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देवास जिला
सामूहिक प्रयास से तीन सौ साल पुरानी बावड़ी को सहेजा
Posted on 27 Apr, 2019 03:31 PMमध्यप्रदेश के देवास शहर की पहचान पूरे देश में भयावह जल संकट वाले शहर के रूप में रही है। अस्सी के दशक से लेकर अब तक बीते चालीस सालों में यहाँ हर साल पानी की जबर्दस्त किल्लत बनी रहती है। कभी ट्रेन से तो कभी सवा सौ किमी दूर नर्मदा नदी से और कभी 65 किमी दूर गंभीर नदी से यहाँ के लोगों की प्यास बुझाने की कोशिशें की जाती रही है। जल संकट से परेशान हो चुके यहाँ के लोगों को अब बूँद-बूँद पानी की कीमत समझ
गाँव ने रोका अपना पानी
Posted on 03 Dec, 2018 08:37 PM'खेत का पानी खेत में' और 'गाँव का पानी गाँव में' रोकने के नारे तो बीते पच्चीस सालों से सुनाई देते रहे हैं, लेकिन इस बार बारिश के बाद एक गाँव ने अपना पानी गाँव में ही रोककर जलस्तर बढ़ा लिया है। इससे गाँव के लोगों को निस्तारी कामों के लिये पानी की आपूर्ति भी हो रही है और ट्यूबवेल, हैण्डपम्प और कुएँ-कुण्डियों में भी कम बारिश के बावजूद अब तक पानी भरा है। यह काम किसी सरकारी योजना के अन्तर्गत नहीं हुआ
बंजर जमीन में भी उगा सकेंगे पौधे
Posted on 20 Oct, 2018 01:36 PM हमारे देश में लाखों हेक्टेयर जमीन बंजर है। इसका कोई उपयोग नहीं हो पाता। यदि किसी तरह इस जमीन पर भी पेड़-पौधे लगाए जा सकें तो कितना बेहतर हो, लेकिन बंजर जमीन में पौधों का पनपना मुश्किल ही नहीं नामुमकिन होता है। इस समस्या के निदान के लिये कई प्रयोग और अनुसन्धान किये जा रहे हैं, जिससे बंजर जमीन पर भी जंगल खड़ा किया जा सके।पुनर्जीवित हुआ ढाई सौ साल पुराना तालाब
Posted on 12 Oct, 2018 02:31 PM"जिस दौर में ये तालाब बने थे, उस दौर में आबादी और भी कम थी। यानी तब जोर इस बात पर था कि अपने हिस्से में बरसने वाली हरेक बूँद इकट्ठी कर ली जाये और संकट के समय में आसपास के क्षेत्रों में भी उसे बाँट लिया जाये। वरुण देवता का प्रसाद गाँव अपनी अंजुली में भर लेता था।
पानी की महत्ता का स्मारक बाला तालाब
Posted on 22 Sep, 2018 06:38 PMएक समाज ने अपना तालाब सहेजकर पानी के संकट की आशंका को हमेशा-हमेशा के लिये खत्म कर दिया। इस एक तालाब से आसपास के करीब 25 गाँवों में भूजलस्तर काफी अच्छा है। आज जबकि यह पूरा इलाका पानी के संकट से रूबरू हो रहा है तो ऐसे में यह तालाब और यहाँ का समाज एक मिसाल है, पानी को रोककर जमीनी पानी के स्तर को ऊँचा उठाने में। आसपास पहाड़ियों से घिरे होने की वजह से थोड़ी-सी भी बारिश में यह लबालब भर जाता है और अमूमन
बरसे जब अमृत सर्वस्व करे तृप्त
Posted on 02 Jul, 2018 02:52 PMपूर्व राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने एक बार कहा था कि भारत का वास्तविक वित्त मंत्री मानसून है। सहजता से कही उनकी इस बात के बहुत गूढ़ मायने हैं। मानसून देश की आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक और लोकाचार गतिविधियों में रचा-बसा है चार महीने के दौरान दक्षिण पश्चिम मानसून देश की धरती पर इतना पानी उड़ेल देता है कि अगर हम उसी को सहेज लें तो साल भर मन भर पिएँ और जिएँ। पानी की किल्लत किसी भी रूप में नहीं
अच्छे पर्यावरण के लिये एक गाँव की अनूठी मुहिम
Posted on 04 Jun, 2016 12:59 PMविश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष
