सचिन कुमार जैन

सचिन कुमार जैन
खाद्य सुरक्षा की अवधारणा
Posted on 31 Aug, 2011 01:14 PM

देश में चार गुना उत्पादन बढ़ने के बाद भी लोगों की रोटी का सवाल ज्यों का त्यों बना हुआ है। हम अब

कीटनाशक और रसायन
Posted on 14 Aug, 2011 06:10 PM

हिमालय और उत्तरप्रदेश के पहाड़ी इलाकों जहां अब तक इन रसायनों का उपयोग नहीं होता है, वहां इससे ह

कीटनाशक
भुखमरी के दौर में खाद्यान्न सब्सिडी की हकीकत
Posted on 13 Aug, 2011 06:58 PM

खाद्य सुरक्षा की अवधारणा व्यक्ति के मूलभूत अधिकार को परिभाषित करती है। अपने जीवन के लिये हर किसी को निर्धारित पोषक तत्वों से परिपूर्ण भोजन की जरूरत होती है। महत्वपूर्ण यह भी है कि भोजन की जरूरत नियत समय पर पूरी हो। इसका एक पक्ष यह भी है कि आने वाले समय की अनिश्चितता को देखते हुये हमारे भण्डारों में पर्याप्त मात्रा में अनाज सुरक्षित हो, जिसे जरूरत पड़ने पर तत्काल जरूरतमंद लोगों तक सुव्यवस्थित तर

बुंदेलखण्ड का विकास, सूखा और पैकेज
Posted on 11 Aug, 2011 09:48 AM

42 यहां जंगल का जो अनुपात है महज 8 प्रतिशत है वह अब बढ़कर 10 साल में राज्य के औसत के बराबर हो जायेगा। यहां के पारम्परिक तालाब और जल संरचना पुर्नजीवित हो जायेगी, यह स्पष्ट होना चाहिये। जरूरी है कि इस इलाके के जल, जंगल और जमीन को नुकसान पहुंचाने वाले हर कार्यक्रम पर प्रतिबंध हो ताकि विनाश के रास्ते हम विकास की ओर न बढ़ें।

बुंदेलखण्ड की महागाथा हमें जो संदेश बार-बार दे रही है, उस संदेश के पकड़ने के लिये हमारा राजनैतिक नेतृत्व बिल्कुल तैयार नहीं दिखता है। बुंदेलखण्ड ने अपना इतिहास आप गढ़ा है। यही एक मात्र ऐसा इलाका था जो मुगल साम्राज्य के अधीन नहीं रहा क्योंकि प्राकृतिक संसाधनों और बुनियादी जरूरतों जैसे अनाज-पानी-पर्यावरण के मामलों में यह आत्मनिर्भर राज्य था। इसी आत्मनिर्भरता ने बुंदेलखण्ड को स्वतंत्र रहने की ताकत दी। आज बुंदेलखण्ड के बारे में देश चिंतित हो गया है क्योंकि अपनी जीवटता से पनपा यह इलाका पिछले एक दशक में ज्यादातर साल सूखे की चपेट में रहा। यह सूखा पानी का नही जनकेंद्रित विकास के नजरिये के अभाव का है। यह एक राजनैतिक सवाल बना, जिसका जवाब एक विशेष आर्थिक पैकेज में खोजा गया। कुछ ही दिनों पहले निर्णय हुआ है कि मध्यप्रदेश के बुंदेलखण्ड इलाके को इस विशेष पैकेज के तहत 3627 करोड़ रुपए जैसी भारी भरकम राशि दी जा रही है।

संभालिये.... रोजगार गारण्टी योजना भटक रही है!
Posted on 11 Aug, 2011 08:02 AM

42 लाख लक्षित परिवारों में से 35 लाख को जॉब कार्ड और 11 लाख को रोजगार दे दिया गया है परन्तु वह

गरीबी की अवधारणा
Posted on 10 Aug, 2011 07:32 PM

इस व्यवस्था में महिला सरपंचों को ज्यादा संघर्ष करना पड़ रहा है और जहां वे सक्षम है उन पंचायतों

रोजगार गारंटी के जरिये सामंती व्यवस्था को चुनौती
Posted on 26 Jul, 2011 02:26 PM

अक्टूबर और नवम्बर 2007 के दो महीनों में एक गांव के इन मजदूरों ने अपने रोजगार-आजीविका के अधिकार

अब केवल भूख से नहीं अन्याय से मुक्ति के लिये हो रोटी का कानून
Posted on 26 Jul, 2011 01:16 PM

भुखमरी आज के समाज की एक सच्चाई है परन्तु मध्यप्रदेश के सहरिया आदिवासियों के लिये यह सच्चाई एक मिथक से पैदा हुई, जिन्दगी का अंग बनी और आज भी उनके साथ-साथ चलती है भूख। आर.वी.

जैविक खेती का अर्थशास्त्र
Posted on 31 May, 2011 11:28 AM

उन्होंने ऐसी व्यवस्था भी विकसित कर ली है कि एक ख़ास कंपनी के बीजों पर उसके द्वारा बनाए जाने वाल

खेतों पर रसायनों की बारिश
Posted on 05 Feb, 2011 01:41 PM

खेती में रासायनिक खाद और कीटनाशक के बेतहाशा बढ़ते उपयोग से पैदा हो रहे खतरों पर खूब सीटी बजती रही है, पर व्यवहार नही बदले। मध्यप्रदेश के झाबुआ का पेटलावद ब्लाक तो यह बता रहा है कि वहां खेत, फसल और किसान पूरी तरह से घातक रसायनों में ही डूब चुके हैं। यहां एक हेक्टेयर खेत में 600 से 800 किलोग्राम रासायनिक उर्वरक और 5 से 10 लीटर रासायनिक कीटनाशक छिड़के जा रहे है।

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