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यूरोप के डेन्यूब कमीशन की तर्ज पर बने यमुना कमीशन
Posted on 09 Mar, 2013 01:05 PM यमुना में जल की गुणवत्ता बेहतर हो, उस पर निगरानी रखने और उसकी सेहत में सुधार के लिए सिफारिश करने के लिए कई बोर्ड, कमीशन, कमेटी, अथॉरिटी व एजेंसी हैं लेकिन इनमें से किसी के पास यमुना के बारे में निर्णायक फैसला लेने का कोई अधिकार नहीं है। यमुना कई प्रदेशों से गुजरती है। हर प्रदेश अपने-अपने तरीके से यमुना की दशा सुधारने के लिए प्रयास करने का दावा करते हैं और कई मौक़ों पर एक दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप क
महिलाओं को रोज़गार ही मेरे वेस्ट का आधार – निर्मला गिरीश कंदलगांवकर
Posted on 08 Mar, 2013 04:26 PM एक अच्छा विचार केवल एक इंसान के ही जिंदगी की दशा और दिशा ही नहीं बदलता वरन् समूह में एक साथ कई लोगों की सामाजिक, आर्थिक, शैक्षणिक, धार्मिक, वैचारिक दशा सुधारने एवं जीवन में गतिमयता, प्रवाहमयता लाने में सकारात्मक भूमिका निभा सकता है। इस बात का जीता-जागता सबूत है महाराष्ट्र के औरंगाबाद जिले की श्रीमती निर्मला गिरीश कान्दड़गांवकर देशपांडे। इन्होंने विवाह पश्चात लगभग दो दशकों तक घर-परिवार की ज़िम्मेदा
वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन में बेहतरीन अवसर
Posted on 07 Mar, 2013 11:16 AM पूरा विश्व लगातार हो रहे पर्यावरणीय परिवर्तनों को लेकर चिंतित है। खतरे में पड़ी प्रजातियों की सूची में लगातार इज़ाफा हो रहा है, ऐसे में पूरी दुनिया में वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन के लिए काम करने वाले विशेषज्ञों की मांग बढ़ती जा रही है। बढ़ती हुई इस मांग ने इस क्षेत्र को कॅरिअर के एक बेहतर विकल्प के रूप में प्रस्तुत किया है। आने वाले सालों में रिसर्च से लेकर फील्ड में बेहतर माहौल तैयार करने के लिए दुनिय
खुद का मैं नीर बहूं गन्दी नदियों में
Posted on 07 Mar, 2013 10:13 AM खुद का मैं नीर बहूं गन्दी नदियों में , साफ सी नदियां लाओ ना
मै पानी हूँ लेकिन मेरी अब तक कोई शक्ल नही है
नाम कोई इंसा सा दे दो ,शक्ल कोई इंसा सा दे दो
मेरा कोई रंग नही है पर मै हर रंग में रंग जाता हूँ
तुम भी अब मेरी ही तरह से पानी क्यों नही बन जाते हो
रिश्ते सा कुछ रख भी लो मुझको, खून सा अब कर लो मुझको
तुमने पाले तोते, कबूतर, पानी पाल दिखाओ ना
एक निर्मल कथा
Posted on 04 Mar, 2013 10:41 AM
हमारे दूसरे शहरों की तरह कोलकाता अपना मैला सीधे किसी नदी में नहीं उंडेलता। शहर के पूर्व में कोई 30 हजार एकड़ में फैले कुछ उथले तालाब और खेत इसे ग्रहण करते हैं और इसके मैल से मछली, धान और सब्जी उगाते हैं। यह वापस शहर में बिकती है। इस तरह साफ हो चुका पानी एक छोटी नदी से होता हुआ बंगाल की खाड़ी में विसर्जित हो जाता है। हुगली नदी के साथ कोलकाता वह नहीं करता जो दिल्ली शहर यमुना के साथ करता है या कानपुर और बनारस गंगा के साथ। इस अद्भुत कहानी को समझने का किस्सा बता रहे हैं एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी, जिनके कई सालों के प्रयास से यह व्यवस्था आज भी बची हुई है।

