कृषि

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Meta Description
Agriculture, an important sector of our economy accounts for 14 per cent of the nation’s GDP and about 11 per cent of its exports. India has the second largest arable land base (159.7 million hectares) after US and largest gross irrigated area (88 milion hectares) in the world. Rice, wheat, cotton, oilseeds, jute, tea, sugarcane, milk and potatoes are the major agricultural commodities produced. More importantly, over 60 per cent of the country’s population, comprising several million small farming households, depends on agriculture as a principal income source and land continues to be the main asset for livelihood security. 
Meta Keywords
Flowers, trees
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केंचुआ खाद (Vermi-Compost)
केंचुए को कृषकों का मित्र तथा भूमि की आँत भी कहा जाता है, जो जीवांश से भरपूर एवं नम भूमि में पर्याप्त संख्या में रहते है। नम भूमियों में केंचुओं की संख्या पचास हजार से लेकर चार लाख प्रति हेक्टेयर तक आंकी गई है। केंचुए जमीन में 50 से 100 से.मी. की गहराई में विद्यमान जीवाशं युक्त मिट्टी को खाकर, मृदा एवं खनिजों को भूमि की सतह पर हगार के रूप में विसर्जित करते है। इस हगार में पोषक तत्व भरपूर मात्रा में रहते है। रसायनों के लगातार उपयोग एवं कार्बनिक पदार्थों को मृदा में न डालने के कारण इनकी संख्या में कमी का होना स्वाभाविक है। Posted on 23 Dec, 2023 12:22 PM

खाद्यान्नों की बढ़ती माँग के कारण सघन खेती आज कृषि की बड़ी आवश्यकता बन गई है। अच्छे बीज, पर्याप्त जल संसाधन के अतिरिक्त संतुलित खाद सघन खेती का मुख्य अंग है। रासायनिक उर्वरकों के बढ़ते प्रयोग से मृदा की संरचना, उसके पानी रोकने की क्षमता तथा उसमें पाये जाने वाले लाभदायक जीवाणुओं का ह्रास होता है। जिससे उसकी उर्वता शक्ति घट जाती है, इन सब गुणों को सुरक्षित रखने के लिए खेती मे कार्बनिक खादों का उप

केंचुआ खाद (Vermi-Compost)
आत्मनिर्भर गाँव में कृषि की भूमिका
आत्मनिर्भर भारत का मार्ग आत्मनिर्भर गाँवों के संकल्प से निर्धारित होता है। अतीत में आत्मनिर्भर गाँवों का सिद्धांत ही भारत को 'सोने की चिड़िया' कहने का मुख्य कारण था। परंतु उपनिवेशवादी नीतियों ने आत्मनिर्भर गाँवों के संकल्प को तहस- नहस कर दिया। कालांतर में कृषि लाभ में निरंतर कमी, बेहतर रोजगार की व्यवस्था, आधुनिक शिक्षा की आवश्यकता, जीवन के लिए भौतिक सुविधाओं की सुलभता, आधुनिक सुख-सुविधाओं आदि की कमी ने ग्रामीण आत्मनिर्भरता को गाँवों से विवर्तित करके भारतीय शहरों में स्थापित कर दिया था। Posted on 23 Dec, 2023 11:22 AM

कृषि विकास से ही ग्रामीण अर्थव्यवस्था का विकास संभव है। देश का कृषि क्षेत्र जितना अधिक धारणीय, विकसित और समावेशी होगा, ग्रामीण भारत का विकास उतना ही उत्कृष्ट होगा। कृषि क्षेत्र की संवृद्धि के बिना ग्रामीण आत्मनिर्भरता की कल्पना भी नहीं की जा सकती है, चूंकि कृषि और कृषि आधारित उद्योग ग्रामीण अर्थव्यवस्था की रीढ़ हैं।

आत्मनिर्भर गाँव में कृषि की भूमिका
प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
प्रौद्योगिकी उन्नयन और समावेशी विकास ग्रामीण भारत के विकास के केंद्र बिंदु रहे हैं। देश की प्रयोगशालाओं में विकसित प्रौद्योगिकियां आत्मनिर्भर गाँवों के लिए तकनीकी सशक्तीकरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रही हैं। आज प्रौद्योगिकी को समाज और गाँव केंद्रित बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। आधुनिक प्रौद्योगिकी के सामंजस्य और खेतों तक पहुँच से बेहतर कृषि उत्पादकता, सामाजिक-आर्थिक समानता और सतत विकास को सुनिश्चित किया जा रहा है। ग्रामीण आत्मनिर्भरता, तकनीकी समझ और कृषि प्रौद्योगिकी से लेकर कौशल विकास की परिभाषा वैज्ञानिक दृष्टिकोण के साथ देश के गाँवों में सृजित हो रही है। भारत में करीब साढ़े छह लाख गाँव है, छह हजार से अधिक ब्लॉक हैं, और सभी पंचायती राज प्रणाली द्वारा शासित हैं।  Posted on 22 Dec, 2023 01:37 PM

