राकेश दीवान

राकेश दीवान
पूजे जाते थे पलायन करने वाले
Posted on 21 Nov, 2011 11:35 AM

पलायन की चपेट में चकरघिन्नी होते लोगों को यह जानकारी चौंका सकती है कि एक जमाने में हुनरमंद पलायन करने वालों को पूजा भी जाता था. अपने-अपने इलाकों की मौजूदा बदहाली के बवंडर में फंसकर दाल-रोटी कमाने के लिए सैकडों मील दूर, अनजान इलाकों में जाने वाले आज भले ही शोषित, गरीब और बेचारे कहे-माने जाते हों, लेकिन एक समय था जब उन्हें उनकी श्रेष्ठ कलाओं, तकनीक के कारण सम्मान दिया जाता था.

महाकौशल, गोंडवाना और बुंदेलखंड समेत देश के कोने-कोने में बने तालाब, नदियों के घाट, मंदिर इसी की बानगी हैं. सुदूर आंध्रप्रदेश के कारीगर पत्थर के काम करने की अपनी खासियत के चलते इन इलाकों में न्यौते जाते थे. काम के दौरान उनके रहने, खाने जैसी जरूरतों की जिम्मेदारी समाज या घरधनी उठाता था और काम खत्म हो जाने के बाद उनकी सम्मानपूर्वक विदाई की जाती थी. गोंड रानी दुर्गावती के जमाने में बने जबलपुर और उसके आसपास के बड़े तालाब, नदियों पर बनाए गए घाट इन पलायनकर्ताओं की कला के नमूने हैं.

गुजरात से ओडीशा तक फैली जसमाओढन की कथा किसने नहीं सुनी होगी? इस पर अनेक कहानियां, नाटक लिखे,
आज भी पानीदार है छत्तीसगढ़ (दो)
Posted on 04 Feb, 2011 04:39 PM
कहते हैं कि आज का तीन चौथाई रायगढ़ शहर तालाबों पर बसा है। शहर की सब
आज भी पानीदार है छत्तीसगढ़ (एक)
Posted on 04 Feb, 2011 04:31 PM
छत्तीस गढ़ों वाले छत्तीसगढ़ की इस संपन्नता का कारण जाहिर है घने, ह
याद रखें इन जलस्रोतों को
Posted on 28 Feb, 2010 07:44 PM

