अजयेंद्रनाथ त्रिवेदी

अजयेंद्रनाथ त्रिवेदी
बूंदें रचतीं जलकथा
Posted on 05 Aug, 2014 11:41 AM
पूरब दिसि से उठी बदरिया
रिमझिम बरसत पानी


मॉनसून ऊंचे आकाश पर बसे बादल, हवा के पंखों पर सवार बादल, अपने अंक में चपल बिजली को समेटे बादल, देखने में श्याम बादल, गर्जन में घोर बादल द्रवित हुए जा रहे थे.. कालिदास ने बादलों की स्तुति उन्हें उच्च कुलोत्पन्न कह कर की है। ये उच्च कुलोत्पन्न बादल आज जलबूंदों का रूप लेकर मिटते जा रहे हैं।
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