पृथ्वी दिवस, 22 अप्रैल 2017 पर विशेष
सम्पूर्ण विश्व पृथ्वी और उसके पर्यावरण की सुरक्षा हेतु संकल्पबद्ध होकर पिछले 47 सालों से लगातार 22 अप्रैल को पृथ्वी दिवस मनाता आ रहा है। 1970 में पहली बार पूरी दुनिया ने पृथ्वी दिवस का शुभारम्भ एक अमेरिकी सीनेटर जेराल्ड नेल्सन के पर्यावरण संरक्षण के लिये किये गए प्रयासों को समर्थन देने के उद्देश्य से किया था। तब से जैसे यह एक विश्व परम्परा बन गई है और पृथ्वी दिवस ने हर देश के एक वार्षिक आयोजन का रूप ले लिया है। पर्यावरण की रक्षा के लिये भारत सहित कई देशों में कानून भी बनाए गए हैं, जिससे विभिन्न पर्यावरणीय असन्तुलनों पर काबू पाया जा सके।
लेकिन यथार्थ यह है कि पृथ्वी दिवस के सफल आयोजनों के बावजूद भी विश्व के औसत तामपान में हुई 1.5 डिग्री की वृद्धि, औद्योगिक उत्पादन के बढ़ने और अन्धाधुन्ध विकास कार्यों और पेट्रोल, डीजल तथा गैसों के अधिक इस्तेमाल के कारण कॉर्बन उत्सर्जन की बढ़ोत्तरी, ग्लेशियरों के पिघलाव और असन्तुलित भयंकर बाढ़ों और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने पृथ्वी का स्वरूप ही बदल दिया है।
कुछ दिनों पहले अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी नासा की एक रिपोर्ट में स्पष्ट किया गया था कि पृथ्वी का स्वरूप लगातार बदल रहा है। इस रिपोर्ट में नासा ने कुछ चित्रों को साझा किया था, जिनमें पृथ्वी के कुछ भागों में हुए आश्चर्यजनक बदलावों की ओर भूवेत्ताओं का ध्यान आकृष्ट कराया गया है। इसमें नासा ने पृथ्वी के अलग-अलग भागों के स्वरूपों में 1985 से 2016 के दौरान आये परिवर्तनों को दर्शाया है। इन परिवर्तनों के कारणों की मूल में वे ही मुद्दे हैं, जो पिछले कई दशकों से पर्यावरणविदों और भूवेत्ताओं के शोधों के दायरों को एक ओर बढ़ाते जा रहे हैं, लेकिन उनके कारक जलवायु परिवर्तन, शहरीकरण या बाढ़ व आग लगने जैसे प्राकृतिक खतरों में सिमटे हुए हैं।नासा ने अपने एक आँकड़े के माध्यम से स्पष्ट किया है कि पिछले 25 वर्षों में संयुक्त राज्य अमेरिका की ग्रेट साल्ट झील में अविश्वसनीय बदलाव देखने में आये हैं। नासा द्वारा इस झील के 1985 और 2010 में अलग-अलग लिये गए चित्रों से स्पष्ट होता है कि 1985 में हिम के पिघलने और भारी वर्षा के कारण यह झील पानी से लबालब भरी होती थी। परन्तु पच्चीस वर्षों के दौरान क्षेत्र में आये सूखे के प्रकोप के कारण यह झील भी सूखती चली गई।
पृथ्वी के मनमोहक हिमाच्छादित स्वरूप को दर्शाने वाले ग्रीनलैंड की हिमचादरों में भी महज दो वर्षों 2014 और 2016 में अविश्वसनीय अन्तर देखने को मिले हैं। सामान्यतौर पर प्रत्येक वसंत या गर्मियों के मौसम में ग्रीनलैंड की हिम सतह में प्राकृतिक रूप से पिघले जल की जलधाराएँ, नदियाँ और झीलें बन जाती है। 2014 तक यह सिलसिला काफी नियमित रहा, लेकिन 2016 में अचानक ताप वृद्धि से हिम सतह शीघ्र पिघल गई थी और जगह-जगह गड्ढे बन गए थे। इनके कारण सूर्य प्रकाश अधिक अवशोषित होने से हिम पिघलाव बढ़ गया और अन्ततः इससे समुद्र के स्तर में वृद्धि हुई है।
