राजु कुमार
राजु कुमार
मनरेगा में अब मजदूरी से स्थाई रोज़गार की ओर
Posted on 13 Aug, 2013 11:16 AMमहात्मा गांधी राष्ट्रीय रोज़गार गारंटी योजना में अनियमितताओं एवं भ्रष्टाचार की शिकायत, मजदूरी की मांग नहीं होना, मजदूरी के भुगतान में देरी, मुआवजा नहीं मिलना, बेरोज़गारी भत्ताबच्चों के पेयजल एवं स्वच्छता के अधिकारों पर मीडिया एवं संस्थाएं बनाएं सामंजस्य
Posted on 18 Jul, 2013 10:27 AMमध्य प्रदेश के सीहोर जिले में पिछले कई सालों से कार्यरत स्वयंसेवी संस्था समर्थन ने बच्चों के पेयजल एवं स्वच्छता के अधिमध्य प्रदेश में शुरू हुआ जलाभियान
Posted on 26 Mar, 2013 09:52 AM देश को विकसित बनाने के लिए जल एवं स्वच्छता को आम आदमी तक पहुंच सुनिश्चित करना होगा। रेडक्रॉस सोसायटी के अध्यक्ष मुकेश नायक का कहना है कि स्वच्छता के अभाव एवं खेतों में रसायन के उपयोग से जलस्रोत एवं नदियां प्रदूषित हो रही हैं। भूजल के दोहन से पानी खत्म हो रहा है। हमें इसे रोकना होगा। वाटर एड की ममता दास की यह टिप्पणी है कि अभियान की अगुवाई प्रभावित लोगों को ही करना है, जिसमें सिविल सोसायटी के लोग सहयोग करेंगे।जल अधिकार को लेकर मध्य प्रदेश के दो दर्जन से ज्यादा स्वैच्छिक संस्थाओं ने हाथ मिला लिया है और उन्होंने प्रदेश में जलाभियान शुरू कर दिया है। कई जिलों के सुदूर अंचलों से आए वंचित तबक़ों की उपस्थिति में भोपाल में आयोजित एक रैली के बाद अभियान की शुरुआत की गई। प्रदेश के कृषि मंत्री रामकृष्ण कुसमारिया कार्यक्रम में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल होकर अभियान का समर्थन किया। उन्होंने कहा कि रासायनिक खेती से पानी ज्यादा प्रदूषित हुआ है। लोगों को अपनी आदतों में सुधार लाना होगा एवं पानी के दोहन को रोकना होगा, तभी हम जल बचा पाएंगे। सरकार ने पानी बचने के लिए कई योजनाएं बनाई है। जरूरत है कि हम सबको आरोप-प्रत्यारोप से परे होकर मिलजुलकर काम करने की।पेयजल एवं शौचालय बिना कैसे पसंद आए स्कूल
Posted on 31 Dec, 2012 03:56 PM एक जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए पिछले अक्तूबर में सर्वोच्च न्याभोपाल के भूजल में बढ़ता जा रहा है प्रदूषण
Posted on 29 Dec, 2012 01:45 PMयूनियन कार्बाइड के कचरे का निष्पादन सरकार के लिए बड़ा सिरदर्द बन चुका है। समय बीतने के साथ ही इसका निपटारा कठिन से कठिन होता जा रहा है। 1993-95 में कमर सईद नाम के ठेकेदार को रसायनिक कचरा पैक करने का जिम्मा दिया गया था। उसने फैक्ट्री के आसपास के डंपिंग साइट से बहुत ही कम कचरे की पैक किया था, जो लगभग 390 टन था। उसके बाद परिसर एवं परिसर से बाहर इंपोरेशन तालाब में पड़े कचरे को पैक करने की जहमत किसी ने नहीं उठाई। भोपाल में यूनियन कार्बाइड के कचरे को डंप करने के लिए बनाए गए सोलर इंपोरेशन तालाब की मिट्टी कितना जहरीला है, यह आज के लोगों को नहीं मालूम। अब तो यहां की मिट्टी को लोग घरों में ले जा रहे हैं एवं दीवारों में लगा रहे हैं। यूनियन कार्बाइड के जहरीले रासायनिक कचरे वाले इस मिट्टी को छुने से भले ही तत्काल असर नहीं पड़े, पर यह धीमे जहर के रूप में शरीर पर असर डालने में सक्षम है। कचरे का जहरीलापन इससे साबित होता है कि आसपास की कॉलोनियों के साथ-साथ यह 5 किलोमीटर दूर तक के क्षेत्र के भूजल को जहरीला बना चुका है। इलाके के भूजल का इस्तेमाल करने का साफ मतलब है, अपने को बीमारियों के हवाले करना। भोपाल गैस त्रासदी पर काम कर रहे विभिन्न संगठन लगातार यह आवाज़ उठाते रहे हैं कि यूनियन कार्बाइड परिसर एवं उसके आसपास फैले रासायनिक कचरे का निष्पादन जल्द से जल्द किया जाए, पर सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण आज भी यूनियन कार्बाइड परिसर के गोदाम में एवं उसके आसपास खुले में कचरा पड़ा हुआ है।बाल अधिकारों की उपेक्षा
