सचिन कुमार जैन

सचिन कुमार जैन
जलवायु परिवर्तन और बुंदेलखंड
Posted on 05 Feb, 2011 09:33 AM

परीकथा नहीं है जलवायु परिवर्तन

मध्यप्रदेश में कृषि
Posted on 04 Feb, 2011 05:03 PM

मध्यप्रदेश के लिए कृषि वास्तविक अर्थों में जीवन रेखा रही है। विद्यालयों में पढ़ने वाले बच्चे जब पहले ''राज्य'' पर निबंध लिखते थे तो उस निबंध का पहला वाक्य यही होता था कि मध्यप्रदेश एक कृषि प्रधान राज्य है, यहां की तीन चौथाई जनसंख्या कृषि और कृषि से जुड़े व्यवसाय के जरिये जीवनयापन करती है और यही व्यावसायिक एकरूपता समाज को वास्तव में एक सूत्र में पिरोने का काम करती है। परन्तु आज की स्थिति में निश

जलवायु परिवर्तन, कोपनहेगन और हम
Posted on 10 Dec, 2009 07:27 AM

भारत की सरकार ने अपनी नीति जरूर तय कर ली कि वह सन् 2020 तक 25 प्रतिशत और 2037 तक 37 प्रतिशत कटौती कार्बन उत्सर्जन में करेगा; परन्तु इस नीति को तय करने में लोकतांत्रिक नहीं बल्कि आर्थिक-राजनीतिक रणनीति अपनाई गई। भारत के पर्यावरण मंत्री ने भारत की संसद को सूचित किया कि हम कोपनहेगन में अपने इन लक्ष्यों को सामने रखेंगे परन्तु सवाल यह है कि इन लक्ष्यों पर संसद में बहस क्यों नहीं हुई, जन प्रतिनिधियों

कोपेनहेगेन सम्मेलन
बुंदेलखंड को चाहिए एक देशज नजरिया
Posted on 21 Oct, 2009 09:21 AM
बुंदेलखंड को विकास के एक ऐसे देशज क्रांतिकारी नजरिए की जरूरत है जो सूखे को हरियाली में बदल दे। ऐतिहासिक रूप से भी बुंदेलखंड प्रकृति के प्रकोपों से जूझता रहा है। पानी का संकट वहां इसलिए गहराता है क्योंकि वहां की भौगोलिक स्थितियां पानी को टिकने ही नहीं देती हैं। यहां जमीन पथरीली भी है और कुछ इलाकों में उपजाऊ भी।
जलवायु परिवर्तन और मध्यप्रदेश
Posted on 04 Jul, 2009 12:46 PM

क्या धरती बन रही है चिता?


मध्यप्रदेश के उत्तर-पूर्वी क्षेत्र में जलवायु परिवर्तन का सीधा असर देखा और महसूस किया जा सकता है। यह एक अहम अनाज उत्पादक इलाका रहा है पर यहां पिछले सात सालों में इसके चलते किसानों व पान उत्पादकों का जिंदगी बदल कर रख दी है। जलवायु परिवर्तन ने यहां कृषि आधारित आजीविका और खाद्यान्न उत्पादन पर खासा असर डाला है। मध्यप्रदेश के उत्तर-पूर्वी जिलों में पिछले 9 सालों में खाद्यान्न उत्पादन में 58 फीसदी की कमी दर्ज की गई है। पिछले चार-पांच सालों में बेहद कम पानी बरसने या कई क्षेत्रों में सूखा पड़ने के चलते इस क्षेत्र के तकरीबन सभी कुएं सूख चुके हैं।
जरूरी है योजना आयोग में बदलाव
Posted on 03 Aug, 2014 11:54 AM
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी सोचते हैं कि योजना आयोग को खत्म किया जाना चाहिए। इस सोच के दो आधार हो सकते हैं। एक यह कि वे खुद राज्य के मुख्यमंत्री रहे हैं और उन्हें भली-भांति यह अंदाजा है कि योजना आयोग एक जवाबदेय और निष्पक्ष निकाय नहीं है। वह राज्यों और देश के व्यापक हितों को महत्त्व देने के बजाए पर्यावरण-जन-जैव विविधता विरोधी और असमानता पैदा करने वाली नीतियों को तेजी से आगे बढ़ा रहा है। दूसरा आधा
पानी का हिसाब-किताब
Posted on 01 Oct, 2009 08:17 AM
शिवपुरी की छर्च पंचायत की सत्तर साल की विधवा पांचोनाय कुशवाहा के लिये जीवन के बचे हुये दिन किसी औपचारिकता से अधिक नहीं है। वह किसी जनकल्याणकारी योजना की पात्र नहीं है। आज वह सरकार द्वारा चलाये जा रहे राहत कार्य के अन्तर्गत पानी रोकने वाली संरचना पर कठिन शारीरिक श्रम कर रही हैं। दिन भर तपती धूप में काम करने के बाद शाम को यदि उसने 100 क्यूबिक फिट की खंती बनाई होगी तभी उसे मिलेगी न्यूनतम मजदूरी वर्ना
बारिश के दिनों की संख्या घटी: कैसे होगा सूखे का सामना
Posted on 03 Sep, 2009 12:25 PM

बुंदेलखंड में अकाल और सूखे के घाव गहरे होते जा रहे हैं. जीवन की संभावनाएं क्रमशः कम होती जा रही हैं. लोग बड़ी उम्मीद से आसमान में टकटकी लगाए देख रहे हैं लेकिन साल दर साल बादल धोखा दे कर निकल जा रहे हैं. पिछले 10 सालों में बारिश के दिनों की संख्या 52 से घट कर 23 पर आ गई है.
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