डा. वी.पी. सती

डा. वी.पी. सती
गढ़वाल-हिमालय संसाधन; उपयोगिता, प्रतिरूप एवं विकास
Posted on 14 May, 2016 04:23 PM

वनों एवं फसलों पर आधारित कुटीर एवं लघु उद्योगों का विकास निश्चत रूप से स्थानीय विकास में सहायक सिद्ध होगा। जनसंख्या प्रतिनिधित्व एवं आवश्यकता नीति का निर्धारण वास्तविक रूप से आर्थिक विकास में निर्णायक भूमिका निभा सकती है।

‘जीवन निर्वाह कृषि’ हिमालयवासियों की आजीविका का मुख्य साधन है। सन 1991 की जनगणना के अनुसार कुल जनसंख्या की लगभग 72 प्रतिशत कार्मिक क्षमता मुख्य रूप से प्राथमिक व्यवसाय एवं उससे सम्बन्धित क्रियाकलापों में सन्निहित है। यद्यपि उद्यानिकी, कृषि व्यवसाय के समानान्तर अग्रसित है, तथापि कुल कृषि योग्य भूमि के अनुपात में यह व्यवसाय अत्यधिक कम है तथा प्राप्त उत्पाद घरेलू उपयोग तक ही सीमित है, परिणामस्वरूप इसका स्थान क्षेत्र के आर्थिक जगत में नगण्य है। मानव संसाधन के रूप में पुरुष वर्ग, राष्ट्रीय सुरक्षा के लिये सेवा या पुलिस में समर्पित है।
पर्यावरण संरक्षा और आर्थिक विकास
Posted on 04 Apr, 2016 03:19 PM

आर्थिक विकास एक ओर तो जीवनस्तर में वृद्धि, करने के लिये कटिबद
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