पानी चाहिए तो बचाना होगा हिमालय

लगातार घट रहा है भूजल का स्तर और नदियों का पानी

 

इस संकट से बचाने के लिए भी ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। जल संसाधन मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में माना है कि बारिश के पानी को रोकने के पुख्ता इंतजाम नहीं हो रहे हैं। पिछले दिनों यह खबर भी आई कि हिमालयी ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि गंगा और यांगचे समेत विश्व की सात सबसे बड़ी नदियों का जन्मदाता हिमालय खतरे में है।

देश को जल संकट से बचाना है तो हिमालय को बचाना होगा। हिमालयी ग्लेशियरों को बचाना होगा। अन्यथा एक दिन ऐसा आने वाला है जब हम सभी पानी के लिए तरस रहे होंगे। केंद्र सरकार की रिपोर्ट कह रही कि देश में पानी की प्रति व्यक्ति उपलब्धता लगातार घट रही है। इसकी बड़ी वजह आबादी बढ़ने के साथ ही भूजल और नदियों के पानी में कमी होना है। देश में बारिश से सालाना उपलब्ध 1869 अरब घन मीटर जल में से मात्र 1123 अरब घन मीटर का ही भंडारण हो रहा है। बाकी 764 अरब घन मीटर पानी बहकर समुद्र में जा रहा है। नदियों के बेसिन का जल भराव क्षेत्र 25.80 करोड़ हेक्टेयर है। भूजल भी 399 अरब घन मीटर उपलब्ध है। इसमें से सालाना 213 अरब घन मीटर सिंचाई 18 अरब घन मीटर पीने के लिए इस्तेमाल होता है। सरकारी तौर पर प्रति व्यक्ति रोजाना गांवों में 40 लीटर और शहरी में 135 लीटर देने की बात कही जाती है, लेकिन सवा दो लाख गांवों के लिए शुद्ध पेयजल का इंतजाम नहीं हो पाया है।

सवा लाख गांवों में उपलब्ध पानी में फ्लोराइड, नाइट्रेट, आयरन और सीसा जैसे जहरीले तत्व मौजूद हैं। जबकि शहरों के 17 करोड़ लोगों को पीने का शुद्ध पानी उपलब्ध नहीं है। संसदीय समिति मानती है कि नदियों के जल में भारी कमी आ गई है। इससे जल उपलब्धता वर्ष 1951 में प्रति व्यक्ति 5177 घनमीटर पानी की तुलना में वर्ष 2001 में 1820 घमी रह गई। वर्ष 2025 तक यह और घटकर 1000 घमी पानी रह जाने का अनुमान है। ग्लेश्यिरों के लगातार सिकुडऩे से नदियों में पहले ही लगभग 10 फीसदी पानी घट गया है। देश के आधे से ज्यादा जिलों में भूजल पहले ही खतरे के स्तर तक गिर चुका है, लेकिन अब सबसे बड़ा खतरा उपलब्ध पानी के जहरीला हो जाने का है। केन्द्र सरकार की सभी ताजा रिपोर्टें कह रही हैं कि ज्यादातर नदियों का पानी और और भूजल प्रदूषण से इतना जहरीला हो चुका है कि वह अब पीने लायक नहीं बचा है।

इसका सीधा असर खेती पर भी पड़ेगा और अन्न उगाने के लिए भी पानी के लाले पड़ जाएंगे। पहले से जल विवादों से जूझ रहे राज्यों के झगड़े भी बढ़ जाने का खतरा भी है। संयुक्त राष्ट्र की ताजा रिपोर्ट में कहा गया है कि पेयजल की उपलब्धता, गुणवत्ता और उसे सुधारने के मामले में भारत विश्व के फिसड्डी देशों में शामिल है। भारत समेत एशियाई देशों की नदियां औसत से तीन गुना ज्यादा मैली हैं। इनके जल में सीसा जैसा जहरीला तत्व सामान्य से 20 गुना ज्यादा है। इसकी बड़ी नदियों में मिल रहे शहरों और उद्योगों के प्रदूषित जल का ठीक से ट्रीटमेंट नहीं किया जाना है।

दूसरी ओर इस संकट से बचाने के लिए भी ठोस प्रयास नहीं हो रहे हैं। जल संसाधन मंत्रालय की संसदीय स्थाई समिति ने अपनी ताजा रिपोर्ट में माना है कि बारिश के पानी को रोकने के पुख्ता इंतजाम नहीं हो रहे हैं। पिछले दिनों यह खबर भी आई कि हिमालयी ग्लेशियर लगातार सिकुड़ रहे हैं। संयुक्त राष्ट्र का मानना है कि गंगा और यांगचे समेत विश्व की सात सबसे बड़ी नदियों का जन्मदाता हिमालय खतरे में है। क्योंकि हिमालयी ग्लेशियर पिघल रहे हैं। यूनाइटेड नेशन्स डेवलपमेंट प्रोग्राम (यूएनडीपी) की तैयार डोक्यूमेंट्री फिल्म में हिमालयी ग्लेशियरों पर छाए संकट को विस्तार से दिखाया गया है। इससे पहले भी हिमालयी ग्लेशियरों को लेकर इसी तरह की डरावनी खबरें आती रही हैं। हालांकि इनका कोई ठोस सबूत भी नहीं रहा है।
 

 

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