इसी तरह का एक पृथ्वी स्वरूप में बदलाव ईरान की उर्मिया नामक झील में देखने को भी मिला है। वैज्ञानिक मानते हैं कि कुछ शैवालों और बैक्टीरिया के संयोजन के कारण समय-समय पर उर्मिया झील का रंग हरे से लाल होता रहता है। यह पाया गया है कि अप्रैल 2016 में यह झील हरे रंग की दिखाई दी थी, जबकि सिर्फ दो महिनों के अन्तराल पर जुलाई 2016 में इसका रंग बदलकर लाल हो गया। आमतौर पर यह बदलाव तब होता है जब गर्मियों में गर्मी और सूखने से इसका जल वाष्पित हो जाने से झील की लवणता बढ़ जाती है। नासा के उपग्रहों से प्राप्त आँकड़ों से एक और चौंकाने वाली जानकारी मिली है कि पिछले 14 वर्षों में इस झील का लगभग 70% सतह क्षेत्र लुप्त हो गया है।
कैलिफोर्निया के लॉस एंजिल्स से करीब 130 मील दूर सिएरा नेवादा और इन्यो पर्वत के बीच स्थित ओवेन्स घाटी की ओवेन्स झील हजारों सालों से पश्चिमी अमेरिका में प्रवासी जल व तटपक्षियों के लिये एक अत्यन्त महत्त्वपूर्ण प्रवास स्थल हुआ करती थी। हालांकि, 20वीं शताब्दी की शुरुआत में ओवेन्स नदी पर लॉस एंजिल्स के जलसेतु निर्माण के कारण काफी कुछ बदलाव आने शुरु हो गए थे। अभी भी जहरीले रसायनों और वायु प्रदूषण ने क्षेत्रीय पर्यावरण और पक्षियों के आवास को खतरे में डाल दिया है। 1985 और 2010 में लिये गए चित्रों से साफ दिखता है कि झील सिकुड़ गई है।
सहारा रेगिस्तान के दक्षिणी किनारे पर एक पश्चिम अफ्रीकी देश नाइजर है, वहाँ का अध्ययन करते हुए नासा ने 1976 और 2007 में लिये अलग-अलग चित्रों के माध्यम से वहाँ के बबन रफी नामक जंगलों के स्वरूप में आये बदलाव को दर्शाया है। इन चित्रों से स्पष्ट होता है कि 40 वर्षों के दौरान इस क्षेत्र की जनसंख्या चौगुनी हो जाने से जंगलों का अधिकांश भाग कृषि क्षेत्र में बदल गया है।
इसी तरह मैक्सिको की कोलोराडो नदी के स्वरूप में भी बदलाव आये हैं। 1985 में लिये गए चित्र में उच्च जलप्रवाह दिखाई देता है, जबकि 2007 में वहीं सर्वाधिक सूखे की स्थिति दृष्टिगोचर होती है। अध्ययनों से स्पष्ट हुआ है कि अत्यधिक वर्षा या गम्भीर सूखा प्रत्यक्ष रूप से कोलोराडो नदी बेसिन में उपलब्ध जल की मात्रा को बदलते हैं और साथ ही नदी के पश्चिमी क्षेत्रों में निवास करने वाले लोगों की बढ़ती जल आवश्यकताओं की पूर्ति का भी इस पर प्रभाव पड़ा है।
बोलिविया की दूसरी सबसे बड़ी झील मानी जाने वाली पूपो झील में अभूतपूर्व बदलाव देखे गए हैं। वास्तव में झील के आसपास रहने वाले लोगों ने मछली पकड़ने से लेकर खनन और कृषि के लिये जलस्रोतों का अतिदोहन किया है। 1994 में यह झील लगभग पूरी तरह सूख गई थी।
नासा ने हमारे भारत की नई दिल्ली में हुए शहरी विस्तार के कारण आये बदलाव को भी दर्शाया है। 1991 और 2016 में ली गई नई दिल्ली की अलग-अलग तस्वीरों से स्पष्ट दिख रहा है कि किस तरह हमारी दिल्ली की आबादी ने इन 25 सालों में 9.4 मिलियन से बढ़कर 25 मिलियन तक अपना विस्तार करके अन्तरिक्ष से अपने स्वरूप को बुरी तरह बदल दिया है।
पृथ्वी के निरन्तर बदलते स्वरूप ने निःसन्देह सोचने पर मजबूर किया है कि महज परम्पराओं के रूप में पृथ्वी दिवस मनाने से मानव सभ्यता अपने कर्तव्यों से छुटकारा नहीं पा सकती। सही मायनों में पर्यावरणीय कसौटियों पर खरे उतरने वाले कामों को करके ही पृथ्वी दिवस की सार्थकता सिद्ध हो सकेगी। वरना वह दिन दूर नहीं जब हम पृथ्वी पर अन्तरराष्ट्रीय दिवस मनाने लायक भी पृथ्वी के स्वरूप को नहीं रहने दे पाएँगे।
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Post By: Editorial Team