कृषि

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Meta Description
Agriculture, an important sector of our economy accounts for 14 per cent of the nation’s GDP and about 11 per cent of its exports. India has the second largest arable land base (159.7 million hectares) after US and largest gross irrigated area (88 milion hectares) in the world. Rice, wheat, cotton, oilseeds, jute, tea, sugarcane, milk and potatoes are the major agricultural commodities produced. More importantly, over 60 per cent of the country’s population, comprising several million small farming households, depends on agriculture as a principal income source and land continues to be the main asset for livelihood security. 
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Flowers, trees
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हरियाली को बेरंग करती बिजली
Posted on 27 May, 2016 11:24 AM


बुन्देलखण्ड का गाँव ग्याजीतपुरा सूखे और मौसम से जीतने में कामयाब रहा लेकिन व्यवस्था के हाथों वह मजबूर है।

. मध्य प्रदेश के टीकमगढ़ जिले की मोहनगढ़ तहसील की बहादुरपुरा पंचायत का गाँव ग्याजीतपुरा। पिछले काफी समय से जल संरक्षण के अपने निजी उपायों और पारम्परिक और नगदी फसलों के मिश्रण के जरिए लाभ की खेती के चलते खबरों में बना यह गाँव अब व्यवस्था की मार झेल रहा है। आप प्रकृति से जीत सकते हैं लेकिन सरकारी मशीनरी से आसानी से नहीं।

यह बात ग्याजीतपुरा के निवासियों से ज्यादा भला कौन समझेगा? सूखे को ठेंगा दिखाकर अपनी हरियाली से सूरज को मुँह चिढ़ा रहा यह गाँव बिजली विभाग के हाथों मजबूर हो गया है। महज तीन लाख रुपए के बकाये के चलते न केवल गाँव की बिजली काट दी गई है बल्कि यहाँ का ट्रांसफॉर्मर ही स्थायी रूप से हटा दिया गया है। नतीजा सिंचाई के लिये पानी की कमी और हरी-भरी फसलों के सूखने की शुरुआत।

भारतीय कृषि भविष्य की चुनौतियाँ
Posted on 27 May, 2016 11:13 AM

भारतीय कृषि के सामने जो चुनौतियाँ है, उनका गहराई से विश्लेषण करते हुए लेखक का कहना है कि उनका सामना समेकित नीति/कार्यक्रम से ही किया जा सकता है। किसी एक या दो पहलुओं पर ही जोर देने से लक्ष्य की पूर्ति अधूरी रह सकती है।

कृषि भारतीय अर्थव्यवस्था का मुख्य आधार रहा है और अब भी है। इसे सिर्फ सकल घरेलू उत्पाद में कृषि क्षेत्र के योगदान के रूप में ही नहीं देखा जाना चाहिए बल्कि कृषि पर बड़ी संख्या में लोगों की निर्भरता और औद्योगिकीकरण में कृषि क्षेत्र की भूमिका के रूप में भी देखा जाना चाहिए। देश में कई महत्त्वपूर्ण उद्योग कृषि उत्पाद (उपज) पर निर्भर हैं जैसे कि वस्त्र उद्योग, चीनी उद्योग या फिर लघु व ग्रामीण उद्योग, जिनके अंतर्गत तेल मिलें, दाल मिलें, आटा मिलें और बेकरी आदि आते हैं।

आजादी के बाद से भारतीय कृषि ने काफी बढ़िया काम किया है। वर्ष 1950-51 में खाद्यान्न उत्पादन 5.083 करोड़ टन था जो 1990-91 में बढ़कर 17.6 करोड़ टन हो गया। इस प्रकार खाद्यान्न उत्पादन में लगभग 350 प्रतिशत की वृद्धि दर्ज की गयी। तिलहन, कपास और गन्ने के उत्पादन में भी इसी प्रकार की वृद्धि दर्ज की गई है।
कृषि विकास के लिये उपयुक्त टेक्नोलॉजी
Posted on 27 May, 2016 11:00 AM

