आशियाना बनाने पर प्रतिबन्ध, झील बनाने की खुली छूट

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जनपद मुख्यालय बागेश्वर से 20 किमी के फासले पर बैजनाथ मन्दिर समूह है। इस मन्दिर समूह की दाईं ओर गौमती नदी बहती है। इसी नदी को आजकल बाँधने का कार्य जोर-शोर से चल रहा है कि मन्दिर के सौंदर्य को और आकर्षक बनाने के लिये यहाँ गौमती नदी पर कृत्रिम झील का निर्माण किया जा रहा है। इस निर्माण में भारी भरकम डायनामाइट का प्रयोग किया जा रहा है। जो कि मन्दिर समूह से लेकर 1000 मीटर के दायरे तक प्रभावित कर रहा है।

डायनामाइट से जमीन थर्रा जाती है यह सभी जानते हैं मगर आशियाना बनाने से ना तो ज़मीन थर्राती है और ना ही किसी तरह का खतरनाक पर्यावरणीय नुकसान होता है। लेकिन राज्य में ऐसे पुरातत्व के स्थल हैं जहाँ आशियाने बनाने के लिये लोगों को कानून का पाठ पढ़ाया जा रहा है।

कानून यह है कि पुरातत्व स्थल के 200 मीटर के दायरे में कोई भी नव निर्माण नहीं किया जा सकता है। क्योंकि ऐसे स्थलों पर नव निर्माण से पुरातत्व की सुन्दरता और पर्यावरण पर खतरनाक प्रभाव पड़ेगा। ऐसा भारतीय पुरातत्व विभाग मानता है। इस तरह का ही वाकाया है राज्य के सबसेे महत्त्वपूर्ण पुरातत्व स्थल बैजनाथ का।

ज्ञात हो कि जनपद मुख्यालय बागेश्वर से 20 किमी के फासले पर बैजनाथ मन्दिर समूह है। इस मन्दिर समूह की दाईं ओर गौमती नदी बहती है। इसी नदी को आजकल बाँधने का कार्य जोर-शोर से चल रहा है कि मन्दिर के सौंदर्य को और आकर्षक बनाने के लिये यहाँ गौमती नदी पर कृत्रिम झील का निर्माण किया जा रहा है।

इस निर्माण में भारी भरकम डायनामाइट का प्रयोग किया जा रहा है। जो कि मन्दिर समूह से लेकर 1000 मीटर के दायरे तक प्रभावित कर रहा है। जबकि मन्दिर समूह से आधा किमी. के फासले पर 95 परिवारों वाला तलीहाट गाँव है। जहाँ कत्यूरी शैली के लक्ष्मीनारायण, रक्षकदेवल, सत्यनारायण, नीलाचौरी जैसे पुरातत्विक मन्दिर स्थापित हैं। गाँव जिस तरह साल भर यहाँ आने वाले पर्यटकों से गुलजार रहता है मगर यहाँ ग्रामीण अब उससे अधिक परेशानियों का सामना कर रहे हैं।

ग्रामीणों का कहना है कि वे दादा-परदादा के जमाने के जर्जर हो चुकेे आवासीय भवनों का पुनर्निर्माण नहीं कर पा रहे हैं। वे कहते हैं कि कत्यूर घाटी भूकम्प की दृष्टी से जोन चार में आता है। यदि यह क्षेत्र जोन पाँच में होता तो उनके पुराने जर्जर भवन कब के जमींदोज हो जाते। उनका आरोप है कि पुरातत्व विभाग की गाईड लाईन के अनुसार पुरातत्व की प्रॉपर्टी के परिक्षेत्र की सीमा के 200 मीटर के दायरे में कोई नवनिर्माण नहीं किया जा सकता है। जबकि गाँव की बसासत कुछ ऐसी है कि ये सभी मन्दिर अलग-अलग मोहल्लो में स्थापित हैं। हालात यूँ है कि सम्पूर्ण गाँव ही पुरातत्व के परिक्षेत्र में आ रहा है।

ग्रामीण दयाल सिंह काला, विसन सिंह, नन्दन सिंह, विजय पाण्डे, पार्वती देवी, पपू तिवारी, रमा पन्त का कहना है कि वे पिछले 50 वर्षों से गाँव को विस्थापित करने की माँग कर रहे हैं लेकिन सरकार के कानों तक जूं नहीं रेंगी। अब वे आन्दोलन की नई रणनीति बना रहे हैं। कहते हैं कि गाँव पर या तोे पुरातत्व का ही अधिकार रहेगा या ग्रामीणों का। उनका आरोप है कि वे अपने आवासीय भवन की मरम्मत तक नहीं कर सकते।