कोलकाता शहर को इतनी सेवाएं मुफ्त मिल रही हैं। अगर शहर ढेर-सा रुपया खर्च कर यह सब करने के आधुनिक संयंत्र लगा भी ले तो उनका क्या हश्र होगा? जानना हो तो राजधानी दिल्ली के सीवर ट्रीटमेंट संयंत्रों को देख लें। बेहद खर्चीले यंत्रों का कुछ लाभ है, प्रभाव है- इसे समझना हो तो यमुना नदी का पानी जांच लें।
क्या जी. डी. को मर जाने दिया जाए
Posted on 22 Feb, 2013 11:39 AM सबसे बड़ा ताज्जुब तो इस बात का है कि उस गंगा सेवा अभियानम् ने भी इ
swami gyanswaroop sanand
नर्मदा के पानी को लेकर कलह
Posted on 21 Feb, 2013 05:27 PM नर्मदा के पानी के बँटवारे को लेकर गुजरात और मध्य प्रदेश के बीच खींचतान शुरू हो चुकी है। दोनों राज्यों की कोशिश है कि नर्मदा का ज्यादा-से-ज्यादा पानी वे इस्तेमाल करें। गुजरात के कई इलाकों में नर्मदा के पानी को पहुंच जाने की वजह से वर्तमान सरकार को काफी राजनीतिक लाभ मिला है। पानी से राजनीतिक लाभ की मंशा में शिवराज सिंह चौहान मध्य प्रदेश के कई सूखे इलाकों में नर्मदा का पानी ले जाना चाहते हैं। नर्म
पेड़ों पर खतरा
Posted on 18 Feb, 2013 12:54 PM बड़े और विशाल वृक्ष न केवल पंछियों को आसरा और जीवों को आश्रय देते
समावेशी विकास का नया मंत्र
Posted on 16 Feb, 2013 10:31 AM आने वाले दस साल में आर्थिक वृद्धि की रफ्तार को बनाए रखने के लिए देश की बिजली उत्पादन की क्षमता 300,000 मेगावाट हो जानी चाहिए और इसके लिए जरूरी है कि जल-विद्युत परियोजनाओं की तादाद ज्यादा बढ़े। ज्यादातर बांध जैव-विविधता वाले क्षेत्रों में बनेंगे, इसलिए विशेषज्ञों का अनुमान है कि इलाके में जैव-विविधता घटकर एक तिहाई रह जाएगी और वनों के आकार में तकरीबन 1700 वर्ग किलोमीटर की कमी आएगी। लोगों की जीविका या संस्कृति के नाश या फिर विस्थापन की बात तो खैर है ही। वन और पर्यावरण मंत्रालय के बारे में उद्योग-जगत की आम धारणा है कि वह पर्यावरण पर होने वाले नुकसान के आकलन की आड़ में परियोजनाओं की मंजूरी में अड़ंगे लगाता है। उद्योग-जगत की इस राय से प्रधानमंत्री भी सहमत हैं। बीते नवंबर महीने में मंत्रिमंडल में नए चेहरे शामिल हुए तो उसके आगे प्रधानमंत्री ने अपनी सरकार की प्राथमिकताओं को दोहराते हुए कहा था कि वित्तीय घाटा देशी और विदेशी निवेश की राह रोक रहा है और निवेश की राह में खड़ी बाधाओं में एक नाम उन्होंने 'एन्वायरनमेंटल क्लियरेंस' का भी गिनाया था। ऐसा कहते समय निश्चित ही प्रधानमंत्री की नजर में वन और पर्यावरण मंत्रालय से जुड़ीं वे समितियां रही होंगी, जिनका गठन मंत्रालय ने 2006 की एक अधिसूचना के बाद किया था। यह अधिसूचना पर्यावरण सुरक्षा अधिनियम 1986 के तहत जारी की गई। अधिसूचना के केंद्र में पर्यावरण की सुरक्षा की चिंता तो थी ही, एक कोशिश 'विकास' की धारणा को समग्रता में देखने की भी थी और इसी के अनुकूल जारी अधिसूचना के उद्देश्य बड़े महत्वाकांक्षी थे।
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