कम उपजाऊ तथा बारानी इलाकों में कृषि विकास, गाँवों में रोजगार बढ़ाने और गरीबी दूर करने दोनों दृष्टियों से आवश्यक है। यद्यपि यह एक चुनौती है परन्तु हमारे वैज्ञानिक इसका सफलतापूर्वक मुकाबला कर सकते हैं, क्योंकि कृषि अनुसंधान प्रणाली ने काफी अच्छे परिणाम दिए हैं। लेखक का कहना है कि बेहतर यही होगा कि हमारे कृषि अर्थशास्त्री तथा वैज्ञानिक उपयुक्त कृषि टेक्नोलॉजी विकसित करने के लिये मिलकर काम करें।

भारत में पिछले ढाई दशकों में हरित क्रांति तथा अनाज के मामले में आत्म निर्भरता की प्राप्ति में देश में विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी की सफलता की कहानी छिपी हुई है। वास्तव में कृषि उत्पादन के क्षेत्र में अब तक की उपलब्धियाँ हमारे कृषि अनुसंधान प्रणाली की पूर्ण क्षमताओं को प्रकट नहीं करतीं। पिछले वर्षों, विशेषकर गत डेढ़ दशक के दौरान भिन्न-भिन्न जलवायु तथा सामाजिक-आर्थिक स्थितियों में भारतीय कृषि की आवश्यकताएँ पूरी करने में इस प्रणाली की क्षमताओं में बहुत वृद्धि हुई है। इतनी ही महत्त्वपूर्ण बात यह है कि भारत में यहाँ तक कि दूर-दराज के इलाकों में छोटे-बड़े किसानों को विस्तार कार्यों और अनुभव के जरिए नई तथा बेहतर कृषि तकनीकों के इस्तेमाल और विज्ञान एवं टेक्नोलॉजी के लाभों की अच्छी जानकारी हो गई है। कृषि में काम आने वाली आधुनिक वस्तुओं की उनकी मांग तथा नए तरीकों को जानने की इच्छा बढ़ती जा रही है, जिसके फलस्वरूप गाँवों में विज्ञान तथा टेक्नोलॉजी पर आधारित जो कृषि आज हमें दिखाई दे रही है, वह 25 वर्ष पहले की खेती-बाड़ी से बहुत भिन्न है। हमारी कृषि अनुसंधान प्रणाली तथा उसके प्रति किसानों की रचनात्मक प्रतिक्रिया इन दोनों बातों को देख कर लगता है, कि निकट भविष्य में कृषि क्षेत्र में तेजी से प्रगति होगी।
कृषि और आठवीं पंचवर्षीय योजना
Posted on 26 May, 2016 04:11 PM

लेखक का कहना है कि आठवीं पंचवर्षीय योजना का लक्ष्य खेती की पैदावार सम्बंधी प्रौद्योगिकी के लाभों को स्थायी व सुदृढ़ करना है ताकि ने केवल बढ़ती हुई घरेलू मांगों को पूरा किया जा सके अपितु निर्यात के लिये अतिरिक्त पैदावार की जा सके। काम कठिन है, परन्तु वर्षा सिंचित इलाकों के विकास, सिंचाई-सुविधाओं के कुशल उपयोग और आर्थिक दृष्टि से व्यावहारिक खेती की उन्नत तकनीकों की निरंतर सुलभता से हम अपने लक्ष्यों की प्राप्ति कर सकते हैं।

