राजेंद्र सिंह

राजेंद्र सिंह
पानी नहीं पिला सकते तो सरकार भी नहीं चला सकते
Posted on 23 Jun, 2009 07:09 PM

28अप्रैल को माननीय उच्चतम न्यायालय ने एक आदेश दिया है जिसके तहत न्यायालय ने भारत सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा है कि सबको पानी नहीं पिला सकते तो फिर सरकार भी नहीं चला सकते. माननीय न्यायलय ने भारत सरकार से कहा है कि जल्द से जल्द बरसाती पानी को रोकने के लिए देशज और स्थानीय ज्ञान को प्रमुखता देते हुए योजना तैयार करे.
पर्यावरण पर किया जाता प्रहार भी हिंसा ही है
Posted on 30 Sep, 2018 01:20 PM

जल, जंगल, जमीन, हवा जैसे प्राकृतिक संसाधनों को भरपूर मुनाफे के लिये बेरहमी से लूटना, दुहना एक तरह की हिंसा

स्वामी
सिर्फ पानी नहीं है पानी
Posted on 07 Jun, 2018 05:38 PM

पानी शुरू से ही हमारी संस्कृति और संस्कार का हिस्सा रहा है। लेकिन समय के साथ-साथ हम इसे भूलते जा रहे हैं। इसका द

पानी से धानी तक का सफर
Posted on 13 Mar, 2014 12:32 PM

परंपरा से मिला रास्ता


जब कोई व्यक्ति अथवा समुदाय समाज के भले के लिए काम करता है तो भगवान भी उसकी मदद करता है। इसीलिए तो अगले ही वर्ष ‘मोरे वाले ताल’ ने अपने जलागम क्षेत्र से बहकर आई हुई बरसात की हर एक बूंद को अपने आगार में रोक लिया। एक साथ इतना सारा पानी देखकर लोग हर्षातिरेक से आनंद-विभोर हो उठे। लेकिन दूसरे ही क्षण यह सोच कर चिंतित भी हो गए कि इतना बड़ा ताल है, कहीं टूट गया तो…? सब ने मिल कर चिंतन किया, और अंततः समाधान भी खोज लिया। बस! फिर क्या था? सभी स्त्री-पुरुष व बच्चे अपना-अपना फावड़ा-परात लेकर पाल की सुरक्षा के लिए तैनात रहने लगे। डांग में पानी कैसे आया? ‘महेश्वरा नदी’ का पुनर्जन्म कैसे हुआ? डांग के लोगों के चेहरे पर रौनक कैसे आई? यह सब जानने के लिए हमें थोड़ा इस काम की पृष्ठभूमि में जाना होगा। पानी के काम का प्रारम्भ तरुण भारत संघ ने सर्वप्रथम वर्ष 1985-86 ई. में अलवर जिले की तहसील थानागाजी के गांव गोपालपुरा से शुरू किया था और सुखद आश्चर्य की बात है कि पानी को संरक्षित करने की प्रेरणा भी हमें गोपालपुरा गांव के ही एक अनुभवी बुजुर्ग मांगू पटेल से ही मिली थी। मांगू पटेल की प्रेरणा से, सबसे पहले इस गांव में चबूतरे वाली जोहड़ी का काम शुरू हुआ था।
×