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भारत
जलपोतों के पर्यावरणीय दृष्टि से उचित रूप से विखण्डन के सिद्धान्त
Posted on 11 Jul, 2017 03:26 PM3.1 बेसेल संधि की अवधारणा
पृष्ठभूमि
सूचना का अधिकार कानून, 2005 के तहत लघु सिंचाई विभाग हमीरपुर के अन्तर्गत किये गए कार्यों के सम्बन्ध में जानकारी
Posted on 11 Jul, 2017 12:13 PM(Regarding details of works done by Micro Irrigation Department, Hamirpur under Right to Information Act, 2005)दिनांक- 27/06/2017
सेवा में
जन सूचना अधिकारी,
लघु सिंचाई विभाग,
हमीरपुर, उत्तर प्रदेश - 210301
विषय - सूचना का अधिकार कानून, 2005 के तहत लघु सिंचाई विभाग हमीरपुर के अन्तर्गत किये गए कार्यों के सम्बन्ध में जानकारी।
![आरटीआई](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/rti_3.png?itok=z36ivzz3)
भूमिका : बेसेल संधि
Posted on 10 Jul, 2017 04:14 PM2.1 उद्देश्य
जलपोतों के सम्पूर्ण एवं आंशिक विखण्डन के पर्यावरणीय दृष्टि से समुचित प्रबन्ध हेतु इस तकनीकी मार्गदर्शक सिद्धान्त का उद्देश्य है उन देशों को दिशा-निर्देश देना जो जलपोतों के विखण्डन की सुविधाएँ चलाने वाले हैं।
बढ़ती आबादी के कारण जीना होगा मुहाल
Posted on 10 Jul, 2017 03:25 PM
विश्व जनसंख्या दिवस 11 जुलाई पर विशेषआज दुनिया बढ़ती आबादी के विकराल संकट का सामना कर रही है। यह समूची दुनिया के लिये भयावह चुनौती है। असलियत यह है कि इस सदी के अंत तक दुनिया की आबादी साढ़े बारह अरब का आंकड़ा पार कर जायेगी। विश्व की आबादी इस समय सात अरब को पार कर चुकी है और हर साल इसमें अस्सी लाख की बढ़ोत्तरी हो रही है। शायद यही वजह रही है जिसके चलते दुनिया के मशहूर वैज्ञानिक स्टीफन हॉकिंग ने कहा है कि पृथ्वी पर टिके रहने में हमारी प्रजाति का कोई दीर्घकालिक भविष्य नहीं है। यदि मनुष्य बचे रहना चाहता है तो उसे 200 से 500 साल के अंदर पृथ्वी को छोड़कर अंतरिक्ष में नया ठिकाना खोज लेना होगा। बढ़ती आबादी समूची दुनिया के लिये एक बहुत बड़ा खतरा बनती जा रही है। सदी के अंत तक आबादी की भयावहता की आशंका से सभी चिंतित हैं। दरअसल आने वाले 83 सालों के दौरान सबसे ज्यादा आबादी अफ्रीका में बढ़ेगी।
![world population day](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/world%20population%20day_5.jpg?itok=VFgjq--V)
मन्दिरों से जुड़ा जल प्रबन्ध
Posted on 09 Jul, 2017 04:40 PMदक्षिण भारत में खेतों की सिंचाई पारम्परिक रूप में पानी के छोटे-छोटे स्रोतों से की जाती थी। सिंचाई के संसाधनों के संचालन में मन्दिरों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता था। हालांकि चोल (9वीं से 12वीं सदी) और विजयनगर दोनों ही साम्राज्यों ने कृषि को बढ़ावा दिया, फिर भी इनमें से किसी ने भी सिंचाई और सार्वजनिक कार्यों के लिये अलग से विभाग नहीं बनाया। इन कार्यों को सामान्य लोगों, गाँवों के संगठनों और मन्दिरोंमहासागरों पर महासंकट
Posted on 09 Jul, 2017 04:36 PMमहासागरों से हमारा गहरा सम्बन्ध है। क्योंकि महासागर ही हैं जो कार्बन डाइऑक्साइड और दूसरे खतरनाक अपशिष्टों को आसानी से अपने अन्दर समाहित कर लेते हैं। अब इनका अस्तित्व खतरे में है। महासागरों को बचाने के मकसद से संयुक्त राष्ट्र का पहला सम्मेलन हाल ही में अमेरिका में हुआ। इसमें विभिन्न देशों, संस्थाओं और व्यापार समूहों ने समुद्र को बचाने का संकल्प लिया। लेकिन क्या ये लोग इन पर अडिग रहेंगे?
गाद का साध
Posted on 09 Jul, 2017 04:31 PMनदी केवल बहता पानी नहीं है। गाद इसका अविभाज्य अंग है। गंगा और डॉल्फिन पर काफी शोध कर चुके जीव विज्ञानी रविन्द्र कुमार सिन्हा कहते हैं, “गाद के बिना तो नदियाँ मर जाएँगी। गाद नहीं होगी तो जैवविविधता भी नहीं होगी।” गाद और रेत से बने टापुओं पर कई तरह के पक्षी और जलीय जीव रहते हैं। मछलियाँ जब धारा के विपरीत चलती हैं तो जरूरत पड़ने पर इन टापुओं के पी
![](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/35723807862_d463575e5e_3.jpg?itok=OXjsQuIm)
अंकल सैम बनाम धरती माँ
Posted on 09 Jul, 2017 04:14 PMअगर बात वैश्विक जलवायु नीतियों की चल रही हो तो निश्चय ही नाटकीयता वह पहला शब्द नहीं है जो हमारे जेहन में आये। पेरिस जलवायु समझौते का नसीब एक शब्द से बयान हो तो वह ‘नाटकीय’ ही होगा। संयुक्त राष्ट्र अमेरिका के राष्ट्रपति डोनल्ड ट्रम्प ने 1 जून को अहम फैसला लिया जिसके बाद अमेरिका समझौते का हिस्सा नहीं रहा। समझौते का उद्देश्य वैश्विक तापमान में लगातार हो रही बढ़ोत्तरी को दो डिग्री सेल्सियस तक सी
![carbon emission](/sites/default/files/styles/featured_articles/public/hwp-images/carbon%20emission_3.jpg?itok=JxKV3jbI)
थार मरुभूमि (Thar Desert)
Posted on 09 Jul, 2017 03:48 PMथार क्षेत्र की खेती और जमीन का अन्य उपयोग बरसात पर ही टिका है