महात्मा गाँधी ने हमें चिंतन के लिये एक आर्थिक विचार दियाः “मेरे हिसाब से भारत की ही नहीं बल्कि विश्व की आर्थिक संरचना ऐसी होनी चाहिए कि इसमें रहने वाले किसी भी व्यक्ति को रोटी और कपड़े की परेशानी न हो। दूसरे शब्दों में प्रत्येक को पर्याप्त रोजगार मिले ताकि उसकी गुजर-बसर होती रहे और समूचे विश्व में यह आदर्श तभी स्थापित हो सकता है। जब जीवन की बुनियादी जरूरतों के उत्पादन के साधन जनसाधारण के नियंत्रण में हों। वे सब लोगों को इस प्रकार उपलब्ध होने चाहिए, जैसे कि परमात्मा से हमें जल और वायु मिलते हैं या मिलने चाहिए...”। स्वतंत्रता प्राप्ति के पश्चात आर्थिक विकास की एक नियोजित प्रक्रिया शुरू की गई। कृषि के बारे में पंडित नेहरू ने कहा था कि ‘‘हरेक चीज इंतजार कर सकती है, खेती नहीं।”

भारतीय कृषि अधिकांशतया मौसम की स्थितियों पर, प्रमुख तौर पर वर्षा और समय पर व अधिकतम क्षेत्र पर वर्षा होने पर निर्भर करती है।
जल-संकट के गुनहगार
Posted on 17 May, 2016 10:33 AM
किसानों द्वारा भूजल के अधिक दोहन पर अंकुश लगाने के लिये प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह इसका मूल्य तय करना चाहते हैं। काफी समय से विश्व बैंक इसके लिये दबाव डाल रहा है। योजना आयोग ने तो कीमत निर्धारित करने का फार्मूला भी तैयार कर लिया है। जाहिर है कि किसानों से फसल में इस्तेमाल किए जाने वाले भूजल की कीमत वसूलने की तैयारी चल रही है। भूजल पर उपकर लगाने के लिये खेती को हमेशा से एक अच्छा आधार समझा जाता
बायोगैस: ऊर्जा का उपयोगी स्रोत (Biogas: useful source of energy)
Posted on 16 May, 2016 09:16 AM
लेखक का कहना है कि बायोगैस ग्रामीण जनता के लिये एक वरदान है, एक आदर्श खाना पकाने के ईंधन के अलावा भूमि को उपजाऊ बनाने और फसलों के उत्पादन में वृद्धि के लिये बायोगैस संयंत्र उत्तम खाद उपलब्ध कराते हैं। लेखक महसूस करता है कि इसके कई आर्थिक-सामाजिक लाभों को देखते हुए सरकार को बायोगैस इकाइयों की स्थापना को प्रोत्साहन देने की अपनी नीति जारी रखनी चाहिए।

1976 में डीजल तेल की आपूर्ति में कमी से उत्पन्न परिस्थिति के कारण हरियाणा राज्य के किसानों ने बायोगैस और तेल के मिश्रण से चलने वाले इंजन के निर्माण का एक विकल्प प्रस्तुत किया।

बायोगैस खत्म न होने वाला ऊर्जा का स्रोत है, क्योंकि इसका उत्पादन व्यापक रूप से उपलब्ध गोबर से होता है, उत्पादन इकाइयों का निर्माण, संचालन और रख-रखाव आसान होता है तथा राष्ट्रीय और उपभोक्ता स्तर पर इससे कई फायदे मिलते हैं कूड़ा-करकट से बायोगैस बनाने का विज्ञान साधारण नहीं है क्योंकि बहुत छोटे जीव एक-साथ मिलकर मीथेन गैस का उत्पादन करते हैं जो बायोगैस का ज्वलनशील तत्व है। मीथेन का उत्पादन करने वाले जीवाणु अपनी ही किस्म के जीवाणु हैं, जिन्हें आर्केबैक्टीरिया के नाम से जाना जाता है और अब इन्हें जीव जगत के वर्गीकरण में अलग वर्ग में रखा गया है। इस विज्ञान में अभी कई ऐसी अनजानी बातें हैं जिन पर विकसित और विकासशील देशों में वैज्ञानिक और प्रौद्योगिकी विशेषज्ञ कार्य कर रहे हैं। लेकिन मनुष्य ने दलदली भूमि में बायोगैस के उत्पादन की प्राकृतिक विधि की नकल करना सीख लिया है और इस विज्ञान की पूरी जानकारी मिलने से बहुत पहले बायोगैस उत्पादन इकाइयों का विकास करना शुरू कर दिया।
गढ़वाल-हिमालय संसाधन; उपयोगिता, प्रतिरूप एवं विकास
Posted on 14 May, 2016 04:23 PM

