शिवचंद्र सिंह तीन भाई हैं और तीनों किसान हैं. ये तीनों चिलचिलाती धूप, कड़ाके की ठंड एवं मूसलाधार बारिश की मार झेलकर भी धरती का सीना चीर अनाज उपजाते हैं, तब बमुश्किल परिवार का भरण-पोषण हो पाता है. बिहार के वैशाली जिले का एक गांव है कालापहाड़. शिवचंद्र सिंह की तरह ही इस गांव में बिल्कुल अलग बसे एक टोले के करीब 30 परिवारों का पेशा भी किसानी ही है. शिवचंद्र कहते हैं कि भीषण गर्मी के कारण जलस्तर काफी नीचे चला गया है. इस कारण सिंचाई करना मुश्किल हो रहा है. डीजल महंगा है और इधर बिजली चालित मोटर पंप पानी खींच नहीं पा रहा है. Kesar Singh posted 1 year ago
पारिस्थितिक तंत्र की बहाली (इकोसिस्टम रेस्टोरेशन) कई मामलों में अत्यंत महत्वपूर्ण है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा विश्व पर्यावरण दिवस के इसी मौके पर आधिकारिक रूप से यूनाइटेड नेशंस डिकेड ऑन इकोसिस्टम रेस्टोरेशन 2021-2030 लॉन्च किया जा रहा है, जिसका उद्देश्य प्रत्येक महाद्वीप और समस्त महासागरों में हो रहे पारिस्थितिक तंत्र के अपकर्ष को रोकना और अधोमुखी करना है। Kesar Singh posted 1 year ago
आज से करीब 30 वर्ष पहले पहाड़ के दूरदराज के गांवों में, गांव के लोगों के अनुरोध पर हमने स्कूल खोले। उस समय औसतन 7-10 गांवों के बीच एक सरकारी स्कूल हुआ करता था, पहाड़ के गांव छोटे- छोटे और बिखरे हुए होते हैं, एक गांव से दूसरे गांव की दूरी तय करने में घंटों लग सकते हैं, अब तो खैर स्थिति बदल गई है, सड़कें भी बन गई हैं और सरकारी स्कूलों की तादाद भी बढ़ी है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
पिछले दो दशकों में हमारे देश में तकनीक आधारित डिजिटल सेवाओं का बड़ा विस्तार हुआ है। उसका सबसे बड़ा प्रभाव बैंकिंग और डिजिटल पेमेंट के क्षेत्र में देखने को मिलता है। सरकार द्वारा ऑनलाइन पेमेंट को बढ़ावा देने के कारण ऑनलाइन लेन-देन में आशातीत बढ़ोतरी हुई है। माना जाता है कि अब लगभग चालीस प्रतिशत लेन-देन ऑनलाइन माध्यमों से ही हो रहा है। देश में पंचायत स्तर तक नागरिक सुविधा केंद्र यानी कॉमन सर्विस सेंटर का जाल बिछाया गया है, जो कई तरह की सेवाएं प्रदान कर रहे है। किताबें हों, कपड़े हों या घरेलू उपयोग का कोई और सामान, घर बैठे मंगवाया जा सकता है। और अब तो राशन और सब्जियां आदि भी सीधे दुकान से घर पहुंचने की व्यवस्था की जा रही है। शिक्षा, आवागमन, यातायात, चिकित्सा, शोध और विकास जैसे सभी क्षेत्रों में सूचना तकनीक ने अपना हस्तक्षेप बढ़ा लिया है। यह प्रगति की दिशा में एक अच्छा सूचक है। भारत सूचना सेवाओं के लिए एक निर्यातक देश माना जाता है और हमें विश्व में सॉफ्ट पॉवर की तरह देखा जाता है। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
इकोलॉजी यानी पारिस्थितिकी का अर्थ है जीवित प्राणियों के आपसी तथा पर्यावरण के साथ उनके संबंधों का वैज्ञानिक अध्ययन। पेड़-पौधे, जंतु और सूक्ष्म जीवाणु अपने चारों ओर के पर्यावरण के साथ अन्योन्यक्रिया करते हैं। पर्यावरण के साथ मिलकर वे एक स्वतंत्रा इकाई की सृष्टि करते हैं जिसे पारिस्थितिकी तंत्र या पारितंत्र (इकोसिस्टम) का नाम दिया जाता है। वन, पहाड़, मरुस्थल, सागर आदि पारितंत्रों के ही उदाहरण हैं।Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
हाल ही के वर्षों में वहां बर्फ इतनी तेजी से पिचलने लगी है कि जिसे देखकर डर लगता है डर की वजह यह है कि इन इलाकों की एक सेंटीमीटर बर्फ पिघलने का असर 60 लाख लोगों पर पड़ता है। इसका अभिप्राय यह है कि इस तरह 60 लाख नए लोग डूब क्षेत्र की जद में आ जाते हैं।Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
