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नदियां
उत्तर बिहार की नदियों को बचाना होगा
Posted on 21 Aug, 2009 02:48 PMउत्तर बिहार होकर बहने वाली पतित पावनी गंगा हो या वरदायिनी बूढ़ी गंडक, मैया कमला हो या माता सीता की नगरी होकर बहने वाली बागमती-लखनदेई, किसी का पानी पीने लायक नहीं रहा।
पहाड़ों के सिल्ट से भरी उत्तर बिहार की ये नदियां कचरा निष्पादन का आसान माध्यम बनी हुई हैं। प्रदूषण से इनकी कलकल करती धाराओं का रंग तक बदरंग हो चुका है, पर नियंत्रण के कहीं कोई उपाय नहीं किये जा रहे हैं।
हर समाज के लिए नदी एक संस्कृति है
Posted on 18 Aug, 2009 01:22 PMनदी की प्रकृति है उसका प्रवाह। निरंतर बहते रहना ही नदी में जीवन का संचार करता है। नदी का अस्तित्व इस प्रवाह से ही है। नदी के किनारे एकाग्रचित्त होकर बैठिए और कल-कल बहते पानी को निहारिए। आपको लगेगा मानो वह कोई संदेश दे रहा है। जैसे नदी निरंतर बहती रहती है, आगे बढ़ती रहती है; वैसे ही जीवन में भी प्रवाह बना रहना चाहिए। जीवन थककर या हारकर रुकने में नहीं है; बल्कि निरंतर आगे बढ़ते रहने में है।
इटावा में यमुना
Posted on 30 Jul, 2009 07:23 AMयमुना नदी के जल को कभी राजतिलक करने के काम में प्रयोग किया जाता था आज उसी यमुना नदी के जल को कोई छूना भी पसन्द नहीं कर रहा है वजह साफ है कि यमुना नदी इतनी प्रदूषित हो चुकी है कि वह एक नदी न होकर कचरे का नाला बनकर रह गयी है, धार्मिक नदी का दर्जा पाये यमुना नदी के इस हाल के लिये असल में जिम्मेदार हैं कौन?
मालवा की प्रमुख नदियाँ
Posted on 25 Jul, 2009 09:05 PMमालवा में प्रवाहित होने वाली विभिन्न नदियों का यहाँ की सामाजिक, धार्मिक व आर्थिक जीवन में विशेष महत्व रहा है। कुछ नदियाँ बड़ी है, जैसे चंबल, काली सिंधु, शिप्रा, पार्वती, बेतवा, माही व नर्मदा। उनकी सहायक नदियों से पूरे क्षेत्र में सिचाई की सुविधा मिल जाती है। चम्बल तथा उसकी सहायक नदियाँ, काली सिंध तथा पार्वती मिलकर, चंबल के निम्न हिस्से में एक त्रिभुजाकार जलोढ़ बेसिन बनाती है, जो वर्तमान में राणा पसोनीपत और बागपत यमुना खादर में पानी नहीं
Posted on 19 Jul, 2009 09:44 AMकरोड़ों वर्षों का मिथक टूटा गया कि यमुना की धार को कोई रोक नहीं सकता। किसी भी नदी के पारिस्थतिकीय सन्तुलन को बनाये रखने के लिए पर्यावरणीय प्रवाह बनाये रखने की नितान्त आवश्यकता होती है। 14 मई 1999 के एक फैसले में उच्चतम न्यायालय ने निर्देश दिया था कि यमुना को पारिस्थितिक प्रवाह की जरूरत है, सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि प्रति सेकंड 353 cusecs का एक न्यूनतम प्रवाह नदी में होना ही चाहिए। हरियाणा, हिमाचलगंगा मैया से ज्यादा शुद्ध है नर्मदा जल
Posted on 15 Jul, 2009 09:00 AMहोशंगाबाद, मध्यप्रदेश की जीवनदायिनी नर्मदा का जल गंगाजल से भी ज्यादा शुद्ध है। इस तथ्य का खुलासा केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड की एक रिपोर्ट में हुआ है। नर्मदा के पानी में घुलित आक्सीजन का निम्मतम स्तर गंगा नदी से काफी ज्यादा है, इस कारण नदियों की ग्रेडिंग में नर्मदा को बी और गंगा को सी ग्रेड दी गई है। बोर्ड विभिन्न स्रोतों से प्राप्त जल की मासिक सेंपलिंग कर उसका परीक्षण करता है।महोबा की नदियों को भगीरथ का इंतजार
Posted on 13 Jul, 2009 12:19 PMमहोबा। कभी जिले की भाग्य रेखा बनकर बहने वाली छह नदियां अपने अमृतमयी जल से लाखों लोगों की प्यास बुझाने के साथ ही लाखों एकड़ कृषि भूमि और वृहद वन क्षेत्र सिंचित करती थीं। लेकिन आज वही नदियां अपना अस्तित्व बचाने को कराह रही हैं। महोबा के लोगों को जीवन देने वालीं इन नदियों को अब किसी भगीरथ की तलाश है।
सरस्वती को धरती पर लाने की कवायद
Posted on 10 Jul, 2009 09:35 PMहरियाणा में आदि अदृश्य नदी सरस्वती को फिर से धरती पर लाने की कवायद शुरू कर दी गई है। इसके लिए राज्य के सिंचाई विभाग ने सरस्वती की धारा को दादूपुर नलवी नहर का पानी छोड़ने की योजना बनाई है। देश के अन्य राज्य में भी इस पर काम चल रहा है। अगर यह महती योजना सिरे चढ़ जाती है तो इससे हरियाणा, राजस्थान और गुजरात के तकरीबन 20 करोड़ लोगों की काया पलट जाएगी। इस नदी से जहां राज्यों के लोगों को पीने का पानी उपलसरस्वती नदी व प्राचीनतम सभ्यता
Posted on 04 Jul, 2009 09:48 AMआज सिंधु घाटी की सभ्यता प्राचीनतम सभ्यता जानी जाती है। नाम के कारण इसके शोध की दिशा बदल गयी। वास्तव में यह सभ्यता एक बहुत बड़ी सभ्यता का अंश है, जिसके अवशिष्ट चिन्ह उत्तर में हिमालय की तलहटी (मांडा) से लेकर नर्मदा और ताप्ती नदियों तक और उत्तर प्रदेश में कौशाम्बी से गांधार (बलूचिस्तान) तक मिले हैं। अनुमानत: यह पूरे उत्तरी भारत में थी। यदि इसे किसी नदी की सभ्यता ही कहना हो तो यह उत्तरी भारत की नद
सरस्वती क्यों न बही
Posted on 20 Jan, 2009 10:13 AM....और सरस्वती क्यों न बही अब तक?
वैज्ञानिक प्रमाण, पुरातात्विक तथ्य
1996 में 'इन्डस-सरस्वती सिविलाइजेशन' नाम से जब एक पुस्तक प्रकाश में आयी तो वैदिक सभ्यता, हड़प्पा सभ्यता और आर्यों के बारे में एक नया दृष्टिकोण सामने आया। इस पुस्तक के लेखक सुप्रसिध्द पुरातत्वविद् डा. स्वराज्य प्रकाश गुप्त ने पहली बार हड़प्पा सभ्यता को सिंधु-सरस्वती सभ्यता नाम दिया और आर्यों को भारत का मूल निवासी सिद्ध किया।