जैविक खेती के लिए ऑस्ट्रेलियन केंचुआ वरदान साबित हो रहा है। यही वजह है कि बिलासपुर, मुंगेली, जांजगीर-चांपा, महासमुंद, बस्तर, कांकेर सहित राज्य के कई जिलों में किसान बड़े पैमाने पर वर्मी खाद को खेती में इस्तेमाल और उत्पादन कर रहे हैं। दरअसल, इसके पहले ज्यादा पैदावार लेनेवाले किसानों ने रासायनिक खाद का सहारा लिया। इसके साइड इफेक्ट से जमीन बंजर और पैदावार कमजोर होती गई। इसके बाद उन्हें जैविक खेती का महत्व समझ आई ।
कृषि वैज्ञानिकों के मुताबिक भारतीय केंचुए वर्मी कंपोस्ट तैयार करने की बजाय जमीन में घुसकर मिट्टी भुरभुरी करते हैं। ऑस्ट्रेलिया के आइसीबिया की डीडा व भूडीयन मदिनी प्रजाति की मादा केंचुआ हर दो महीने में 60 अंडे देती है। एक अंडे से तीन केंचुए बनते हैं। यह केंचुआ अपनी संख्या तो बढ़ाता ही है, अपशिष्ट पदार्थों को खाकर तेजी से चाय पत्ती की तरह खाद बना देता है। कई किसान अब इस प्रजाति के केंचुए बेचने के साथ ही अन्य की बनी खाद का व्यावसायिक उत्पादन करने लगे हैं। इससे उनकी सामाजिक-आर्थिक स्थिति सुधरी है।
कांकेर : पहले कर्ज से मुक्ति, अब आमदनी
कांकेर जिले के जनजाति बहुल गांव पुसवाड़ा के किसान चंद्रशेखर साहू की आर्थिक स्थिति खराब थी। 10वीं पास किसान का परिवार मनरेगा में मजदूरी कर गुजारा कर रहा था। छह एकड़ जमीन थी लेकिन रासायनिक खाद के इस्तेमाल से मिट्टी खराब हो चुकी थी। इसके कारण उत्पादन घट गया और वे कर्ज में डूबने लगे। तभी कहीं से जैविक खाद के बारे में पता चला तो इसके लिए कामकाज शुरू किया। कृषि विभाग से 12 हजार रुपए, अनुदान मिले। इस पैसे से वे पहले कर्ज मुक्त हुए। जैविक खाद से मिट्टी की हालत सुधरी और अच्छी पैदावार होने लगी।
केस- 1:- बिलासपुर : कोटा इलाके के 45 गांव
बिलासपुर जिले के कोटा इलाके के करपिला, नगचुआ, नर्मदा सहित 45 गांवों के किसान सैकड़ों एकड़ में जैविक खेती कर रहे हैं। किसान राजू सिार के मुताबिक देखते ही देखते गांवों में 1500 टैंक बन गए है। कभी उनके इलाके में किसान पैदावार बढ़ाने प्रति हेक्टेयर डेढ़ क्विंटल तक रासायनिक खाद खेतों में डालने लगे थे। इससे जमीन उसर होने लगी थी।
केस- 2 :- मुंगेली: सरकारी मदद से बदलेगी तस्वीर
मुंगेली जिले के लोरमी, मुंगेली इलाके के किसान अपने प्रयास से जैविक खेती कर रहे है। जंगल से लगे इलाके में जैविक खादके लिए कच्चा माल बहुत है। ऐसे में यहां के किसान मानते हैं कि शासन मदद करे तो तस्वीर बदल जाएगी। लोरमी पेंड्री तालाव निवासी त्रिभुवन टोडे जैसे कई किसान जैविक खाद तैयार करने में जुटे हैं। उन्हें शासन से मदद नहीं मिलने का मलाल है। किसानों को केचुआ खाद वनाने के लिए प्रेरित करने वाले टोडे के मुताविक कई किसानों की जमीन जैविक खेती की वजह से वापस उपजाऊ हो गई।
शासन से घोषित बजट का असर दिखेगा
जेएस काकोरिया, कृषि विभाग चिलासपुर के उप संचालक का कहना है कि रासायनिक उर्वरकों के बेतरतीब प्रयोग के चलते खराब हुई मिट्टी की उर्वरा शक्ति बचाने के लिए यही एक रास्ता है। ऑस्ट्रेलियन केंचुओं के सहारे वर्मी कंपोस्ट का प्रोजेक्ट लगाते हैं। कोटा, मस्तूरी, विल्हा सहित कई इलाके के किसानों को इसका लाभ मिला है। इस बार शासन ने जैविक खेती के लिए 10 करोड़ रुपए का बजट रखा है, इसका असर भी दिखाई देगा।" -
लाभकारी है वर्मी कंपोस्ट
आरके बिसेन, प्रोफेसर व वैज्ञानिक, ऐदीलल बैरिस्टर एग्रीकल्चर कॉलेज व रिसर्च सेंटर का कहना है कि रासायनिक खाद की बजाय वर्मी कंपोस्ट काफी लाभकारी होती है। दलहनी-तिलहनी फसलों के लिए 20-20 क्विंटल प्रति एकड़, मसालेदार व फलदार पौधों के लिए 40 क्विंटल प्रति एकड़ मात्रा पर्याप्त है। फलदार पौधों को लगाते समय पांच किलो व गमले के लिए दो किलो वर्गी कंपोस्ट डालना चाहिए।"
1000 रुपए किलो बिकता है केंचुआ
जैविक खाद उत्पादक बच्चन सिंह, का कहना है कि ऑस्ट्रेलियन केंचुआ से बने खाद में उत्पादन अधिक होता है। किसान खाद और केंचुआ खरीदकर ले जाते है। केंचुआ 1000 रुपए किलोग्राम में तो खाद 600 रुपए क्विंटल तक में विकती है। इलाके में जैविक खेती वह रही है, लेकिन डिमांड के मुताबिक सप्लाई नहीं कर पाते।
एक केंचुआ बनाता है दो किलो खाद
कम मात्रा में पानी डालकर तीन इंच तक सूखे पता, साग-सब्जी अपशिष्ट, सड़ा पैरा और गोवर का घोल डालते हैं। फिर पांच किलो केंचुआ डाला जाता है। एक ऑस्ट्रेलियन केंचुआ एक बार में दो किलो खाद बनाता है।
स्रोत - कृषक जगत,भोपाल 20 नवंबर, 2023
/articles/australian-earthworm-became-boon-organic-farming