पूरी दुनिया में मौसमों की चाल ने ऐसी कयामत बरपाई है कि हर कोई हैरान-परेशान है। धरती पर रहने वाले तमाम जीव-जंतुओं से लेकर इंसान भी इस गफलत में पड़ गये हैं कि वह आखिर तेज गर्मी सर्दी से कैसे बचें। विज्ञान के तमाम आविष्कारों के बल पर हर परिस्थिति से लड़ने में सक्षम इंसान अब खुद को बचाए रखने की जद्दोजहद से जूझने लगा है। ऐसा लग रहा है मानो पृथ्वी पर कोई प्राकृतिक या मौसमी आपातकाल लग गया है और उससे बचने का कोई रास्ता दिखाई नहीं दे रहा है।Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
आधुनिक युग में पढ़ते औद्योगीकरण व विकास की अन्य मानवीय गतिविधियों के चलते विभिन्न जल स्रोतों के जल की गुणवत्ता पर काफी मात्रा में विपरीत प्रभाव पड़ा है। अतः जल प्रदूषण पर्यावरण के लिए एक बड़ी समस्या बन चुकी है। परन्तु जलराशियों के लिए प्रदूषण के अलावा संदूषण भी एक और समस्या हैKesar Singh posted 1 year 1 month ago
भूजल में फ्लोराइड का प्रदूषण चट्टानों और अवसादों का अपक्षय और उनमें फ्लोराइड युक्त खनिजों के लीचिंग के कारण होता है। इनके अतिरिक्त उर्वरक और एल्यूमीनियम फैक्टरी के अवशिष्ट जल के भूजल में मिलने से भी पानी फ्लोराइड युक्त हो सकता है। फ्लोराइड की मात्रा कुछ खाद्य पदार्थों में भी अधिक होता है जैसे की समुद्री मछली, पनीर, तुलसी एवं चाय, खाद्य-सामग्री में फ्लोराइड की मात्रा मुख्यतः मिट्टी के प्रकार, भू-पटल में उपस्थित लवणों एवं उपलब्ध पानी पर निर्भर करती हैं। पशु एवम् मनुष्य के शरीर में फ्लोराइड अथवा हाइड्रोफ्लोरिक अम्ल के अधिक प्रवेश होने से फ्लोरोसिस रोग होता है। इसके कारण पशुओं में बाँझपन, उत्पादन घाटा, दांत, हड्डियां, खुर, सींग में विकृति, और अन्य शारीरिक अंग प्रभावित हो सकते हैं। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
प्रदूषण आज की एक ज्वलंत समस्या है। प्रदूषण पर्यावरण को ही दीमक की तरह खोखला कर रहा है। आज न केवल मानव जाति, अपितु पशु-पक्षी भी प्रदूषण से व्यथित एवं कुंठित हैं। जन जीवन प्रदूषण से प्रतिकूल प्रभावित हुआ है। विकलांगता, अंधापन आदि प्रदूषण के ही परिणाम है। प्रदूषण चाहे हवा हो या जल का प्रदूषण मानव जाति के लिए घातक है। यही कारण है कि उच्चतम न्यायालय को इण्डियन कौसिंल फार एन्वायरो लीगल एक्शन बनाम यूनियन ऑफ इण्डिया (ए.आई.आर. 1996 एस.सी. 1446) के मामले में यह कहना पड़ा कि अब समय आ गया है जब प्रदूषण निवारण एवं पर्यावरण संरक्षण के लिए शासन, प्रशासन और स्वैच्छिक संगठनों को पहल करनी होगी।
भारत में जैविक कृषि का इतिहास लगभग 5000 वर्षों से भी ज्यादा पुराना है। यह सजीव खेती का ही परिणाम था कि इतने लम्बे समय तक अनवरत अन्न उत्पादन के साथ-साथ मिट्टी की उर्वरा शक्ति को भी बनाये रखा जा सका। सन् 1966-67 से भारत में हरित क्रांति की शुरूआत की गयी। कृषि प्रौद्योगिकीकरण के नाम पर सघन खेती शुरू की गई। साथ ही संकर बीजों और रासायनिक कीटनाशी व खरपतवारनाशी तथा अंधाधुंध रासायनिक उर्वरकों के दुष्परिणाम ने खेत, मिट्टी, उपज, किसान और पर्यावरण सभी को प्रभावित किया। मिट्टी की उर्वरा शक्ति, उत्पादकता, जैवविविधता खाद्य पदार्थ की गणुवत्ता के साथ-साथ समूचे पर्यावरण को भी खतरा उत्पन्न हो गया है। हजारों वर्ष पुरानी परम्परागत खेती के तरीके जिन्हें हमने रूढ़िवादी और पुरानी नीति समझकर नकार दिया था वही इन्द्रधनुषीय विकास के मूलसूत्र हैं। Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
