दिल्ली

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प्रजातियों के संरक्षण से पर्यावरण और मानव जीवन की रक्षा सम्भव
Posted on 25 Jul, 2015 04:37 PM जब तक देश का हर नागरिक वन्य प्राणियों के अंग, उनकी खाल का उपयोग न क
save environment
83 दिन और 8 पर्यावरणीय कानून
Posted on 25 Jul, 2015 02:18 PM पर्यावरण एवं वन मंत्रालय के नाम में जोड़े गये ‘जलवायु परिवर्तन’ शब्
जंगल-जमीन आंदोलन
Posted on 25 Jul, 2015 01:14 PM किसी को आशा नहीं थी कि 19 अगस्त को गठित संगठन के आह्वान पर 2000 लोग
हर खेत के लिये पानी : नई उम्मीदों की पहल
Posted on 24 Jul, 2015 01:57 PM
पुराने जल संचय मॉडलों की मदद से किसी भी गाँव में माँग के अनु
dry crop
अनमोल पेड़ों का मोल
Posted on 24 Jul, 2015 12:36 PM

बायोवेद शोध संस्थान इलाहाबाद के एक अध्ययन के अनुसार एक मनुष्य को वर्ष भर में लगभग 55000 लीटर प्

जलवायु परिवर्तन एवं स्वास्थ्य
Posted on 24 Jul, 2015 11:39 AM जब जलवायु परिवर्तन के मुद्दे को बजाय विशुद्धतः पर्यावरणीय, आर्थिक य
आज बेहद जरूरी है पर्यावरण संरक्षण
Posted on 24 Jul, 2015 10:47 AM

यह सही है कि पर्यावरण संरक्षण की दिशा में आज उठाये गए कदम लगभग एक दशक बाद अपना सकारात्मक प्रभाव दिखाना आरम्भ करेगा। इसलिए जरूरी है कि समस्या के भयावह रूप धारण करने से पहले सामूहिक प्रयास किये जायें और हम कुछ करें। सबसे पहले अपनी जीवन शैली बदलें और अधिक से अधिक पेड़ लगावें जिससे ईंधन के लिए उनके बीज, पत्ते, तने काम आयेंगे और हम धरती के अंदर गड़े कार्बन को वहीं रखकर वातावरण को बचा सकेंगे। तभी धरत

environment
इंसानी गतिविधियों से बढ़ता जलवायु परिवर्तन का खतरा
Posted on 24 Jul, 2015 10:08 AM दुख इस बात का है कि दुनिया का कोई भी देश इस संकट की भयावहता को समझ
climate change
हमारी परम्परा में है वर्षाजल संरक्षण
Posted on 23 Jul, 2015 04:40 PM वर्तमान जल संकट से उबरने का एकमात्र उपाय है वर्षाजल का समुचित प्रबन
चुक रहा है भूजल
Posted on 23 Jul, 2015 01:53 PM जहाँ आज हमें पुनर्भरण बढ़ाने की जरूरत है वहाँ उसे घटाने का काम कर रहे हैं। हमारे पास जल संसाधन सीमित है। देश की ज़मीन पर प्रकृति हमें 4000 घन किलोमीटर पानी देती है। यह पानी वर्षा और हिमपात के रूप में होता है। इस 4000 घन किलोमीटर (4000 अरब घन मीटर या 4000 बीसीएम) पानी में से 20 फीसद से ज्यादा भाप बनकर उड़ जाता है। पचास से 60 फीसद पानी बाँधों, तालाबों, खेतों और कच्ची ज़मीन से रिसकर ज़मीन में चला जाता है। विश्व के सभी देश जल संकट से जूझ रहे हैं। प्राकृतिक रूप से जल विपन्न देशों के सामने यह संकट सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। भारतवर्ष भी तेजी से बढ़ी अपनी जनसंख्या के कारण अब जल विपन्न देशों की श्रेणी में है। साल-दर-साल जल प्रबन्धन करते हुए हम जैसे-तैसे काम चला रहे हैं। सिर्फ आज की स्थिति देखें तो हालात इतने डरावने हैं कि कल के इन्तज़ाम के लिये विशेषज्ञों को कोई भी विश्वसनीय और वैध उपाय सूझ नहीं रहा है।

इतनी भयावह स्थिति है कि ज़मीन के भीतर का पानी यानी भूजल ऊपर खींचकर काम चलाना पड़ रहा है। भूजल की स्थिति यह है कि पूरे देश में भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हालांकि 80 और 90 के दशक में जल विज्ञानियों ने इस मामले में हमें आगाह किया था। इसके पहले सत्तर के दशक में तत्कालीन सरकार ने पूर्व सक्रियता दिखाते हुए भूजल प्रबन्धन के लिये केन्द्रीय भूजल बोर्ड के रूप में नियामक संस्था बना ली थी। तब की सरकार की चिन्ताशीलता का एक सबूत यह भी है कि 80 के दशक के मध्य में इनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट बना लिया गया।
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