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मौसम का मंथन - ध्रुवीय हिमखण्डों का पिघलना
Posted on 22 Apr, 2017 03:46 PM
विभिन्न जगहों की हवा के साथ आई धूल और दूसरे प्रदूषणों, बैक्टी
Glacier
पृथ्वी दिवस पर पृथ्वी के बदलते स्वरूपों की समीक्षा
Posted on 22 Apr, 2017 12:03 PM

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष


सम्पूर्ण विश्व पृथ्वी और उसके पर्यावरण की सुरक्षा हेतु संकल्पबद्ध होकर पिछले 47 सालों से लगातार 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाता आ रहा है। 1970 में पहली बार पूरी दुनिया ने पृथ्वी दिवस का शुभारम्भ एक अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के पर्यावरण संरक्षण के लिये किये गए प्रयासों को समर्थन देने के उद्देश्य से किया था। तब से जैसे यह एक विश्व परम्परा बन गई है और पृथ्वी दिवस ने हर देश के एक वार्षिक आयोजन का रूप ले लिया है। पर्यावरण की रक्षा के लिये भारत सहित कई देशों में कानून भी बनाए गए हैं, जिससे विभिन्न पर्यावरणीय असन्तुलनों पर काबू पाया जा सके।

लेकिन यथार्थ यह है कि पृथ्वी दिवस के सफल आयोजनों के बावजूद भी विश्व के औसत तामपान में हुई 1.5 डिग्री की वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने और अन्धाधुन्ध विकास कार्यों और पेट्रोल, डीजल तथा गैसों के अधिक इस्तेमाल के कारण कॉर्बन उत्सर्जन की बढ़ोत्तरी, ग्लेशियरों के पिघलाव और असन्तुलित भयंकर बाढ़ों और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने पृथ्वी का स्वरूप ही बदल दिया है।
ग्लोबल वार्मिंग
धरती के प्रति धर्म निभाने का आह्वान
Posted on 22 Apr, 2017 10:25 AM

 

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष


पृथ्वी का अस्तित्व खतरे मेंपृथ्वी का अस्तित्व खतरे मेंशेयर बाजार अपनी गिरावट का दोष, बारिश में कमी को दे रहा है। उद्योगपति, गिरते उत्पादन का ठीकरा पानी की कमी पर फोड़ रहे हैं। डाॅक्टर कह रहे हैं कि हिन्दुस्तान में बढ़ती बीमारियों का कारण जहरीला होते हवा-पानी हैं। भूगोल के प्रोफेसर कहते हैं कि मिट्टी में अब वह दम नहीं रहा। उपभोक्ता कहते हैं कि सब्जियों में अब स्वाद नहीं रहा। कृषि वैज्ञानिक कह रहे हैं कि तापमान बढ़ रहा है, इसलिये उत्पादन घट रहा है। किसान कहता है कि मौसम अनिश्चित हो गया है, इसलिये उसके जीवन की गारंटी भी अनिश्चित हो गई है।

पेयजल को लेकर आये दिन मचने वाली त्राहि-त्राहि का समाधान न ढूँढ पाने वाली हमारी सरकारें भी मौसम को दोष देकर अपना सिर बचाती रही हैं। अप्रैल के इस माह में बेकाबू होते पारे को हम सभी कोस रहे हैं, किन्तु अपने दोष को स्वीकार कर गलती सुधारने की दिशा में हम कुछ खास कदम उठा रहे हों; ऐसा न अभी सरकार के स्तर पर दिखाई देता है और न ही हमारे स्तर पर।

earth in danger
तापमान बढ़ने से परेशान धरती
Posted on 20 Apr, 2017 03:35 PM

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष


पृथ्वी के गर्म होने से संकट में जीवन पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है। यह सर्वविदित और निर्विवाद तथ्य है। संयुक्त राष्ट्र से जुड़ी अन्तर-सरकारी समिति के साथ कार्यरत 600 से ज्यादा वैज्ञानिकों का मानना है कि इसके कारणों में सबसे अधिक योगदान मनुष्य की करतूतों का है। पिछली आधी सदी के दौरान कोयला और पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधनों के फूँकने से वातावरण में कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरी ग्रीनहाउस गैसों की मात्रा खतरनाक हदों तक पहुँच गई है। मोटे अनुमान के मुताबिक आज हमारी आबोहवा में औद्योगिक युग के पहले की तुलना में 30 प्रतिशत ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है।

सामान्य स्थितियों में सूर्य की किरणों से आने वाली ऊष्मा का एक हिस्सा हमारे वातावरण को जीवनोपयोगी गर्मी प्रदान करता है और शेष विकिरण धरती की सतह से टकराकर वापस अन्तरिक्ष में लौट जाता है। वैज्ञानिकों के अनुसार वातावरण में मौजूद ग्रीनहाउस गैसें लौटने वाली अतिरिक्त ऊष्मा को सोख लेती हैं जिससे धरती की सतह का तापमान बढ़ जाता है।

पृथ्वी के गर्म होने से संकट में जीवन
पर्यावरण विकास का आधार बने तभी धरती बचेगी
Posted on 20 Apr, 2017 03:21 PM

पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष

गर्म हो रही पृथ्वी
पुस्तक परिचय : 'जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण'
Posted on 18 Apr, 2017 04:42 PM
स्वतंत्र मिश्र की पुस्तक ‘जल, जंगल और जमीन : उलट पुलट पर्यावरण’ प्राकृतिक संसाधनों के अविवेकपूर्ण दोहन से उत्पन्न आपदाओं और खतरों को समझने और उसका विश्लेषण करने की एक गम्भीर कोशिश है। मनुष्य प्रकृति का अंश है, लेकिन पिछली एक-दो शताब्दी में मनुष्य ने खुद को प्रकृति का जेता समझ लिया। विकास के नाम पर प्रकृति के साथ एक प्रकार का युद्ध छेड़ दिया गया। जब प्रकृति का पलटवार शुरू हुआ तो पूरी धरती का
जल, जंगल और जमीन - उलट-पुलट पर्यावरण
बड़े बाँध निर्माताओं से कुछ सवाल
Posted on 18 Apr, 2017 04:40 PM

बड़े बाँध की योजना से बड़ी आबादी को बहुत लाभ मिलने की सम्भावनाएँ दर्शाई जाती हैं, परन्तु

पानी की पुरानी परम्परा ही दिलाएगी राहत
Posted on 18 Apr, 2017 01:15 PM

जल संकट में नवीन और प्राचीन की गुंजाईश नहीं होती है। प्रकृति पानी गिराने का तरीका अगर नही

संसाधनों का असन्तुलित दोहन - सोच का अकाल
Posted on 18 Apr, 2017 01:03 PM

भूजल का यह संकट मात्र उसकी निर्भरता से दोहन के कारण ही नहीं, बल्कि दुनिया में औद्योगिक इक

लूटने के नए बहाने
Posted on 18 Apr, 2017 12:55 PM

हैरानी वाली बात तो यह है कि उत्तराखण्ड के जंगलों की सबसे ज्यादा चिन्ता अमेरिका, जर्मनी, फ

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