Posted on 17 Dec, 2012 11:46 AMमध्यप्रदेश में बाल अधिकारों को ज्यादा महत्व नहीं दिया जा रहा है, जबकि बाल अधिकारों की उपेक्षा से पैदा होने वाली समस्याओं के कारण न केवल देश में बल्कि विदेशों में भी मध्य प्रदेश की बदनामी हो रही है। मध्य प्रदेश उन राज्यों में से एक है, जहां सबसे ज्यादा बच्चों के खिलाफ हिंसा होती है, सबसे ज्यादा बच्चे कुपोषित हैं, सबसे ज्यादा बच्चों की मौत होती हैं। कुपोषण, डायरिया एवं पानी के कारण होने वाली बीमारियपहले पानी फिर निर्मल गांव
Posted on 15 Oct, 2012 05:10 PMसमग्र स्वच्छता अभियान, मर्यादा अभियान, निर्मल ग्राम एवं अन्य कई नाम से ग्रामीण भारत को समग्र रूप से स्वच्छ बनाने का कार्य लंबे अर्से से चल रहा है, जिसमें एक महत्वपूर्ण घटक है - खुले में शौच खत्म करना। लेकिन क्या खुले में शौच को खत्म करना आसान है? इसका सकारात्मक जवाब मिलना फिलहाल मुश्किल है क्योंकि अब तक देश में निर्मल ग्राम घोषित किए गए अधिकांश गांवों में लोग खुले में शौच आज भी जा रहे हैं।मर्यादा बचाने को घर-घर में हो शौचालय
Posted on 15 Sep, 2012 03:47 PM महिलाओं की मर्यादा की बात मुंडेरी तक ही सीमित नहीं रही, बल्कि इसकी भनक आसपास के गांवों को भी लग गई और कुछ ही समय में आसपास के कई ग्राम पंचायतों में अगुवा बहिनी बनकर महिलाएं स्वयं के घरों में शौचालय बनवाने के साथ-साथ दूसरे को भी प्रेरित करने का काम करने लगी हैं। शौचालय बनाने के लिए मंदिर में शपथ लेना बाध्यकारी नहीं है, बल्कि यह प्रतीकात्मक है, जिसकी जिस ईश्वर में आस्था है, वह उनकी शपथ ले रहा है। ‘‘गांव की नई नवेली दुल्हन दिन के उजाले में या घर आए मेहमानों के सामने किसी के सामने नहीं निकलती, पर जब शौच के लिए उसे खुले खेत, नदी या तालाब किनारे जाना पड़ता है, तो वह न केवल उसके लिए बल्कि पूरे घर के लिए अपमानजक स्थिति होती है। घर में शौचालय का होना सिर्फ स्वास्थ्य एवं स्वच्छता का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि महिलाओं के सम्मान का मामला है।’’ मध्यप्रदेश के शिवपुरी जिले के मुंडेरी गांव की पुष्पा का यह उद्गार कोई भाषण नहीं है, बल्कि उस अभियान की अवधारणा है, जिसका बीजारोपण पिछले साल 2 अक्टूबर को स्थानीय स्तर पर शिवपुरी जिले में किया गया था। इस अवधारणा को मध्यप्रदेश में राज्य स्तर पर अपनाया गया है, जिसे मर्यादा अभियान नाम दिया गया है।तस्वीर ही नहीं, बदल गई तकदीर भी
Posted on 30 Jan, 2012 01:01 PMकृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. अब्बास कहते हैं, ‘‘इन चारों गांवों में सौ फीसदी किसानों के खेतों में तालाब हैं चारों गांव में बने 400 से ज्यादा तालाबों के बनने से गांव में सबसे बड़ा बदलाव जैव विविधता में आया। तालाबों ने किसानों की तकदीर एवं गांव की तस्वीर बदल दी। उत्कृष्ट जैव विविधता, इतनी सुविधा एवं संपन्नता वाले गांव शायद ही कहीं दूसरी जगह हो।’’
जोश एवं जुनून के बेजोड़ संगम ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि देवास जिले के एक नहीं, कई गांवों की तस्वीर एवं हजारों किसानों की तकदीर बदल गई। किसी गांव में सभी के पक्के मकान हो, आधे से ज्यादा के पास ट्रैक्टर हो, दर्जन भर से ज्यादा के पास टाटा सफारी सहित महंगी चार पहिया गाड़ी हो, दो पहिया गाड़ियों की संख्या घरों से ज्यादा हो, पानी की कोई समस्या नहीं हो और कुछ घरों में एसी भी लगी हो, तो यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि सचमुच में यह गांव ही है। पर इन सुविधाओं एवं संपन्नता वाला यह क्षेत्र टोंकखुर्द विकासखंड के धतूरिया, गोरवा, हरनावदा एवं निपानिया जैसे गांव ही हैं। इनके विकास से देश-दुनिया प्रभावित हुआ है। देश-विदेश की कई नामी संस्थाएं इनके विकास का अध्ययन कर रही हैं।