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विस्थापन, अभाव और विकास की प्रक्रिया
Posted on 09 Aug, 2014 09:00 AM कुछ भी हो, यह याद रखा जा सकता है कि कुछ लोग विस्थापन के मुद्दे पर य
गांवों के संस्थागत ढांचे का विकास पंचायत की सहभागिता से : कुशवाहा
Posted on 07 Aug, 2014 01:45 PM भारत की आत्मा गांवों में बसती हो या नहीं, पर उसका पिछड़ापन वहीं निवास करता है और इसी पिछड़ेपन को दूर करने के लिए केंद्र सरकार ने मॉडल विलेज बनाने की बात कही है। मोदी सरकार के पहले बजट में ग्रामीण विकास के लिए घोषित योजनाओं और सरकार की नीतियों पर केंद्रीय ग्रामीण विकास राज्य मंत्री उपेंद्र कुशवाहा से पंचायतनामा के लिए संतोष कुमार सिंह ने विशेष बातचीत की। प्रस्तुत है प्रमुख अंश :
राजनीति किसी भी आपदा से कुछ नहीं सीखती
Posted on 05 Aug, 2014 01:41 PM नदियां रातों रात कहीं से निकल कर नहीं आती हैं। सैकड़ों साल से वो हम
आधुनिक तरीके से करें सब्जियों की खेती
Posted on 05 Aug, 2014 12:26 PM

साग-सब्जियों का हमारे दैनिक भोजन में महत्वपूर्ण स्थान है। विशेषकर शाकाहारियों के जीवन में। साग-सब्जी भोजन में ऐसे पोषक तत्वों के स्रोत हैं, हमारे स्वास्थ्य को ही नहीं बढ़ाते, बल्कि उसके स्वाद को भी बढ़ाते हैं। पोषाहार विशेषज्ञों के अनुसार संतुलित भोजन के लिए एक वयस्क व्यक्ति को प्रतिदिन 85 ग्राम फल और 300 ग्राम साग-सब्जियों का सेवन करना चाहिए, परंतु हमारे द

vegetation
बूंदें रचतीं जलकथा
Posted on 05 Aug, 2014 11:41 AM पूरब दिसि से उठी बदरिया
रिमझिम बरसत पानी


मॉनसून ऊंचे आकाश पर बसे बादल, हवा के पंखों पर सवार बादल, अपने अंक में चपल बिजली को समेटे बादल, देखने में श्याम बादल, गर्जन में घोर बादल द्रवित हुए जा रहे थे.. कालिदास ने बादलों की स्तुति उन्हें उच्च कुलोत्पन्न कह कर की है। ये उच्च कुलोत्पन्न बादल आज जलबूंदों का रूप लेकर मिटते जा रहे हैं।
योजनाओं के समायोजन से मिलेगा फायदा
Posted on 05 Aug, 2014 09:39 AM राज्य सरकारें, अक्सर केंद्र सरकार पर यह इल्जाम लगाती रहती हैं कि के
कौन थी यह नदी पद्मा
Posted on 05 Aug, 2014 08:55 AM फरक्का से लगभग 17 किलोमीटर आगे बढ़ने पर हाईवे के पास एक स्थान आता है धुलियान। धुलियान से छह किलोमीटर और आगे से बाईं ओर मुड़कर चार किलोमीटर चलने पर एक प्यारा-सा गांव है नदी के तट पर, जिसका नाम है जगताई। जिला मुर्शिदाबाद, प्रखंड सूती; नीमतीता। इस गांव के ठीक सामने से नदी के पार बांग्लादेश आरंभ हो जाता है।
जी.एम. फसलें: एक कसौटी दो पैमाने
Posted on 04 Aug, 2014 04:28 PM “भारत सरकार यदि निजी पहल को और अधिक बढ़ावा दे, यदि यह पूंजी प्रवाह हेतु अधिक खुलापन अपनाए, यदि यह अपनी सब्सिडी नियंत्रित करे और शक्तिशाली बौद्धिक संपदा अधिकार उपलब्ध कराए, तो मेरा विश्वास कीजिए और अधिक अमेरिकी कंपनियां भारत में आएंगी”

जान कैरी (अमेरिकी विदेश मंत्री)
शहरीकरण से उपजता संकट
Posted on 04 Aug, 2014 04:22 PM शहरी विकास को सही रास्ते पर लाने के लिए अमीरों और गरीबों के बीच जो
केंद्रीय बजट: पर्यावरण की घोर अनदेखी
Posted on 04 Aug, 2014 03:22 PM बजट में औद्योगिक कॉरिडोर पर जबरदस्त जोर दिया गया है। यदि गुजरात मॉडल के हिसाब से चले तो बड़े पैमाने पर जबरन एवं फुसलाकर विस्थापन एवं प्रदूषण होगा। यह संघर्ष और सामाजिक टकराव को भी हवा देगा। जुलाई की शुरुआत में ही महाराष्ट्र के रायगढ़ जिले में मुंबई-दिल्ली औद्योगिक कारिडोर हेतु प्रस्तावित 65000 एकड़ भूमि अधिग्रहण के खिलाफ विशाल प्रदर्शन हुए थे। बजट में कई वर्षों से चर्चा में रही नदी जोड़ परियोजना हेतु भी पहल की गई है। जेटली के भाषण में इस बात पर विलाप किया गया है कि भारत को “सभी तरफ सदानीरा नदियों का वरदान नहीं मिला है।” “चूंकि वर्ष 2015 सुस्थिर विकास एवं जलवायु परिवर्तन नीति के हिसाब से ऐतिहासिक वर्ष होगा अतः सन् 2014 सभी भागीदारों के लिए आत्मविश्लेषण करने का आखिरी मौका होगा कि वे समझदारी से चुन सकें कि वे सन् 2015 के बाद कैसी दुनिया चुनना चाहते हैं।” यह महत्वपूर्ण वाक्य भारत सरकार के आर्थिक सर्वेक्षण 2013-14 में लिखे गए हैं। इसका संदर्भ वर्तमान सहस्त्राब्दी लक्ष्यों जिनकी अवधि सन् 2015 तक की है, को बदलकर सुस्थिर विकास लक्ष्यों को नए सिरे से तैयार करना है।

सवाल उठता है बकाया सर्वेक्षण और बजट में आत्मविश्लेषण दिखाई देता है? नई दिल्ली में बैठे शक्ति के नए केन्द्र क्या वर्तमान की आवश्यकताओं की पूर्ति करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के हितों की रक्षा हेतु समझदारी दिखाएंगे? वर्तमान पीढ़ी के करोड़ों लोग जो कि सीधे-सीधे प्रकृति और प्राकृतिक संसाधनों पर निर्भर है, उनकी आजीविका अधिक सुरक्षित कैसे होगी?
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