वनों एवं फसलों पर आधारित कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास निश्चत रूप से स्थानीय विकास में सहायक सिद्ध होगा। जनसंख्या प्रतिनिधित्व एवं आवश्यकता नीति का निर्धारण वास्तविक रूप से आर्थिक विकास में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

‘जीवन निर्वाह कृषि’ हिमालयवासियों की आजीविका का मुख्य साधन है। सन 1991 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या की लगभग 72 प्रतिशत कार्मिक क्षमता मुख्य रूप से प्राथमिक व्यवसाय एवं उससे सम्बन्धित क्रियाकलापों में सन्निहित है। यद्यपि उद्यानिकी, कृषि व्यवसाय के समानान्तर अग्रसित है, तथापि कुल कृषि योग्य भूमि के अनुपात में यह व्यवसाय अत्यधिक कम है तथा प्राप्त उत्पाद घरेलू उपयोग तक ही सीमित है, परिणामस्वरूप इसका स्थान क्षेत्र के आर्थिक जगत में नगण्य है। मानव संसाधन के रूप में पुरुष वर्ग, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये सेवा या पुलिस में समर्पित है।
विज्ञान और कृषि का औद्योगिक रूप
Posted on 14 May, 2016 03:27 PM

देश में गन्ने पर आधारित चीनी उद्योग काफी विकसित दशा में है 1989-90 में 100 लाख टन से अधिक चीनी का उत्पादन करके भारत चीनी उत्पादन में विश्व में प्रथम स्थान पर आ गया है। गन्ने की वैज्ञानिक खेती की सफलता से न केवल चीनी उद्योग बल्कि गुड़ व खांडसारी उद्योग का तेजी से विकास हुआ है। इस उद्योग में लगभग 300 टन गुड़ तथा खांडसारी का उत्पादन होता है। इस उद्योग में लगभग 31 लाख लोगों को मौसमी रोजगार मिला हुआ है।

विज्ञान ही सम्भवतया मानव जाति का सबसे बड़ा पुरुषार्थ है और कृषि कार्य प्राकृतिक पद्धतियों के खिलाफ मानव की महान चुनौती। विज्ञान ने मनुष्य को इस चुनौती का हल खोजने की शक्ति एवं सामर्थ्य दे दी है। विज्ञान के जरिए भारतीय कृषि के परम्परागत और भाग्यवादी स्वरूप के स्थान पर नया व्यावसायिक और औद्योगिक स्वरूप विकसित करने में काफी हद तक सफलता मिली है। कृषि प्रधान भारत ने दुनिया के प्रथम दस औद्योगिक देशों में स्थान बना लिया है।

उद्योगीकरण


कहना न होगा कि कृषि और उद्योग एक दूसरे के लिये सर्वोत्तम योगदान कर सकते हैं। विकास प्रक्रिया में यह आवश्यक है कि कृषि-क्षेत्र बड़ी मात्रा में उद्योगों के लिये संसाधनों की आपूर्ति करे। अनेक विकसित देशों का अनुभव बताता है कि समृद्धि ने अधिक सीमा तक औद्योगीकरण मार्ग को सरल व तीव्रगामी बनाया है।
बदलती कृषि पद्धतियाँ एवं पर्यावरण पर उनका प्रभाव
Posted on 14 May, 2016 11:27 AM

सबसे बड़ी बात तो यह है कि इस आधुनिक कृषि को हम पूर्णतया नकार भी नहीं सकते, कारण कि अपार बढ़

पर्वतीय क्षेत्रों में प्रवास की समस्या: प्रभाव एवं निराकरण
Posted on 14 May, 2016 11:16 AM

उत्तराखंड हिमालय में रोजगार का प्रमुख साधन कृषि है किन्तु कृषि की न्यून उत्पादकता एवं औद्

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