तस्वीर ही नहीं, बदल गई तकदीर भी

कृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. अब्बास कहते हैं, ‘‘इन चारों गांवों में सौ फीसदी किसानों के खेतों में तालाब हैं चारों गांव में बने 400 से ज्यादा तालाबों के बनने से गांव में सबसे बड़ा बदलाव जैव विविधता में आया। तालाबों ने किसानों की तकदीर एवं गांव की तस्वीर बदल दी। उत्कृष्ट जैव विविधता, इतनी सुविधा एवं संपन्नता वाले गांव शायद ही कहीं दूसरी जगह हो।’’

जोश एवं जुनून के बेजोड़ संगम ने कुछ ऐसा कर दिखाया कि देवास जिले के एक नहीं, कई गांवों की तस्वीर एवं हजारों किसानों की तकदीर बदल गई। किसी गांव में सभी के पक्के मकान हो, आधे से ज्यादा के पास ट्रैक्टर हो, दर्जन भर से ज्यादा के पास टाटा सफारी सहित महंगी चार पहिया गाड़ी हो, दो पहिया गाड़ियों की संख्या घरों से ज्यादा हो, पानी की कोई समस्या नहीं हो और कुछ घरों में एसी भी लगी हो, तो यह विश्वास करना कठिन हो जाता है कि सचमुच में यह गांव ही है। पर इन सुविधाओं एवं संपन्नता वाला यह क्षेत्र टोंकखुर्द विकासखंड के धतूरिया, गोरवा, हरनावदा एवं निपानिया जैसे गांव ही हैं। इनके विकास से देश-दुनिया प्रभावित हुआ है। देश-विदेश की कई नामी संस्थाएं इनके विकास का अध्ययन कर रही हैं।

बात 2005 की है। जब पूरा मालवा सूखे की चपेट में था एवं सैकड़ों एकड़ खेत के मालिक सिर पर हाथ रखकर बैठे थे। देवास जिला भी उन्हीं में से एक था। कर्ज में डूबे किसान पानी के अभाव में अपने खेत का 20 फीसदी से ज्यादा का इस्तेमाल नहीं कर पाते थे।

तब तत्कालीन कलेक्टर उमाकांत उमराव ने हरनावदा के रघुनाथ सिंह तोमर, धतूरिया गांव के सुभाष जलौदिया, निपानिया गांव के दिलीप सिंह, गोरवा गांव के रणछोड़ पटेल सहित कुल 10 किसानों को अपने खेत के 10 फीसदी हिस्से पर अपने खर्च से तालाब बनाने की मुहिम चलाने के लिए राजी किया। पहले साल के प्रयास ने रंग दिखाया और किसानों को लागत के मुकाबले बहुत मुनाफा हुआ और उन्होंने अगले 3 साल में बैंकों के सारे कर्ज वापस कर दिए।

बाद के वर्षों में तालाब निर्माण से किसानों ने सौ फीसदी जमीन पर रबी एवं खरीफ दोनों फसलें लेना शुरू किया और उन्हें इतना मुनाफा हुआ कि दो वक्त की रोटी जुटाने की मशक्कत करने वाले किसान अब साधन संपन्न हो गए। इन किसानों ने कृषक संगोष्ठियों में अपने अनुभवों को साझा करना शुरू किया, गांव-गांव में दौरा कर किसानों को जोड़ा एवं उन्हें विश्वास में लिया। किसानों को बताया कि खेत में तालाब निर्माण ही संपन्नता की कुंजी है। दूसरे किसानों के सामने इनके विकास का मॉडल सामने था और 10-20 करते हुए इलाके के सारे किसानों ने अपने खेतों में तालाब बनाकर विकास की नई परिभाषा गढ़ दी।

सुभाष जलौदिया कहते हैं, ‘‘धतूरिया के किसानों ने गांव में 40 लाख रुपए की लागत से एक मंदिर बनाया है, जबकि इस मंदिर के निर्माण के लिए 2005 में कलेक्टर से 80 हजार की मदद के लिए आवेदन दिया था।’’ रणछोड़ पटेल ने बताया, ‘‘गोरवा में 20 साल बाद साइबेरियन क्रेन सहित कई प्रवासी पक्षियों ने अपना डेरा डाला है। हिरणों की झुंड, सियारों की भागदौड़ एवं अन्य छोटे जंगली जानवरों ने भी पानी के लिए इन इलाकों का चक्कर लगाना शुरू कर दिया है।’’

रघुनाथ सिंह तोमर के अनुसार, ‘‘पहले गांव में रोजगार नहीं था। मजदूर ही नहीं, किसानों के बेटे भी पलायन कर गए थे। अब गांव में रोजगार की कमी नहीं हैं।’’ निपानिया के दिलीप सिंह कहते हैं, ‘‘कुछ किसानों की सफलता देखकर बैंकों ने तालाब निर्माण के लिए ऋण देना शुरू कर दिया, जबकि पहले ऐसा नहीं होता था। तालाब के लिए लिया गया ऋण सभी किसानों ने दो से तीन साल में चुका दिया।’’

कृषि विभाग के सहायक निदेशक डॉ. अब्बास कहते हैं, ‘‘इन चारों गांवों में सौ फीसदी किसानों के खेतों में तालाब हैं चारों गांव में बने 400 से ज्यादा तालाबों के बनने से गांव में सबसे बड़ा बदलाव जैव विविधता में आया। तालाबों ने किसानों की तकदीर एवं गांव की तस्वीर बदल दी। उत्कृष्ट जैव विविधता, इतनी सुविधा एवं संपन्नता वाले गांव शायद ही कहीं दूसरी जगह हो।’’

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