गाँव पहुँचते ही जैसे दिल बाग-बाग हो जाता है। गाँव में जगह-जगह पेड़-पौधे लगे हुए हैं। पूरा गाँव साफ–सुथरा है। यहाँ कचरा ढूँढे नहीं मिलता है। हर गली-चौराहे पर डस्टबीन रखी हुई है। गाँव के हर चौराहों पर शहर की तरह संकेत बोर्ड लगे हैं। चौराहों को बेहतर ढंग से विकसित किया गया है। उन पर प्रतिमाएँ लगाई गई हैं। यहाँ सरकारी खर्च उतना ही हुआ है जितना बाकी गाँवों में लेकिन यहाँ के लोगों की जागरुकता के चलते गाँव ने अपनी पहचान बना ली है।
पर्यावरण के लिहाज से गाँवों का साफ–सुथरा और पर्यावरण हितैषी होना जरूरी है। आमतौर पर ऐसा माना जाता है कि गाँव साफ–सुथरे नहीं होते। गाँव के लोग इन्हें गन्दा रखते हैं लेकिन इस गाँव को देखकर आप अपनी धारणा बदलने पर मजबूर हो जाएँगे।अब तक गाँवों को आप भले ही साफ–सुथरे न मानते रहे हों पर इस गाँव में एक बार घूम आइए, जनाब ... लौटकर यही कहेंगे कि कहाँ लगते हैं इसके सामने शहर भी। आपने अब तक ऐसा कोई गाँव शायद ही कहीं देखा हो। जहाँ आपको जतन करने पर भी कूड़ा–करकट नजर तक नहीं आएगा कहीं। महज ढाई हजार की आबादी वाले इस गाँव की किस्मत पलटी है खुद यहाँ के ही लोगों ने।
ग्लोबल वार्मिंग को रोकेगा रेवासागर
Posted on 22 Oct, 2014 03:41 PMदेवास जिले में पिछले तीन सालों से लगातार औसत से कम वर्षा होने के कारण रबी का रकबा लगातार घट रहा था। किसानों के पास सिंचाई के साधनों के नाम पर सिर्फ नलकूप थे। वो भी अत्यधिक भू-जल दोहन के कारण एक-एक कर किसान का साथ छोड़ते जा रहे थे। सिंचाई के लिए पानी की तलाश में 500 से 1000 फीट गहरे नलकूप करवाने के कारण किसान कर्ज में धंसता जा रहा था। ऐसे निराशाजनक परिदृश्य में तत्कालीन कलेक्टर श्री उमाकांत उमराव ने जल संवर्धन के क्षेत्र में एक नई अवधारणा विकसित कर उसे अभियान का रूप देने के लिए एक कारगर रणनीति तैयार की।नवंबर-दिसंबर के हल्के सर्द मौसम में यदि आप हवाई यात्रा के दौरान देवास जिले के टोंकखुर्द विकासखंड के ऊपर से गुजरे तो आपको हरे-हरे खेतों में ढेर सारी नीली-नीली बुंदकियां दिखाई पड़ेगी आप हैरत में पड़ जाएंगे। आपके मन में एक जिज्ञासा पैदा होगी कि आखिर खेतों में यह नीले रंग की फसल कौन-सी है...तो हम आपको बता दें कि इस क्षेत्र के किसानों ने अपनी खेती के तरीकों में क्या कोई बदलाव किया है? यहां के किसान अपने खेतों में पानी की खेती कर रहे हैं और ये जो नीली बुंदकियां हैं वो वास्तव में हर खेत में पानी से लबालब भरे तालाब हैं।तबाह हुई सोयाबीन की खेती, नहीं मिला है मुआवजा
Posted on 20 Oct, 2014 08:32 AMदेवास के किसान फसल के बर्बाद होने के बाद मुआवजा मिलने का बेसब्री सेतालाब संस्कृति ने देवास को ‘विदर्भ’ बनने से बचाया
Posted on 08 Oct, 2014 11:35 AMमध्य प्रदेश के मालवा क्षेत्र के देवास को कभी ‘डार्क जोन (जहां भूजल खत्म हो चुका हो)’ घोषित कर दिया गया था और आलम यह था कि वहां पीने का पानी रेलगाड़ियों से लाया जाने लगा था। यह सिलसिला लगभग डेढ़ दशक तक चला लेकिन 2005 के बाद से यहां तालाब की परंपरा को जिंदा करने का अभियान शुरू किया गया।2005 में यहां आयुक्त के तौर पर उमाकांत उमराव की तैनाती हुई और उन्होंने देखा कि देवास शहर के लोगों की प्यास बुझाने के लिए रेलगाड़ियों से पानी के टैंकर लाए जा रहे हैं। गांवों में भी ट्यूबवेल के जरिए खेतों को सींचने के लिए 350-400 फीट खुदाई की जा रही है और तब भी पर्याप्त पानी नहीं मिल रहा है।