झीलें, तालाब और आर्द्रभूमि

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Innovative solutions to clean urban water bodies, Floating islands (Photo Credit: Priyanshu Kamath)
April 28, 2024 जानिए क्या कारण है कि चंपावत जिले की एकमात्र झील श्यामलाताल आज अपने अस्तित्व को तलाश रही है और तकरीबन 7 मीटर गहरी झील में अब सिर्फ एक से डेढ़ मीटर पानी रह गया है।
चंपावत की श्यामलाताल झील, प्रतीकात्मक
October 28, 2023 While Delhi NCR is undergoing rapid urbanisation, what is the state of the wetlands in the region? A study finds out.
Okhla Bird Sanctuary, Noida (Image Source: Awankanch via Wikimedia Commons)
September 21, 2023 PESA Act unleashed: The Mahila Sangh's ongoing governance transformation
Women from the Mahila Gram Sangh (Image: FES)
May 17, 2023 Given Hamirsar's significance, the Jal Shakti Ministry had designated it as one of India's 75 water heritage monuments
Need to resuscitate the traditional water system and expand its catchment (Image: Raman Patel, Wikimedia Commons, CC BY 3.0)
झील में डूबा अतीत, भविष्य अधर में
Posted on 02 May, 2019 11:33 AM

यूं तो नदियों के किनारे मानव सभ्यता जन्मी है, लेकिन टिहरी झील एक पूरी मानव सभ्यता को डुबो कर अस्तित्व में आई है। पानी के किनारे बसे लोगों को जीने के लिए, आजीविका के लिए, कहीं और जाने की जरूरत नहीं होती। लेकिन टिहरी झील के किनारे बसे सैकड़ों गांव के लोग कहते हैं कि हमें तो काला पानी की सजा हो गई है। उनके आजीविका के साधन नष्ट हो गए, खेत डूब गए, जंगल उजड़ गए। पशुओं को चारा तक उपलब्ध कराना मुश्किल है

टिहरी झील
उम्मीदों के दीये
Posted on 09 Jun, 2018 05:37 PM


कर्नाटक के लगभग 75 प्रतिशत हिस्सों में अक्सर अकाल आते हैं। इसलिये वहाँ सिंचाई के संसाधनों की महत्ता दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। कर्नाटक के इतिहास में तालाबों के निर्माण से सम्बन्धित अनेक प्रमाण मिलते हैं। इनमें से आज भी काम आने वाले कुछ तालाब तो 15-16 शताब्दी पुराने हैं।

दक्षिण कर्नाटक का एक तालाब
तालाब - समझने से ही बात बनेगी
Posted on 19 Feb, 2017 12:00 PM


भारत के लगभग हर गाँव हर बसाहट के आसपास तालाब मौजूद हैं। यहाँ तक कि अनेक विलुप्त तालाब भी समाज की स्मृति में जिन्दा हैं। उनके नाम गाँव, मोहल्लों के नामों तथा उपनामों में रचे-बसे हैं। आज भी भारत में सैकड़ों साल पुराने अनेक तालाब मौजूद हैं। अनुपम मिश्र की किताब ‘आज भी खरे हैं तालाब’ तथा सेंटर फॉर साईंस एंड एनवायरनमेंट, नई दिल्ली की किताब ‘बूँदों की संस्कृति’ में देश के विभिन्न भागों में मौजूद परम्परागत तालाबों का विवरण उपलब्ध है।

हमारे आसपास दो प्रकार के तालाब अस्तित्व में हैं। परम्परागत और आधुनिक तालाब। उन दोंनों प्रकार के तालाबों के अन्तर को समझने का मतलब है समस्याओं को बेहतर तरीके से स्थायी तौर पर सुलझाना।

तालाब
भीमकुण्ड की आत्मकथा
Posted on 06 Aug, 2015 09:57 AM


मैं, भीमकुण्ड अर्थात पानी का विशालकाय कुण्ड हूँ। लोेक कथाएँ बताती हैं कि मेरे जन्म का कारण, धार के महाप्रतापी परमार राजा भोज की जानलेवा बीमारी थी। इस बीमारी से निजात पाने के लिये किसी ऋषि ने उन्हें 365 नदी-नालों की मदद से बनवाए जलाशय में स्नान करने की सलाह दी थी। इसी कारण, राजा भोज (1010 से 1055) ने भोजपुर ग्राम में मेरा निर्माण कराया।

