पल्थरा एक छोटा सा आदिवासी गांव है, जो मध्यप्रदेश के पन्ना जिला मुख्यालय से करीब 35 किलोमीटर दूर जंगल में है। यहां समुदाय ने आगे बढ़कर जल प्रबंधन का काम अपने हाथ में ले लिया है और यहां न केवल वर्तमान में नल-जल योजना का सुचारू संचालन हो रहा है, बल्कि भविष्य में पानी की दिक्कत न हो, इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है। यहां हर घर में नल कनेक्शन है।
Posted on 31 Jul, 2017 03:52 PM वायु के बाद मानव समाज के लिये जल की महत्ता प्रकृति प्रदत्त वरदानों में एक है। इसी जल ने पृथ्वी पर जीवन और हरियाली विकसित होने में महत्त्वपूर्ण भूमिका का निर्वाह किया है। इसमें कोई सन्देह नहीं कि जल ही जीवन है। शास्त्रों में कहा गया है कि-
Posted on 29 Jul, 2017 04:21 PM ‘सलिलम्सर्व सर्व मा इदम्’ हिन्दुओं की चार प्राचीनतम पवित्र पुस्तकों में से एक ऋग्वेद (एक सहस्र वर्ष इस्वी पूर्व) की महान वैज्ञानिक ऋचा द्वारा प्रतिस्थापित है कि पृथ्वी के प्रारम्भ से जल था। कहा जाता है कि जीवन का आरम्भ जल में हुआ। ईसाईयों से सृष्टि निर्माण का सिद्धान्त भी यह अनुमान करता है कि ईश्वर ने, पृथ्वी और आकाश की प्रथम दिन सृष्टि के बाद
Posted on 21 Jul, 2017 09:55 AM गाड़ गधेरे, नौले, धारे के बारे में सबने सुना होगा, धीरे-धीरे सब खत्म या कम होते जा रहे हैं लेकिन पहले ऐसा नहीं था, पहले इन नौलों गाड़ों गधेरों में कई बच्चों ने अपने पहले प्यार, पहली तैराकी और पहली ट्रेकिंग की ट्रेनिंग ली थी।
Posted on 09 Jul, 2017 04:40 PMदक्षिण भारत में खेतों की सिंचाई पारम्परिक रूप में पानी के छोटे-छोटे स्रोतों से की जाती थी। सिंचाई के संसाधनों के संचालन में मन्दिरों का महत्त्वपूर्ण योगदान होता था। हालांकि चोल (9वीं से 12वीं सदी) और विजयनगर दोनों ही साम्राज्यों ने कृषि को बढ़ावा दिया, फिर भी इनमें से किसी ने भी सिंचाई और सार्वजनिक कार्यों के लिये अलग से विभाग नहीं बनाया। इन कार्यों को सामान्य लोगों, गाँवों के संगठनों और मन्दिरों
Posted on 27 Jun, 2017 10:18 AM कुमायूँ परिक्षेत्र उत्तर-पश्चिमी मध्य हिमालय में स्थित है। इस परिक्षेत्र में उत्तर प्रदेश के 4 पर्वतीय जिले सम्मिलित हैं। इस क्षेत्र की जलवायु उपोष्ण कटिबन्धीय हैं तथा यहाँ अनेक मीठे जलस्रोत उपलब्ध हैं। कुमायूँ परिक्षेत्र में अनेक मीठे जल की झीलें/जलाशय हैं जो अपनी जैवविविधता तथा आर्थिक महत्ता के लिये जानी जाती है। पिछले 2-3 दशकों से विभिन्न प्रकार की गतिविधियों, विदेशी मछलियों के प्रत्यारोप
Posted on 17 Jun, 2017 10:26 AM मार्च में झारखंड का मौसम खुशगवार रहता है, लेकिन मार्च 2014 का मौसम झारखंड में कुछ अलग ही था। कैमरा व फिल्म की शूटिंग का अन्य साज-ओ-सामान लेकर भटक रहे क्रू के सदस्य दृश्य फिल्माने के लिये पलामू, हरिहरगंज, लातेहार, नेतारहाट व महुआडांड़ तक की खाक छान आये। इन जगहों पर शूटिंग करते हुए क्रू के सदस्यों व फिल्म निर्देशक श्रीराम डाल्टन व उनकी पत्नी मेघा श्रीराम डाल्टन ने महसूस किया कि इन क्षेत्रों में पानी की घोर किल्लत है। पानी के साथ ही इन इलाकों से जंगल भी गायब हो रहे थे और उनकी जगह कंक्रीट उग रहे थे।
मूलरूप से झारखंड के रहने वाले श्रीराम डाल्टन की पहचान फिल्म डायरेक्टर व प्रोड्यूसर के रूप में है। फिल्म ‘द लॉस्ट बहुरूपिया’ के लिये 61वें राष्ट्रीय फिल्म अवार्ड में उन्हें पुरस्कार भी मिल चुका है।