पहले हम कोइतुरों को जानें


महाकौशल में पानी के स्रोतों तथा सार्वजनिक हित के निर्माण कार्यों को बनवाने और रख-रखाव करने का अधिकतर काम 12-13वीं से 17-18वीं सदी के बीच वहाँ राज करने वाले गोंड राजाओं के जमाने का है। सन् 1801 के मई महीने में इस इलाके का भ्रमण करने वाले एक यूरोपीय पर्यटक कोलब्रुक ने लिखा है कि ‘इस प्रदेश की समृद्धि के लिए, जिसका पता उसकी राजधानी से चलता है तथा जिसकी पुष्टि उन जिलों से होती है। जिनका हमने भ्रमण किया। मैं इस प्रदेश के राजाओं की सराहना अंतर्राज्यीय वाणिज्य के बिना गोंड राजाओं की छत्रछाया में अनेक व्यक्तियों ने उर्वर भूमि में कृषि व्यवसाय अपनाया तथा उसकी समृद्धि के अमिट चिन्ह आज भी साफ-सुथरे भवनों में,
जल को जानने-पहचानने वाले
Posted on 08 Mar, 2010 10:36 AM
बैतूल के हरिनारायण मालवीय को पता नहीं था कि वे अपनी नौकरी छोड़कर एक बड़ा काम करने वाले हैं। किसी तरह थोड़ी-बहुत पढ़ाई करके मध्यप्रदेश सरकार में ग्राम सेवक की नौकरी पा जाने वाले मालवीय नहीं जानते थे कि आसपास के इलाकों में उनका नाम इतने सम्मान से लिया जाएगा। असल में ग्राम सेवक के अपने प्रशिक्षण के सिलसिले में वे एक बार होशंगाबाद जिले के पँवारखेड़ा स्थित प्रशिक्षण केन्द्र में गए थे, जहाँ उनके उस्तादो
नैनपुर, जहाँ खिलौनों-सी रेल और समुद्र-सा तालाब है
Posted on 08 Mar, 2010 09:59 AM
मंडला से प्रसिद्ध कान्हा-किसली राष्ट्रीय उद्यान के कुछ आगे का नैनपुर असल में उमरिया, निवारी और नैनपुर गाँवों की जमीनों पर 19 वीं शताब्दी में बसा था। पहले अंग्रेजों ने यहाँ के पायली, पारेदा, डेहला, अलीपुर आदि 84 गाँवों को मालगुजारों को बेच दिया था जिनमें से चौधरियों ने 400 रुपए में घुघरी गाँव खरीदा था। और कमला ने 900 रुपए में नैनपुर। उस जमाने में ब्राह्मण बहुल इस इलाके को ‘चौरासी इलाका’ इसीलिए कहा
भुआ-बिछिया में, जल-प्रदाय करते थे अहीर
Posted on 08 Mar, 2010 09:47 AM
मंडला-रायपुर मार्ग पर भुआ नाले के दोनों और बसा 15 हजार की आबादी वाला कस्बा भुआ-बिछिया पिछले 30-40 सालों में ही बढ़ा है। देश के भिन्न-भिन्न इलाकों से आए व्यापारियों, कर्मचारियों ने ही यहाँ के अधिकांश पक्के मकान बनवाए हैं। लेकिन पानी के मामले में यह कस्बा आजकल संकटग्रस्त ही माना जाता है।
अंजनिया जहाँ का फूटाताल, शेरों की प्याऊ था
Posted on 08 Mar, 2010 09:44 AM
‘हवेली’ क्षेत्र का एक और बड़ा कस्बा है मंडला-रायपुर राजमार्ग पर बसा, अंजनिया। कहते हैं कि हनुमानजी की माँ अंजनी का यहाँ निवास था। बम्हनी की तरह यहाँ भी पुराने तालाब हैं। हर्राही और अंधियारी तालाब गोंडों के समय के हैं। इनकी सफाई में पुराने अवशेष और एक सिल-लोढ़ा मिला था। गाँव की चारों दिशाओं में फूटाताल, केवलाही, बड़ा तालाब और हर्राही बने थे जिनमें से शुरू के तीन मालगुजारों ने बनवाए थे। कहते हैं कि
सम्पन्न ‘हवेली’ क्षेत्र का केन्द्र है-बम्हनी बंजर
Posted on 08 Mar, 2010 09:39 AM
‘हवेली’ क्षेत्र के 45-50 गाँवों के केन्द्र बम्हनी बंजर में, जिसे ब्राह्मणी बंजर भी माना जाता है, 40 एकड़ का सागर तालाब है और थाने के सामने लमती तालाब से आज भी लोग दाल पकाने के लिए पानी ले जाते हैं। इनके अलावा यहाँ बबूरा, परसा, पुच्छा और बड़ा तालाब सरीखे एक सदी से भी अधिक पुराने अनेकों प्राकृतिक तालाब हैं। बंजर नदी के कछार के इस क्षेत्र में सतही पानी के उपयोग के कारण इस क्षेत्र में फ्लोरोसिस की शिक
खिचड़ी से बने तालाब
Posted on 08 Mar, 2010 09:33 AM
सन् 1890 का भीषण अकाल पूरे गोंडवाने में आज भी याद किया जाता है। उस दौर में यहाँ असंख्य तालाब बनाए गए थे जिनमें मजदूरी की तरह खिचड़ी बाँटी जाती थी। छिंदवाड़ा की सौंसर तहसील में तब का बना एक तालाब आज भी काम कर रहा है। बालाघाट में भी ऐसे कई तालाब मौजूद हैं। उस दौर में एक अंग्रेज इंजीनियर सर सॅफ कॉटन थे जिन्हें पानी की बड़ी परियोजनाएँ बनाने में महारत हासिल थी। इस वजह से ही उन्हें ‘सर’ की उपाधि दी गई थ
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