उन्हें भवनों की मरम्मत के लिये पुरातत्व विभाग के दफ्तरों के चक्कर काटने पड़ते हैं। फिर भी उन्हें मरम्मत की संस्तुती नहीं मिलती। दूसरी तरफ राज्य सरकार पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये बैजनाथ मन्दिर समूहों के पास से बह रही गोमती नदी को बाँधकर तीनों दिशाओं की ओर से एक कृत्रिम झील का रूप दे रही है। जिसका निर्माण कार्य जोरों पर चल रहा है। ग्रामीण कहते हैं कि लोगों को आवासीय भवन की मरम्मत तक की संस्तुति नहीं मिल पा रही है लेकिन मन्दिर समूहों के तीनों ओर बनाई जा रही कृत्रिम झील के लिये कोई कानून नही है।

जहाँ इस निर्माण में भारी ब्लास्टिंग का इस्तेमाल किया जा रहा है। जबकि ग्रमीण सिर्फ-व-सिर्फ अपने आशियानों की मरम्मत व पुनर्निर्माण करना चाहते हैं। आरोप है कि आशियाने बनाने में तो किसी तरह का विस्फोट व ब्लास्टिंग प्रयोग में ही नहीं लाया जाता है। वे सरकार की इस उपेक्षापूर्ण नीति से काफी आक्रोश में है। जो भविष्य में सरकार के लिये एक खतरनाक समस्या के रूप में सामने आ सकता है। प्रहसन यह है कि उनका गाँव, उनका घर फिर भी जेल जैसी जिन्दगी जीने के लिये सरकारी नीतियों के कारण विवश हैं।

गौमती नदी जहाँ कृत्रिम झील बनाने की तैयारी की जा रही है

तलीहाट गाँव का इतिहास


गाँव पुरातत्व की दृष्टी से भी महत्त्वपूर्ण इसलिये है कि इसी गाँव को कत्यूरी राजाओं ने अपनी राजधानी के लिये विकसित किया था। जहाँ एक ओर कत्यूरी राजाओं की राजसत्ता के अवशेष हैं वहीं गाँव में लक्ष्मीनारायण, सत्यनारायण, नीलाचौंरी, रक्षकदेवल जैसे चार मन्दिर ऐसे हैं जिनकी अपनी-अपनी धार्मिक मान्यताएँ ही नहीं वरन् पुरातात्विक महत्त्व भी हैं। सत्यनारायण के मन्दिर में स्थापित विष्णु भगवान की अष्टधातु से बनी हुई छः फिट ऊँची मूर्ति है। जो देश भर में अकेली मूर्ति है। गाँव में ये मन्दिर कत्यूरी शिल्पकला का अद्भुत नमूना है।

मूल समस्या


तलीहाट गाँव को 1958 में भारत सरकार के पुरातत्व विभाग ने अधिग्रहित कर दिया था। तब से लोग यहाँ पुरातत्व के कानून को ढो रहे हैं। पूर्व की अपेक्षा गाँव की आबादी भी अब काफी बढ़ चुकी है। सम्पूर्ण गाँव ही पुरातत्व की दृष्टी से महत्त्वपूर्ण है। इस कारण भी पुरातत्व के कानून यहाँ लागू होते हैं।

ग्रामीणों की माँग


तलीहाट गाँव का या तो सरकार पूर्ण रूप से विस्थापन व पुनर्वास करे। या ग्रामीणों को यथा स्थान पर आवासीय भवनों के नवनिर्माण व मरम्मत करने बाबत पुरातत्व विभाग द्वारा लगाई गई पाबन्दी को हटा दें। जैसे बैजनाथ मन्दिर समूह के पास से बह रही गौमती नदी पर बनाई जा रही कृत्रिम झील निर्माण में किसी तरह का प्रतिबन्ध नहीं है।

अब सहन लायक नहीं यह दोहरा कानून-विपीन जोशी


(सामाजिक कार्यकर्ता व युवा लेखक तलीहाट)

सरकार अपने फायदे के लिये ग्रामीणों को इस्तेमाल कर रही है। क्योंकि एक तरफ मन्दिर समूह के 20 मीटर से लेकर 500 मीटर तक के दायरे में गौमती नदी पर बैजनाथ झील का निर्माण किया जा रहा है। दूसरी तरफ ग्रामीण अपने आशियानों की मरम्मत तक नहीं कर पा रहे हैं। ग्रामीणों का तय हो चुका है कि वर्षों पुरानी इस समस्या को अब सहन करना ठीक नहीं है।

सरकार के इस दोगले चरित्र के खिलाफ वे न्यायालय जाने व आन्दोलन की तैयारी कर रहे हैं। जिस तरह झील निर्माण की इजाजत दी गई उसी तरह तलीहाट के ग्रामीणों को भवन व अन्य निर्माण की संस्तुति दी जानी चाहिए। ग्रामीण भी जानते हैं कि ऐसी धरोहरों का संरक्षण व संवर्धन करना पड़ता है। लेकिन सरकार ग्रामीणों के साथ एक कानून को दो रूपों में लागू कर रही है। जो सहन योग्य नहीं है।

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Post By: RuralWater
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