बिहार

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मछली पालन कर सुनील कमा रहे लाखों रुपए
Posted on 21 Aug, 2016 03:06 PM
पढ़ाई करने के बाद जब कहीं रोजगार नहीं मिला तो मछलीपालन में लग
बिहार के गाँवों में पानी पर टैक्स लगाने की तैयारी
Posted on 11 Aug, 2016 11:51 AM


पानी का प्रबन्ध पंचायत करेगी। पहली नजर में यह खबर सराहनीय लगती है। पंचायतों को पानी का प्रबन्धन करने के लिये बड़ी रकम दी जाएगी। 14वें वित्त आयोग की सिफारिश के अनुसार राज्य को जो रकम मिलने वाली है, उसमें से ग्रामीण क्षेत्रों में पानी के प्रबन्धन के लिये आवंटित रकम पंचायतों को दे दी जाएगी।

पानी का मसला लोक स्वास्थ्य अभियंत्रण विभाग के बजाय पंचायती राज विभाग को सौंप दिया जाएगा। पूरा खाका राज्य कैबिनेट को सौंप दिया गया है। लेकिन इस योजना में तालाब और कुओं का कहीं उल्लेख भी नहीं है। नलकूप, मोटरपम्प, पाइपलाइन, जलमीनार, जल-परिशोधन यंत्र इत्यादि के प्रावधान जरूर किये गए हैं। यहीं असली पेंच है जिससे खटका होता है।

सौर ऊर्जा चालित मिनी पाइप जलापूर्ति योजनाओं का उद्घाटन
Posted on 21 Jul, 2016 04:13 PM


हर घर नल का जल देने के निश्चय की ओर एक महत्त्वपूर्ण शुरुआत - मुख्यमंत्री
खैरा की योजना पूरी न होने पर चिन्ता का इजहार

बिहार में जल अधिकार कानून की जरूरत - राजेन्द्र सिंह
Posted on 18 Jun, 2016 09:57 AM
दुनिया में सबसे ज्यादा सिल्ट लेकर बहने वाली नदियों को तटबन्धो
बड़े पेड़ काटकर पौधे लगाने की कवायद
Posted on 06 Jun, 2016 04:11 PM

विश्व पर्यावरण दिवस, 05 जून 2016 पर विशेष

अशोक ने मछली पालन कर बनाई अलग पहचान
Posted on 05 Jun, 2016 11:14 AM
कुछ बेहतर करने की चाहत में कड़ी मेहनत से अपनी दशा ही नहीं बदल
पाँच से अधिक तालाब व 60 हजार से अधिक पौधे इस पंचायत में
Posted on 03 Jun, 2016 01:33 PM
तमाम बातों के बावजूद उपलब्धि पाना आसान नहीं था। गाँव कोई भी ह
मछली उत्पादन से उत्पादक बने कबीन्द्र
Posted on 31 May, 2016 11:45 AM
फुलवारी शरीफ, पटना की सरकारी हेचरी से 12000 हजार जीरा लेकर उस
पटना से आरम्भ होता जल-संकट
Posted on 30 May, 2016 03:05 PM


बिहार के जल संकट की कहानी का आरम्भ राजधानी पटना से होता है। गंगा के दक्षिण और पुनपुन के उत्तर स्थित पटना शहर के नीचे सोन नदी की प्राचीन धारा है और इसके अधिकांश भूगर्भीय जलकुण्डों का सम्पर्क सोन नदी से है। लेकिन हर वर्ष गर्मी आते ही पानी की मारामारी आरम्भ होती है। पानी की कमी और गन्दे पानी की सप्लाई को लेकर अक्सर इस या उस मुहल्ले में हाहाकार मचता है। पानी की अवस्था, आपूर्ति की व्यवस्था और प्रशासनिक कुव्यवस्था का जायजा लेना दिलचस्प है।

आधुनिक किस्म की सरकारी जलापूर्ति व्यवस्था शहर के 60 प्रतिशत से अधिक हिस्से को नहीं समेट पाता। जिस सिस्टम से जलापूर्ति होती है, वह पाइपलाइन आजादी के पाँच साल बाद 1952 में बिछी थी। तब से आबादी बढ़ती गई और पाइपलाइनें बूढ़ी होती गईं। उसका दायरा बढ़ाना तो दूर, देखरेख करने में गहरी लापरवाही बरती गई। पम्पों की संख्या बढ़कर तीन गुनी हो गई और उन्हें इन्हीं पुरानी पाइपलाइनों से जोड़ दिया गया।

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