Bhopal tal satellite image
पानी से बदलती कहानी
Posted on 02 Aug, 2015 04:42 PM

अपना तालाब अभियान की पहल पर ‘इत सूखत जल सोत सब, बूँद चली पाताल। पानी मोले आबरू, उठो बुन्देली लाल’ का नारा लगाते हुए लगभग 4 हजार लोग फावड़ों और कुदालों के साथ खुद ही तालाब की सफाई के लिये कूद पड़े। लोगों ने महज दो घंटे में ही तालाब की अच्छी खासी खुदाई कर डाली। पूरे 46 दिन तक काम चला और 21 हजार लोगों ने मिलकर सैकड़ों एकड़ में फैले जय सागर तालाब को नया जीवन दे दिया। खर्च आया महज 35 हजार रुपए। सरकारी आकलन से पता चला कि लोगों ने करीब 80 लाख रुपए का काम कर डाला था।

अच्छे-अच्छे काम करते जाना। राजा ने कूड़न किसान से कहा था। कूड़न अपने भाइयों के साथ रोज खेतों पर काम करने जाता दोपहर को कूड़न की बेटी आती, खाना लेकर। एक दिन घर वापस जाते समय एक नुकीले पत्थर से उसे ठोकर लग गई। मारे गुस्से के उसने दरांती से पत्थर उखाड़ने की कोशिश की। लेकिन यह क्या? उसकी दरांती तो सोने में बदल गई। पत्थर उठाकर वह भागी-भागी खेत पर आती है और एक साँस में पूरी बात बताती है। एक पल को उनकी आँखे चमक उठती हैं, बेटी के हाथ पारस पत्थर लगा है। लेकिन चमक ज्यादा देर नहीं टिक पाती। लगता है देरसबेर कोई-न-कोई राजा को बता ही देगा। तो क्यों न खुद राजा के पास चला जाए। राजा न पारस लेता है न सोना। बस कहता है,‘इससे अच्छे-अच्छे काम करते जाना। तालाब बनाते जाना।’

Apna talab abhiyan
વોટર મેનેજમેન્ટ - વર્તમાન સમયની અનિવાર્ય આવશ્યકતા
Posted on 13 Dec, 2014 07:30 AM વર્તમાન સમયમાં પૃથ્વી પર ૧૪૦ કરોડ ઘનમીટર પાણી છે.
પાણીનું પ્રદૂષણ અટકાવા લોકજાગૃતિ એ જ ખરો ઉપાય
Posted on 12 Dec, 2014 06:30 AM પૃથ્વી પર જીવનનો ઉદ્ભવ જળમાંથી થયો, હકીકતમાં જળ એ જીવનની પહેલી શરત છે, આપણા દેશ માટે ઘણું જ મહત્વપૂર્ણ અને સંકટગ્રસ્ત સંસાધન છે. વરસાદની મોસમી પ્રક્રિયાએ જળ સંકટને વધારે ઘેરું બનાવ્યું છે. પાણીના ઉપયોગની યાદી ઘણી લાંબી છે, પાણીની પ્રાપ્તિનો મૂળ સ્ત્રોત પૃથ્વી પર વૃષ્ટિ છે. ચાલુ સાલે કુદરતે મહેર કરી વરસાદ રૂપી કાચુ સોનું વર્ષે છે, પરંતુ આપ જાણો છો તેમ દર વર્ષે એક સરખો વરસાદ થતો નથી.
जोहड़ आंदोलन ने उबारा जल संकट से (अलवर जिले के विशेष संदर्भ में)
Posted on 17 Aug, 2014 11:27 PM जोहड़ का उपयोग प्राचीनकाल से होता आया है लेकिन मध्यकाल आते-आते लोगों
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