गाँवों को आत्मनिर्भर बनाने का एक बड़ा लक्ष्य किसानों और गाँवों को तकनीकी रूप से सम्पन्न बनाने में निहित है। देश की प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों को गाँवों और खेतों तक पहुँचाया जा रहा है। देश में 'लैब टू लैंड' प्रयासों से किसानों को तकनीकी रूप से समृद्ध बनाने के साथ-साथ प्रयोगशालाओं में किए जा रहे अनुसंधानों और संसाधनों को सीधे गाँवों तक पहुँचाया जा रहा है।

प्रयोगशाला से खेतों तक किसानों का तकनीकी सशक्तीकरण
वर्टीकल फार्मिंग के बढ़ते कदम
कम्प्यूटर के द्वारा यह सुनिश्चित किया जाता है कि घूमने वाली रैकों में उगने वाले प्रत्येक पौधे को एकसमान ही प्रकाश की प्राप्ति हो इसमें इस बात का भी ध्यान रखा जाता है कि पानी के पम्पों से पोषक तत्वों का वितरण एकसमान रूप से हो किसान अपने स्मार्ट फोन से सम्पूर्ण बहुमंजिला खेत की देखभाल कर सकते हैं. Posted on 22 Dec, 2023 11:16 AM

वर्टिकल फार्मिंग में खेती सपाट जमीन पर न होकर बहुमजली इमारतों पर की जाती है. इसे बहुमंजिला ग्रीनहाउस भी कहा जाता है. वर्टिकल फार्मिंग के अन्तर्गत बहुमंजली इमारतों पर नियंत्रित स्थितियों में फल, सब्जियाँ आदि उगाए जाते हैं. बहुमजली इमारत में रैकों के ऊपर पौधे उगाए जाते हैं. इन रैकों को हाइड्रोपोनिक सिस्टम के द्वारा पोषक तत्व पहुँचाए जाते हैं.

वर्टीकल फार्मिंग के बढ़ते कदम
जलवायु परिवर्तन के परिवेश में कृषि का स्वरूप
आधुनिक कृषि विज्ञान, पौधों में संकरण, कीटनाशको, रासायनिक उर्वरकों और तकनीकी सुधारों ने फसलों से होने वाले उत्पादन को तेजी से बढ़ाया है. साथ ही, यह व्यापक रूप से पारिस्थितिक सन्तुलन के लिए क्षति का कारण भी बना है।  इससे मनुष्य के स्वास्थ्य पर प्रतिकूल प्रभाव के साथ-साथ फसल उत्पादकता भी स्थिर है।  Posted on 21 Dec, 2023 04:28 PM

आज दुनिया की आबादी बढ़कर 8 अरब हो गई है. वैश्विक जनसंख्या 2037 तक 9 अरब और 2050 के आस-पास 10 अरब से ज्यादा होने का अनुमान है.

जलवायु परिवर्तन के परिवेश में कृषि का स्वरूप
ऑस्ट्रेलियन केंचुआ जैविक खेती के लिए बन गया वरदान
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक भारतीय केंचुए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की बजाय जमीन में घुसकर मिट्टी भुरभुरी करते हैं। ऑस्ट्रेलिया के आइसीबिया की डीडा व भूडीयन मदिनी प्रजाति की मादा केंचुआ हर दो महीने में 60 अंडे देती है। Posted on 21 Dec, 2023 03:41 PM

जैविक खेती के लिए ऑस्ट्रेलियन केंचुआ वरदान साबित हो रहा है। यही वजह है कि बिलासपुर, मुंगेली, जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बस्तर, कांकेर सहित राज्य के कई जिलों में किसान बड़े पैमाने पर वर्मी खाद को खेती में इस्तेमाल और उत्पादन कर रहे हैं। दरअसल, इसके पहले ज्यादा पैदावार लेनेवाले किसानों ने रासायनिक खाद का सहारा लिया। इसके साइड इफेक्ट से जमीन बंजर और पैदावार कमजोर होती गई। इसके बाद उन्हें जैविक खेती

ऑस्ट्रेलियन केंचुआ जैविक खेती के लिए बन गया वरदान
फसल जल प्रबंधन
सिंचाई का प्रभाव जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में परिलक्षित होता है। पानी के अभाव के कारण गरीबी बढ़ती है जिससे अशिक्षा, अज्ञानता, कुपोषण, बेरोजगारी, अस्वच्छता व बीमारियाँ आदि समस्यायें मनुष्य को चारों तरफ से घेर लेती हैं। असिंचित क्षेत्रों की अपेक्षा सिंचित क्षेत्रो में केवल फसलों की उत्पादन क्षमता ही अधिक नहीं होती है बल्कि मानव की क्षमता अधिक होती है। Posted on 11 Dec, 2023 03:51 PM

