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बागेश्वर जिला
जल संग्रहण की एक आसान तकनीक - जियो टैंक
Posted on 19 Jan, 2018 01:21 PM
उत्तराखण्ड हिमालय में जल संरक्षण के लिये चाल-खाल की पारम्परिक पद्धति है, जो आज भी कई जगह पर विद्यमान है। पर इसके इतर ‘जियो टैंक’ नाम से एक नई तकनीक हिमालय एक्शन रिसर्च सेंटर (हार्क संस्था) नौगाँव, उत्तरकाशी ने ईजाद की है। इस तकनीक का प्रयोग वे किसानों के साथ उत्तरकाशी के बाद भविष्य में बागेश्वर में करने जा रहे हैं।
Hydrogeological & Hydrochemical Scenario Around Garur-Baijnath Area, District Bageshwar (Uttarakhand)
Posted on 07 May, 2016 01:41 PM
प्राकृतिक संसाधन पर सामुदायिक मलकियत का उत्तराखण्ड सम्मेलन
Posted on 07 Apr, 2016 03:12 PM
तिथि: 15-16 अप्रैल, 2016
स्थान: अनासक्ति आश्रम, कौसानी (उत्तराखण्ड)
आयोजक: आजादी बचाओ आन्दोलन
हालांकि यह सच है कि शासन, प्रशासन और भामाशाह वर्ग ही अपने दायित्व से नहीं गिरे, बल्कि समुदाय भी अपने दायित्व निर्वाह में लापरवाह हुआ है। इसके अन्य कारण भी हो सकते हैं, किन्तु धीरे-धीरे यह धारणा पुख्ता होती जा रही है कि जब तक स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों के मालिकाना, समुदाय के हाथों में नहीं सौंप दिया जाता, न तो इनकी व्यावसायिक लूट को रोकना सम्भव होगा और न ही इनके प्रति समुदाय को जवाबदेह बनाना सम्भव होगा।
नवगठित राज्य झारखण्ड, छत्तीसगढ़ और उत्तराखण्ड में राज्य बनने के बाद प्राकृतिक संसाधनों की लूट की जो तेजी सामने आई है, इसने जहाँ एक ओर राज्यों को छोटा कर बेहतर विकास के दावे को समग्र विकास के आइने में खारिज किया है, वहीं प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण में समाज का स्वावलम्बन देखने वालों को मजबूर किया है कि अब वे स्थानीय प्राकृतिक संसाधनों पर सामुदायिक मालिकाना सुनिश्चित करने के लिये रास्ता खोजें।
आशियाना बनाने पर प्रतिबन्ध, झील बनाने की खुली छूट
Posted on 27 Sep, 2015 03:59 PMजनपद मुख्यालय बागेश्वर से 20 किमी के फासले पर बैजनाथ मन्दिर समूह है। इस मन्दिर समूह की दाईं ओर
पानी पर मंडराते संकट के बादल
Posted on 16 Jan, 2014 10:07 AMनौला सिर्फ पानी का स्रोत नहीं है, इसके साथ एक समुदाय की आस्था भी जुड़ी होती है। हर नौले के पास एक मंदिर बनाने की परंपरा थी। नौले के समीप चौड़ी पत्ती के वृक्ष लगाने का भी चलन था। लेकिन अब पानी बोतल में बंद हो गया तो उसके पीछे की सारी सोच ही व्यावसायिक हो गई। अब पानी पिलाना पुण्य नहीं है। पानी सिर्फ मुनाफे का सौदा बन गया है। ऐसे में भला एक समुदाय के सरोकार पानी से कैसे जुड़ पाएंगे? पारंपरिक ज्ञान में दीर्घकालिक वैज्ञानिकता और सामाजिकता है जो उसके आज भी प्रासंगिक होने का प्रमाण है। पीने का पानी संकट के साए में है। उत्तराखंड की कई प्रमुख बर्फानी नदियों से देश का एक बड़ा तबका अपनी प्यास बुझाता है। इसके बावजूद पीने के पानी का संकट आज तक बरकरार है। अधिकांश ग्रामीण व शहरी इलाकों में धरती को चीर कर हैंडपम्प लगवा दिए गए हैं। गली, मोहल्लों और घरों में नल लगे हैं जिनसे कभी-कभी पानी की बूंद टपकती ज़रूर है। इतने सारे ताम-झाम के अलावा सरकारी और गैर सरकारी जन जागृति के प्रयास भी पानी के लिए होते ही रहते हैं। आंकड़े बताते हैं कि भारत का 70 फीसदी पानी प्रदूषित हो चुका है। आबादी बढ़ी है तो पानी का इस्तेमाल भी। अकेले दिल्ली शहर में 270 करोड़ लीटर पानी प्रतिदिन सप्लाई होता है। चेन्नई में पेयजल की कमी इस कदर है कि वहां प्रति व्यक्ति 70 लीटर पानी प्रतिदिन मुहैया हो पा रहा है। इतना सब एक तरफ है और दूसरी ओर हैं सातवीं सदी के कत्यूरी राजाओं द्वारा निर्मित नौले यानी पेयजल की सर्वोत्तम तकनीक।जलते पहाड़
Posted on 27 Jun, 2012 09:50 AMउत्तराखंड के पहाड़ों में फिर आग लगी है। रानीखेत, कौसानी, बागेश्वर में इस समय ठंडी बयार की जगह धुआं और बदबुदार हवा नसीब हो रही है। देखने में यह आया है कि जंगलो की आग का क्षेत्रफल बढ़ा है और बारम्बारता बढ़ी है। सरकारी उदासीनता और वन माफियाओं ने जंगल की आग को और भयावह बना दिया है, बता रहे हैं गोविंद सिंह।चेतने की बारी
Posted on 27 Oct, 2010 11:20 AM बढ़ती आबादी से उत्तराखंड के भंगुर पारिस्थितिकी तंत्र पर लगातार बोझचेतावनी देती केदारघाटी
Posted on 30 Aug, 2024 03:25 AMकेदारनाथ के पैदल मार्ग पर गत 26 अगस्त 2024 को घोड़े खच्चरों की आवा-जाही शुरू हो गई। उस दिन 20 से अधिक घोड़ा-खच्चर पर राशन, सब्जी व अन्य सामग्री केदारधाम पहुँचाई गई। इसके बाद सरकार की मंशा अब केदारनाथ के पैदल मार्ग से यात्रा शुरू करने की है। गत 31 जुलाई 2024 को केदारनाथ के पैदल मार्ग पर बादल फटने के बाद से गौरीकुण्ड से केदारनाथ के लिए घोड़ा-खच्चरों का संचालन बंद कर दिया गया था। गौरीकुण्ड-केदारना