अरुण तिवारी
भयभीत सत्ता की तानाशाह प्रतिक्रिया
Posted on 05 Aug, 2013 02:37 PM सरकारों व जनप्रतिनिधियों के संवेदनशून्य रवैये को देखते हुए यदि आगआत्महत्या का आरोप लगा जी डी को एम्स लाई पुलिस
Posted on 03 Aug, 2013 09:31 AMप्रो जी डी अग्रवाल गंगा सुरक्षा की अपनी मांग को लेकर गत् 13 जून से अनशनरत हैं। ताजा समाचार यह है कि जी डी खुद अपने पैरों पर चल सकते हैं। बावजूद इसके उन पर आत्महत्या का आरोप लगाया गया है। उन पर धारा 309 ए के तहत् केस दर्ज किया गया है। मातृ सदन, हरिद्वार से उठाकर पुलिस पहले जेल ले गई। आज दिनांक 02 अगस्त को प्रातः करीब चार बजे तीन पुलिस कर्मियों की निगरानी में उन्हे नई दिल्ली लाया गया। फिलहाल उन्ह
उत्तराखंड : पलायन से जूझती सीमा की सामाजिक सुरक्षा चुनौती पूर्ण
Posted on 01 Aug, 2013 10:50 AM समस्या के मूल में समाधान स्वतः निहित होता है। उत्तराखंड में विकेन्द्रित स्तर पर शिक्षा, चिकित्सा, खेतउत्तराखंड : कितने लाभप्रद जल विद्युत के दावे
Posted on 01 Aug, 2013 09:11 AM जहां तक जलविद्युत परियोजनाओं से बिजली और रोज़गार के स्थानीय लाभ का सवाल है, तो हकीक़त और भी हास्यास्पद है। बतौर केन्द्रीय मंत्री श्री के एल राव ने खुद माना था कि जलविद्युत परियोजनाओं से स्थानीय लोगों को बिजली नहीं मिलती। टिहरी व भाखड़ा इसके पुख्ता उदाहरण हैं। ताज़ा उदाहरण धौली गंगा परियोजना का है। इसकी क्षमता 280 मेगावाट। इसका पहला आपूर्ति सब स्टेशन बरेली है। परियोजना के नज़दीक मुनस्यारी को एक मेगावाट बिजली नहीं दे पा रहे। यह इलाक़ा अक्सर अंधेरे में डूबा रहता है। हम सब जानते हैं कि परियोजना निर्माण में आधुनिक तकनीक व मशीनों का उपयोग होता है। पानी से पैदा बिजली स्वच्छ, स्वस्थ और सबसे सस्ती होती है। जलविद्युत परियोजनाओं में जो ‘पीकिंग पावर’ होती है। ताप विद्युत की तरह धुआं फैलाकर यह वायुमंडल को प्रदूषित नहीं करती। परमाणु विद्युत उत्पादन इकाइयों से विकरण जैसी आशंका से भी जलविद्युत परियोजनाएं मुक्त हैं। ‘रन ऑफ द रिवर’ परियोजनाएं तो पूरी तरह सुरक्षित हैं। आम ही नहीं खास पर्यावरण कार्यकर्ताओं की धारणा है कि इनमें कोई बांध नहीं बनता। नदी को इनसे कोई नुकसान नहीं होता। अतः ‘रन ऑफ द रिवर’ जल विद्युत परियोजनाएं बनाई जानी चाहिए। जलविद्युत के पक्ष में दिए जाने वाले ये दावे महज दावे हैं या हकीक़त ? जलविद्युत परियोजनाओं की जद में आने वाली आबादी के लिए यह जानना आज बेहद जरूरी है; खासकर तब, जब उत्तराखंड पुनर्निर्माण की दिशा तय हो रही हो।उत्तराखंड में आज 98 जलविद्युत परियोजनाएं कार्यरत हैं और 111 निर्माणरत। वर्तमान कार्यरत परियोजनाओं की कुल स्थापना क्षमता 3600 मेगावाट है। 21,213 मेगावाट की 200 परियोजनाएं योजना में हैं। ये उत्तराखंड जलविद्युत निगम के आंकड़े हैं।
खाद्य सुरक्षा : खैरात के खतरे
Posted on 25 Jul, 2013 10:05 AM महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी कानून ‘मनरेगा’ बनाने के पीछे की मूल सोच गांवों में रोजगार के लिए बुनियादी ढांचे काआमंत्रण : उत्तराखंड की आवाज सुनो
Posted on 13 Jul, 2013 12:59 PMतिथि- 16 जुलाई, 2013, दिन-मंगलवार
समय -प्रातः 10 बजे से सायं 5 बजे तक।
स्थान- गांधी शांति प्रतिष्ठान,
221-223 दीनदयालउपाध्याय मार्ग, (निकट आईटीओ), नई दिल्ली
निवेदक: उत्तराखंड के लोग
अपील
प्रिय मित्रों,
उत्तराखंड के बारे में आपने मीडिया में जो कुछ देखा, हकीकत उससे कई गुना ज्यादा व्यापक और डराने वाली है। साथियों से मिलकर मैंने महूसस किया कि अपनी तबाही से उत्तराखंड अत्यंत दुखी है और गुस्सा भी। दुखी इसलिए कि इस तबाही ने उन अच्छे-सच्चे ग्रामीणों व अन्य जीव-वनस्पतियों की भी बलि ली, जो इसके दोषी नहीं हैं। गुस्सा इसलिए कि जिन गतिविधियों को खतरनाक मानकर उत्तराखंडवासी लंबे अरसे से सरकारों को चेताते रहे हैं, उनकी आवाज को अब तक अनसुनी किया गया।
वे दो टूक चाहते हैं कि इस आपदा के दोषियों को दण्डित किया जाये; ताकि भाविष्य में कोई ऐसी हिमाकत न करे। वह आगे के रास्ते को भी लेकर दो टूक निर्णय के मूड में है। पुनर्वास के काम को भी वह अब सरकार भरोसे छोड़ने की गलती नहीं करना चाहते। यह ठीक ही है।