झारखंड के सरकारी जल संसाधनों को झारखंडी समुदायों में मूल्यवान जल को अनुशासित उपयोग करने का अहसास कराना होगा। इसके लिये शिक्षण पाठ्यक्रमों में जल विषय पर उपयुक्त और जरूरी पाठ्यसामग्री तैयार करनी होगी। इस तरीके से समाज की जल जरूरत पूरी करने वाला प्रबंधन सिखाना पड़ेगा। झारखंड में खूब पानी है। एक तरह से पानीदार राज्य है। जनसंख्या की जरूरत से ज्यादा दरअसल, जंगल की कटाई के कारण वर्षा का जल बह जाता है। धरती का पेट खाली हो गया है। भूजल भंडार सूख गए हैं। झारखेड में वर्षाजल को सहेजने की जरूरत है। नदियों को प्रदूषण, अतिक्रमण व माइनिंग से बचाने की जरूरत है। यदि झारखंड समाधान चाहता है, तो छोटे-छोटे चेक डैम व बाँध बनाएँ, जिससे वर्षा का जल धरती के अन्दर के भंडार में इकट्ठा हो सके। धरती के ऊपर भू-जल भंडार बनाने के बजाय धरती के अन्दर भू-जल भंडार का उपयोग अधिक अच्छा व अनुकूल है।
भू-जल भंडार में वर्षा का पानी पहुँचेगा तो नदियाँ नहीं सूखेंगी। नदियों के जल से खेतों में सिंचाई व पेयजल की जरूरत का काम ठीक से हो सकेगा। कोल और आयरन इंडस्ट्री ने राज्य की स्वर्णरेखा और दामोदर जैसी नदियों का अस्तित्व संकट में डाल दिया है। विकास जरूरी है, लेकिन नदियों की कीमत पर नहीं। झारखंड प्राकृतिक संसाधनों से परिपूर्ण है। राज्य में एक जल नीति होनी चाहिए। ‘जिसकी भूमि, उसका जल’ के सिद्धान्त को खत्म कर सबको पानी उपलब्ध कराना चाहिए। राष्ट्रीय जल नीति में पेयजल को सबको ऊपर रखा गया है। इंडस्ट्री को पाँचवाँ स्थान मिला है, लेकिन झारखंड में अब भी इंडस्ट्री को प्राथमिकता दी जा रही है।
नदी नीति जरूरी :
झारखंड को नदी नीति बनानी चाहिए, जिससे नदियों का जीवन और आजादी सुरक्षित बनी रह सके। नदियों को पर्यावरणीय प्रवाह प्रदान कर नदियों की भूमि का अतिक्रमण रोकने के लिये नदी के प्रवाह क्षेत्र, बाढ़ क्षेत्र व जलागम क्षेत्र का चिन्हीकरण एवं सीमांकन किया जाए। नदियों की भूमि को नदियों के लिये ही काम में लिया जाए। नदियों में खनन प्रतिबंधित हो। साथ ही नदी के किनारे उद्योगों के अपशिष्ट या प्रदूषित ओवरबर्डेन न डाले जाएँ। नदियों से सभी दूषित जल को अलग रखा जाए। झारखंड की किसी भी नगरपालिका, नगरनिगम, नगर पंचायत व ग्राम पंचायत को गन्दे-नाले, नदी में डालने के लिये सख्ती से रोका जाए। ऐसी नदी नीति और जल नीति के कानून झारखंड में बनें, जिससे गरीब से गरीब इंसान की जल जरूरत पूरी करने का हक सुनिश्चित हो। भू-जल के शोषण पर रोक लगाकर खेती और उद्योगों में केवल सतही जल का उपयोग करने की जरूरत है।
सामुदायिक विकेंद्रित जल प्रबंधन :
झारखंड की जलनीति में जल के निजीकरण की जो खामिया हैं, उनको बदलकर सामुदायिक जल विकेंद्रित जल प्रबंधन को बढ़ावा दिया जाना चाहिए। झारखंड में एक तरफ जल का संरक्षण और दूसरी तरफ अनुशासित उपयोग करने वाली विधि लागू हो। झारखंड की खुली खदानों के क्षेत्र में जहाँ जल के भंडार हैं, उनमें गहरी पलने वाली मछलियों तथा सामुदायिक खेती को उपयोग करने की इजाजत एवं प्रबंधन समुदाय को दिया जाए। झारखंड में खनन से पानी का बहुत दुरुपयोग व शोषण होता है, इस पर रोक लगे, झारखंड राज्य आज बेपानी हो गया है। इसको पानीदार बनाने के लिए ‘राज और सामज’दोनों को तैयार हो अच्छी कोशिश करनी पड़ेगी।
जल का अनुशासित उपयोग :
झारखंड के सरकारी जल संसाधनों को झारखंडी समुदायों में मूल्यवान जल को अनुशासित उपयोग करने का अहसास कराना होगा। इसके लिये शिक्षण पाठ्यक्रमों में जल विषय पर उपयुक्त और जरूरी पाठ्यसामग्री तैयार करनी होगी। इस तरीके से समाज की जल जरूरत पूरी करने वाला प्रबंधन सिखाना पड़ेगा। झारखंड सरकार को एक समग्र नदी नीति और जल नीति बनानी पड़ेगी। सब मिलकर प्रयास करेंगे, तभी झारखंड में जल संकट से स्थाई निजात मिल सकेगी।
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जल, जंगल व जमीन | |
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खनन : वरदान या अभिशाप | |
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