सुधीर जैन और केके जैन

सुधीर जैन और केके जैन
चुक रहा है भूजल
Posted on 23 Jul, 2015 01:53 PM
जहाँ आज हमें पुनर्भरण बढ़ाने की जरूरत है वहाँ उसे घटाने का काम कर रहे हैं। हमारे पास जल संसाधन सीमित है। देश की ज़मीन पर प्रकृति हमें 4000 घन किलोमीटर पानी देती है। यह पानी वर्षा और हिमपात के रूप में होता है। इस 4000 घन किलोमीटर (4000 अरब घन मीटर या 4000 बीसीएम) पानी में से 20 फीसद से ज्यादा भाप बनकर उड़ जाता है। पचास से 60 फीसद पानी बाँधों, तालाबों, खेतों और कच्ची ज़मीन से रिसकर ज़मीन में चला जाता है। विश्व के सभी देश जल संकट से जूझ रहे हैं। प्राकृतिक रूप से जल विपन्न देशों के सामने यह संकट सबसे बड़ी चुनौती बन गया है। भारतवर्ष भी तेजी से बढ़ी अपनी जनसंख्या के कारण अब जल विपन्न देशों की श्रेणी में है। साल-दर-साल जल प्रबन्धन करते हुए हम जैसे-तैसे काम चला रहे हैं। सिर्फ आज की स्थिति देखें तो हालात इतने डरावने हैं कि कल के इन्तज़ाम के लिये विशेषज्ञों को कोई भी विश्वसनीय और वैध उपाय सूझ नहीं रहा है।

इतनी भयावह स्थिति है कि ज़मीन के भीतर का पानी यानी भूजल ऊपर खींचकर काम चलाना पड़ रहा है। भूजल की स्थिति यह है कि पूरे देश में भूजल स्तर लगातार नीचे जा रहा है। हालांकि 80 और 90 के दशक में जल विज्ञानियों ने इस मामले में हमें आगाह किया था। इसके पहले सत्तर के दशक में तत्कालीन सरकार ने पूर्व सक्रियता दिखाते हुए भूजल प्रबन्धन के लिये केन्द्रीय भूजल बोर्ड के रूप में नियामक संस्था बना ली थी। तब की सरकार की चिन्ताशीलता का एक सबूत यह भी है कि 80 के दशक के मध्य में इनवायरनमेंट प्रोटेक्शन एक्ट बना लिया गया।
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