‘पर्वतीय विकास की सही दिशा’ के मुद्दे पर आयोजन समिति द्वारा अनासक्ति आश्रम कौसानी में 5-7 अप्रैल 2023, पर्वतीय विकास की सही दिशा विषय पर तीन दिवसीय संवाद गोष्ठी का आयोजन किया जा रहा है। आप अवगत ही हैं कि 5 अप्रैल सरला बहिन की जन्म तिथि है।Kesar Singh posted 1 year 1 month ago
मां गंगा पर आश्रित इकोलॉजी एवं जन समूह का बच पाना एक मूल प्रश्न है जिसका उत्तर ऐसा हो जिसमें मां गंगा के दैविक, सांस्कृतिक, वैज्ञानिक, बौद्धिक, और वर्तमान और भविष्य की आवश्यकताओं का सही मिश्रण, समीकरण और संतुलन हो, अत: हम सब साथ मे चर्चा करें ताकि आगे की कानूनी, सरकारी पॉलिसी, हस्ताक्षर अभियान एवं दृढ़ जन आंदोलन को रूप दिया जा सके। Kesar Singh posted 1 year 3 months ago
किसी नदी का पारिस्थितिकी तंत्र वह समग्र क्षेत्र होता है जिसमें उसके अपने प्राकृतिक वातावरण में उपस्थित सभी जैविक (Biotic) घटकों जैसे पौधों, जानवरों और सूक्ष्म जीवों और सभी अजैव (Abiotic) घटकों के बीच समस्त भौतिक और रासायनिक क्रियाएँ संपादित होती हैं। Kesar Singh posted 1 year 3 months ago
1 फरवरी को केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने बजट पेश किया। केंद्रीय बजट में अगर हम पानी की बात करें तो स्वच्छ भारत मिशन (ग्रामीण) के लिए 7192 करोड़ रुपये, जल जीवन मिशन के लिए 70,000 करोड़ का बजट आबंटित है। वहीं देश की नदियों को जोड़ने के लिए 3,500 करोड़ रुपए का प्रावधान बजट में है। साथ ही अटल भूजल योजना के लिए 1000 करोड़, नेशनल हाइड्रोलॉजी प्रोजेक्ट के लिए 500 करोड़, प्रधानमंत्री कृषि सिंचाई योजना के लिए 8587 करोड़ पर आवंटित किए गए हैं।Kesar Singh posted 1 year 3 months ago
जोशीमठ व हिमालय में हो रही भीषण आपदाओं को लेकर मातृ सदन में तीन दिवसीय (12 से 14 फरवरी, 2023) अंतर्राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन किया जा रहा है। सम्मेलन में श्री जयसीलन नायडू, जो दक्षिण अफ्रीका के पूर्व राष्ट्रपति व महान राजनीतिज्ञ श्री नेल्सन मंडेला जी के सरकार में मंत्री रह चुके हैं, देश के विभिन्न अन्य बुद्धिजीवी व पर्यावरणविद मौजूद रहेंगे।Kesar Singh posted 1 year 3 months ago
बाढ़, सुखाड़ एवं पानी की गुणवत्ता संबंधी चुनौतियां और चिंतायें लगातार बढ़ती जा रही है। तमाम शासकीय - गैर शासकीय योजनाओं, परियोजनाओं. कार्यक्रमों, अभियानों और अकूत धन के खर्च के बावजूद इस स्थिति का स्थाई होते जाना चिंताजनक है। लिहाजा, वैश्विक तापमान वृद्धि से लेकर समस्याओं के स्थानीय कारण वह निवारण पर गहन चिंतन-मनन तथा जमीन पर कुछ करना जरूरी हो गया है। इसी सन्दर्भ में जल बिरादरी अमेठी, उत्तर प्रदेश ने दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन करना तय किया है।Kesar Singh posted 1 year 3 months ago
बेतवा नदी के उद्गम से नदी मार्ग के विभिन्न पड़ावों तक बेतवा जल तंत्र (ईको सिस्टम) का वैज्ञानिक दृष्टि से समग्र अध्ययन इस यात्रा का मकसद है। यात्रा में नदी के जल में प्रदूषणकारी तत्वों की पहचान और प्रदूषण दूर करने के विविध उपायों पर सघन चिंतन मनन किया जाएगा। यात्रा टीमें नदी मार्ग के गांवों , कस्बों और ऐतिहासिक स्थलों की विस्तृत जानकारी एकत्र करेंगी। साथ ही नदी के बारे में जल सरंक्षण के बारे में ग्रामीण और शहरी समाज में जागरूकता अभियान भी चलाया जाएगा। नदी के तटों पर श्रमदान से कचरा सफाई कर नदी तटों पर पौधा रोपण भी किया जाएगा। Kesar Singh posted 1 year 3 months ago