बुंदेलखंड (क्षेत्र)

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चम्बल
Posted on 20 Feb, 2010 03:46 PM


इत यमुना उत नर्मदा, इत चम्बल उत टौंस,
छत्रसाल से लरन की, रही न काहू हौंस।

धसान
Posted on 20 Feb, 2010 03:23 PM

शोणो महानदश्चात्र नर्मदा सुरसरि क्रिया
मंदाकिनी दशार्णा च चित्रकूटस्त थैव च।


(मार्कण्डेय पुराण 57/20)

गंगऊ अभ्यारण्य
Posted on 19 Feb, 2010 09:03 PM मध्य प्रदेश स्थित अन्य अभ्यारणों की तरह यह अभ्यारण्य तुलनात्मक रूप से पुराना अभ्यारण्य है। इसका नाम वर्तमान में गंगऊ वीरान ग्राम के नाम से रखा गया है। जो पन्ना स्टेट की पुरानी तहसील थी। पुराने समय का प्रतिष्ठित गाँव था जो वर्तमान में पन्ना टाइगर रिजर्व के सीमान्तर्गत बीरान गाँव हैं। गंगऊ अभ्यारण कराकल का (विशेष जंगली बिल्ली) (Kunx Carcal) अन्तिम निवास स्थान माना जाता है। मध्य भारत के शुष्क पर्णपात
नदियाँ
Posted on 18 Feb, 2010 05:12 PM

वे सभी जल धाराएँ जो भूमि पर स्वाभाविक रूप से बहती हैं, नदियाँ कहलाती हैं। नदियाँ निरंतर बहती रहें यह प्रकृति का नियम है। यह जल चक्र श्रृंखला का आवश्यक अंग है। नदी समुद्र में समाहित होती है। समुद्र का जल वाष्प बनकर पुनः वर्षा का रूप धारण करता है। और यह जल फिर समुद्र में मिल जाता है। नदियाँ पृथ्वी की ऊपरी सतह का व्यापक और विशिष्ट भौतिक रूप होती हैं। भूमि, ढाल और वर्षा से यह उत्पन्न होती हैं। नदिय

जल
Posted on 16 Feb, 2010 08:15 AM पृथ्वी पर पहला जीव जल में ही उत्पन्न हुआ था। जल इस युग में अनमोल है। ऐसा नहीं है कि इसी युग में पानी की अत्यधिक महत्ता प्रतिपादित की गई है, वरन हर युग में पानी का अपना महत्व रहा है। तभी तो रहीम का यह पानीदार दोहा हर एक की जुबान पर आज तक जीवित है-

रहिमन पानी राखिये, बिन पानी सब सून।
पानी गये न ऊबरे, मोती, मानुष, चून।।
बुंदेलखंड की जल व्यवस्था
Posted on 21 Dec, 2009 02:23 PM बुंदेलखंड इलाके में काफी कम बारिश होती है और इसकी अवधि भी बस दो महीने की है। ऊपर से इसकी मिट्टी मोटी होती है तथा ग्रेनाइट आधार होने के कारण भूजल भंडारण स्थल ज्यादा बड़ा नहीं होता है। मोटी मिट्टी होने के कारण इसमें ज्यादा समय तक पानी नहीं ठहर पाता है। इसीलिए यह जरूरी है कि इसे निरंतर रूप से पानी मिलता रहे, जिससे ज्यादा से ज्यादा जल संग्रहण किया जा सके।
अंधाधुंध जल दोहन ने तबाह किया बुंदेलखंड
Posted on 01 Sep, 2008 09:43 PM

बांदा/ उत्तर प्रदेश/ जागरण पिछले चार सालों से सूखे ने पूरे बुंदेलखंड को तबाह कर रखा है। धरती फटने की घटनाएं बढ़ रही हैं। सच तो यह है कि विदेशी तकनीक और जल प्रबंधन प्रणाली अपनाने से सिंचाई और पेयजल के इंतजाम में गंभीर गड़बड़ियां हुई हैं। बुंदेलखंड क्षेत्र आधुनिक तकनीक से अंधाधुंध इस्तेमाल का सर्वाधिक शिकार हुआ है। यहां लगाये गये राजकीय नलकूपों, हैंडपंपों आदि

सरोवर की जल गुणवत्ता
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