Posted on 08 Apr, 2014 03:50 PM नदी निश्चल बहती है इसका अर्थ यह तो नहीं कि वह कुछ नहीं कहती। बहुत कुछ कहती है तब जब जानलेवा गरमी में प्यास से बदहाल हम निहारते हैं उसे। स्वाद लेते हैं उसके ममतामयी शीतल नीर का। वह कहती है तब भी जब हम चखते हैं उसके अमृत से सिंचित पेड़ के मीठे सुस्वादु फल को। चलाना हो कल-कारखाने या विपुल विद्युत उत्पादन
Posted on 08 Apr, 2014 03:49 PM देखों नदियां धधक रही हैं, हमको आगे आना होगा। तालाब कुएं सब सूख रहे हैं इनको हमें बचाना होगा। निर्मल-निर्मल पानी है देखो, हमकों क्या-क्या नहीं देते हैं इनसे ही जीवन है अपना, अमृत रस ये देते हैं, गंदगी का है परचम भारी हमें इसे मिटाना होगा। देखों नदियां धधक रही हैं, हमको आगे आना होगा। नदियों से ही पानी मिलता,
Posted on 08 Apr, 2014 03:34 PM मेरे पास नहीं है एक गिलास किसी को कैसे पिलाऊ पानी? मैं चाहता हूं मेरे पास भी हो एक गिलास पिलाने को पानी तभी न पिला पाऊंगा पानी किसी को पर देखता हूं नहीं है पानी हर गिलास में मैं इतना जरूर चाहता हूं न हो गिलास तो भी हो पानी जरूर मेरे पास पानी प्यास को करता है शांत ओक से ही चाहे पीया-पिलाया जाए पानी