राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह
कैसे बचे अपना पानी
Posted on 10 Apr, 2018 06:40 PM

भारत में जल संकट दिनोंदिन बढ़ता जा रहा है और यह कोई प्राकृतिक समस्या नहीं है,
राज व समाज मिलकर करें प्रयास
Posted on 08 Jun, 2017 01:00 PM

झारखंड के सरकारी जल संसाधनों को झारखंडी समुदायों में मूल्यवान
नदी जोड़ से टूटेगा समाज
Posted on 06 Jan, 2015 04:17 PM
आजादी के बाद आज तक की सरकार बाढ़ और सुखाड़ क्षेत्र को घटा नहीं पायी
जहाज तुम बहती रहना
Posted on 21 Apr, 2014 09:42 AM

प्राक्कथन

River
खिजूरा का जल-कुम्भ
Posted on 13 Mar, 2014 04:35 PM

‘नीमी’ से सीख मिली


जीवन के लिए जल जरूरी है और इसकी प्राप्ति तभी संभव है जब मानव और प्रकृति के बीच सह अस्तित्व अक्षुण्ण रहे। इस हेतु जरूरी है कि नदियों को शुद्ध-सदानीरा बनाएं; जहां बैठकर सर्वत्र हरियाली की आशा-आकांक्षा के साथ अपना वर्तमान व साझे भविष्य को संवारने वाली सर्वहितकारी नीति-निर्माण की जा सके। नीति-निर्माण से पूर्व समूचे देश में नदियों के किनारे छोटे-छोटे कुम्भ आयोजित किए जाएं, जहां प्रकृति संरक्षण से जुड़े सभी सवालों पर सार्थक बहस हो। डाँग क्षेत्र के लोगों को जल-कुम्भ करने की प्रेरणा भी जयपुर जिले के नीमी गांव में हुए जल-सम्मेलन को देख कर ही मिली थी। नीमी गांव के लोगों ने अपने गांव में तरुण भारत संघ के आंशिक सहयोग से पानी के कई अच्छे काम किए थे। पानी के कारण उनकी खेती की पैदावार में आशातीत वृद्धि हुई थी। अचानक आई इस समृद्धि की खुशी में तथा देशभर के अन्य लोगों को प्रेरणा देने के उद्देश्य से उन्होंने तरुण भारत संघ के सहयोग से एक विशाल जल-सम्मेलन का आयोजन रखा था।

उल्लेखनीय है कि इसी सम्मेलन से जल-बिरादरी जैसे राष्ट्रीय स्तर के एक बड़े संगठन का भी जन्म हुआ था।
डांग के पानी की कहानी
Posted on 13 Mar, 2014 12:27 PM
‘महेश्वरा नदी’ को सदानीरा बनाने का काम यहां के समाज के सदाचार और श्रम से ही संभव हो सका है। यह एक अद्भुत काम है; जिसे यहां के लोगों ने सहजता, सरलता व श्रमनिष्ठा के भाव से निर्विघ्न सम्पन्न किया है। उम्मीद है कि ‘महेश्वरा नदी’ के इस सामाजिक साझे श्रम के अभिक्रम को देख कर अब दूसरे क्षेत्र के लोग भी इससे अच्छी सीख ले सकेंगे। ‘महेश्वरा नदी’ राजस्थान की उन सात नदियों में से एक है; जिन्हें समाज के साझे श्रम ने पुनर्जीवित कर सदानीरा बनाया। लेकिन अगर आप यहां के सिंचाई विभाग के किसी सरकारी अधिकारी, इंजीनियर अथवा जिला कलेक्टर तक से भी पूछेंगे तो वह आपको ‘महेश्वरा नदी’ के बारे में कुछ भी नहीं बता सकेगा; कारण कि इस इलाके के किसी भी सरकारी नक्शे में महेश्वरा नाम की कोई नदी दर्ज ही नहीं है।

लेकिन सपोटरा की डांग में बसने वाला हर बाशिंदा आपको ‘महेश्वरा नदी’ के बारे में तथा इसके पुनः लौटे जीवन के बारे में सहर्ष विस्तृत जानकारी दे देगा।
महेश्वरा नदी की कहानी
Posted on 09 Mar, 2014 04:08 PM

भौगोलिक परिचय

बड़े बांध और छोटे तालाब
Posted on 07 Dec, 2012 02:21 PM
हमारे पूर्वज जानते थे कि तालाबों से जंगल और जमीन का पोषण होता है। भूमि के कटाव एवं नदियों के तल में मिट्टी के जमाव को रोकने में भी तालाब मददगार हैं, लेकिन बड़े बांधों के निर्माण की होड़ ने हमारी उस महान परंपरा को नष्ट कर दिया।
1950 में भारत के कुल सिंचित क्षेत्र की 17 प्रतिशत सिंचाई तालाबों से की जाती थी। ये तालाब सिंचाई के साथ-साथ भू-गर्भ के जलस्तर को भी बनाए रखते थे, इस बात के ठोस प्रमाण उपलब्ध हैं। सूदूर भूतकाल में तो 8 प्रतिशत से अधिक सिंचाई तालाबों से ही होती थी। तालाबों में पाए गए शिलालेख इसके जीते-जागते प्रमाण हैं। इस स्वावलम्बी सिंचाई योजना का अंग्रेजों ने जानबूझकर खत्म करने का जो षड़यंत्र रचा था, उसे स्वतंत्र भारत के योजनाकारों ने बरकरार रखा है और वर्तमान, जनविरोधी,ग्राम-गुलामी की सिंचाई योजना को तेजी से लागू किया है। किसी भी देश की प्रगति या अवनति में वहां की जल संपदा का काफी महत्व होता है। जल की उपलब्धि या प्रभाव के कारण ही बहुत सी सभ्यताएं एवं संस्कृतियां बनती और बिगड़ी हैं। इसलिए हमारे देश की सांस्कृतिक चेतना में जल का काफी ऊंचा स्थान रहा है। हमारे पूर्वज जानते थे कि तालाबों से जंगल व जमीन का पोषण होता है। भूमि के कटाव एवं नदियों के तल में मिट्टी के जमाव को रोकने में भी तालाब मददगार होते हैं। जल के प्रति एक विशेष प्रकार की चेतना और उपयोग करने की समझ उनकी थी। इस चेतना के कारण ही गांव के संगठन की सूझ-बूझ से गांव के सारे पानी को विधिवत उपयोग में लेने के लिए तालाब बनाए जाते थे। इन तालाबों से अकाल के समय भी पानी मिल जाता था। जैसा कि गांवों की व्यवस्था से संबंधित अन्य बातों में होता था, उसी तरह तालाब के निर्माण व रख-रखाव के लिए भी गाँववासी अपनी ग्राम सभा में सर्वसम्मति से कुछ कानून बनाते थे।
सरकार और समाज को चेतना होगा
Posted on 09 Aug, 2012 05:05 PM

पानी के प्रति शिक्षण सही हो तो समाज का बदलाव होता है राजस्थान के लोगों ने 1200 से ज्यादा बेपानीदार गांवों को पान

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