बागेश्वर जिला

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स्वच्छ जल के लिए संघर्ष करता गांव
Posted on 18 Jan, 2022 01:27 PM

पानी है मगर पीने का साफ़ पानी नहीं है,फोटो साभार:चरखा फीचर

पानी है मगर पीने का साफ़ पानी नहीं है
माहवारी में सामाजिक कुरीतियों का दर्द सहती किशोरियां
Posted on 05 Jan, 2022 05:04 PM

माहवारी में सामाजिक कुरीतियों का दर्द सहती किशोरियां,फोटो साभार: चरखा फीचर

माहवारी में सामाजिक कुरीतियों का दर्द सहती किशोरियां
जल संग्रहण की एक आसान तकनीक - जियो टैंक
Posted on 19 Jan, 2018 01:21 PM


उत्तराखण्ड हिमालय में जल संरक्षण के लिये चाल-खाल की पारम्परिक पद्धति है, जो आज भी कई जगह पर विद्यमान है। पर इसके इतर ‘जियो टैंक’ नाम से एक नई तकनीक हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क संस्था) नौगाँव, उत्तरकाशी ने ईजाद की है। इस तकनीक का प्रयोग वे किसानों के साथ उत्तरकाशी के बाद भविष्य में बागेश्वर में करने जा रहे हैं।

जियो टैंक
प्राकृतिक संसाधन पर सामुदायिक मलकियत का उत्तराखण्ड सम्मेलन
Posted on 07 Apr, 2016 03:12 PM


तिथि: 15-16 अप्रैल, 2016
स्थान: अनासक्ति आश्रम, कौसानी (उत्तराखण्ड)
आयोजक: आजादी बचाओ आन्दोलन


हालांकि यह सच है कि शासन, प्रशासन और भामाशाह वर्ग ही अपने दायित्व से नहीं गिरे, बल्कि समुदाय भी अपने दायित्व निर्वाह में लापरवाह हुआ है। इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं, किन्तु धीरे-धीरे यह धारणा पुख्ता होती जा रही है कि जब तक स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के मालिकाना, समुदाय के हाथों में नहीं सौंप दिया जाता, न तो इनकी व्यावसायिक लूट को रोकना सम्भव होगा और न ही इनके प्रति समुदाय को जवाबदेह बनाना सम्भव होगा।

नवगठित राज्य झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड में राज्य बनने के बाद प्राकृतिक संसाधनों की लूट की जो तेजी सामने आई है, इसने जहाँ एक ओर राज्यों को छोटा कर बेहतर विकास के दावे को समग्र विकास के आइने में खारिज किया है, वहीं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में समाज का स्वावलम्बन देखने वालों को मजबूर किया है कि अब वे स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक मालिकाना सुनिश्चित करने के लिये रास्ता खोजें।

आशियाना बनाने पर प्रतिबन्ध, झील बनाने की खुली छूट
Posted on 27 Sep, 2015 03:59 PM

जनपद मुख्यालय बागेश्वर से 20 किमी के फासले पर बैजनाथ मन्दिर समूह है। इस मन्दिर समूह की दाईं ओर

river
पानी पर मंडराते संकट के बादल
Posted on 16 Jan, 2014 10:07 AM नौला सिर्फ पानी का स्रोत नहीं है, इसके साथ एक समुदाय की आस्था भी जुड़ी होती है। हर नौले के पास एक मंदिर बनाने की परंपरा थी। नौले के समीप चौड़ी पत्ती के वृक्ष लगाने का भी चलन था। लेकिन अब पानी बोतल में बंद हो गया तो उसके पीछे की सारी सोच ही व्यावसायिक हो गई। अब पानी पिलाना पुण्य नहीं है। पानी सिर्फ मुनाफे का सौदा बन गया है। ऐसे में भला एक समुदाय के सरोकार पानी से कैसे जुड़ पाएंगे? पारंपरिक ज्ञान में दीर्घकालिक वैज्ञानिकता और सामाजिकता है जो उसके आज भी प्रासंगिक होने का प्रमाण है। पीने का पानी संकट के साए में है। उत्तराखंड की कई प्रमुख बर्फानी नदियों से देश का एक बड़ा तबका अपनी प्यास बुझाता है। इसके बावजूद पीने के पानी का संकट आज तक बरकरार है। अधिकांश ग्रामीण व शहरी इलाकों में धरती को चीर कर हैंडपम्प लगवा दिए गए हैं। गली, मोहल्लों और घरों में नल लगे हैं जिनसे कभी-कभी पानी की बूंद टपकती ज़रूर है। इतने सारे ताम-झाम के अलावा सरकारी और गैर सरकारी जन जागृति के प्रयास भी पानी के लिए होते ही रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत का 70 फीसदी पानी प्रदूषित हो चुका है। आबादी बढ़ी है तो पानी का इस्तेमाल भी। अकेले दिल्ली शहर में 270 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन सप्लाई होता है। चेन्नई में पेयजल की कमी इस कदर है कि वहां प्रति व्यक्ति 70 लीटर पानी प्रतिदिन मुहैया हो पा रहा है। इतना सब एक तरफ है और दूसरी ओर हैं सातवीं सदी के कत्यूरी राजाओं द्वारा निर्मित नौले यानी पेयजल की सर्वोत्तम तकनीक।
जलते पहाड़
Posted on 27 Jun, 2012 09:50 AM उत्तराखंड के पहाड़ों में फिर आग लगी है। रानीखेत, कौसानी, बागेश्वर में इस समय ठंडी बयार की जगह धुआं और बदबुदार हवा नसीब हो रही है। देखने में यह आया है कि जंगलो की आग का क्षेत्रफल बढ़ा है और बारम्बारता बढ़ी है। सरकारी उदासीनता और वन माफियाओं ने जंगल की आग को और भयावह बना दिया है, बता रहे हैं गोविंद सिंह।
जलते पहाड़
चेतने की बारी
Posted on 27 Oct, 2010 11:20 AM बढ़ती आबादी से उत्तराखंड के भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र पर लगातार बोझ
Disaster
हरे-भरे गांव में फैल रही गंदगी
जाने क्यों उत्तराखंड के हरे भरे गावों में गंदगी का अम्बार लग रहा है Posted on 27 Feb, 2024 01:11 PM

"लोग कचरे को गधेरों (नहर) में फेंक देते हैं और फिर उस कचरे को कुत्ते घरों में लेकर आते हैं. कई बार तो इस्तेमाल किये गए पैड को भी गधेरों में फेंका जाता है. जिससे बहुत ज्यादा दुर्गंध आती है. कुत्ते कचरे के साथ उस पैड को भी इधर उधर फैला देते हैं अथवा घरों में ले आते हैं. जिससे बहुत ज्यादा मच्छर और दुर्गंध फैलती है." यह कहना है 45 वर्षीय कलावती देवी का.

हरे-भरे गांव में फैल रही गंदगी,फोटो-चरखा फीचर
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