मानव जाति के आर्थिक विकास में प्राकृतिक परिस्थितियों एवं भौगोलिक विशेषताओं की महत्वपूर्ण भूमिका रहती है। प्रकृति ने मानव के भरण-पोषण हेतु अनेक प्राकृतिक स्रोत भी उपलब्ध करायें हैं, जिसका सदुपयोग कर मानव समाज अधिकाधिक लाभान्वित होने का प्रयत्न करता है। उपलब्ध प्राकृतिक स्रोतों में जल का प्रमुख स्थान है जिनके अभाव में केवल मानव ही नहीं वरन् सामान्यता सम्पूर्ण जीव समाज का अस्तित्व ही संकट में पड़

फसल जल प्रबंधन
तम्बाकू का ज़हरीला सफर
तम्बाकू प्रजाति की उत्पत्ति 8,000 वर्ष पूर्व बताई जाती है जब अमरीकी इण्डियन्स ने इसकी दो प्रजातियों (निकोठियाना रस्टिका और निकोटियाना टेबेकुम) को पूरे अमरीका में फैलाया था। तम्बाकू सोलेनेसी कुल का सदस्य है। निकोटियाना जींस में करीब 60 प्रजातियां हैं Posted on 29 Nov, 2023 03:38 PM

एक हुरोन इण्डियन कबीले में तम्बाकू की उत्पत्ति को लेकर एक रोचक दंतकथा है। इस दंतकथा के मुताबिक, "बहुत समय पहले, धरती बंजर थी और लोग भूख से मर रहे थे। उस समय पवित्र आत्मा ने मानव जाति की रक्षा के लिए एक स्त्री को धरती पर भेजा। धरती पर टहलते हुए जब उसका दायां हाथ मिट्टी को छूता तो वहां आलू पैदा होने लगते थे और जब उसका बायां हाथ मिट्टी को छूता तो मक्का लहलहाने लगती थी। आखिरकार जब दुनिया में भरपूर

तम्बाकू का ज़हरीला सफर
पीड़कनाशी - कितने सुरक्षित (Food and Pesticides)
कृषि के विकासक्रम में, उत्पादन को पर्याप्त बढ़ाने हेतु फसलों की रक्षा के लिए पीड़कनाशी अब एक महत्वपूर्ण साधन बन गए हैं। फसलों को नुकसान पहुंचाने वाले कीट, फफूंद, कृमि इत्यादि को मारने वाली दवाओं के पूरे समूह को पीड़कनाशी (Pesticides) कहा जाता है। भारत में 140 से भी अधिक पीड़कनाशी उपयोग में हैं और उनका इस्तेमाल कुल 90,000 टन प्रति वर्ष के आसपास होता है। Posted on 29 Nov, 2023 01:39 PM

खाद्य पदार्थों के उत्पादन बढ़ाने, उन्हें लम्बे समय तक सुरक्षित रखने, ताज़ा रखने की कोशिश में कई तरह के रसायनों तथा पीड़कनाशियों का इस्तेमाल का इस्तेमाल किया जाता है। ब्रोमोफॉस, डी.डी.टी., क्लोरडेन, मैलाथियोंन, पैराथियॉन जैसे पीड़कनाशियों की लम्बी फेहरिस्त है। ताज़ा अनुसंधान बताते हैं कि इन खाद्य पदार्थों के ज़रिए पीड़कनाशियों का शरीर में प्रवेश खतरनाक है। एक अध्ययन...

कटिबंधीय कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड
उर्वरक आधारित खेती मानवजनित नाइट्रस ऑक्साइड का सबसे बड़ा स्रोत है। सन 1980 से 1994 के बीच विश्व कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड का उत्सर्जन 15 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। उष्णकटिबंधीय देशों में अनुकूल नमी, तापमान तथा काफी मात्रा में नाइट्रोजन युक्त उर्वरक का उपयोग बड़ी मात्रा में नाइट्स ऑक्साइड के उत्सर्जन का कारण होता है। Posted on 25 Nov, 2023 04:09 PM

इस बात के कई सारे प्रमाण मौजूद हैं कि खेती में रासायनिक उर्वरकों के उपयोग से वायुमंडल में बड़ी मात्रा में नाइट्रस ऑक्साइड छोड़ी जा रही है। नाइट्रस ऑक्साइड की चर्चा हमारे सरोकार का विषय इसलिए बनी क्योंकि यह एक ग्रीनहाउस गैस है और मानवजनित ग्रीनहाउस प्रभाव का 6% है। समताप मंडल (स्ट्रेटोस्फियर) की ओजोन परत को क्षीण करने में इसका प्रमुख हाथ है।

कटिबंधीय कृषि में नाइट्रस ऑक्साइड
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