेकिन शौचालय गए बगैर तो बिल्कुल नहीं। फिलहाल जबकि देश की पूरी आबादी के पास शौचालय की सुविधा नहीं है तभी हमारी नदियां, सभी जलस्रोत मल-जल से अटे पड़े हैं। तब जरा कल्पना करके देखिए अगर जितने ज्यादा लोग उतने ज्यादा शौचालय होंगे तो देश के जलस्रोतों का क्या हाल होगा। कुदरत ने कुछ भी बेकार नहीं बनाया। ह
Posted on 10 Oct, 2013 10:15 AMएक नदी बाल्यावस्था लांघ अल्हड़ यौवन का स्पर्श मात्र ही कर पाई थी कि बाँध दी गई उन्मुक्तता उसकी यह समझाकर कि इस प्रकार कल्याण कर पाएगी वो जन जीवन का नदी सहर्ष स्वीकार करती है इस बंधन को बिना विचारे आगत क्या है किन्तु यह क्या उसके संगी साथी झरने, प्रपात,नन्ही धाराएं सभी तो लुप्त हो गए