आज भी जीवनदाता हैं तालाब

pond
pond

मानसून के दौरान चार महीने होने वाली बारिश का पानी ताल-तलैया जैसे स्रोतों में जमा होता है। इससे भूजल स्तर दुरुस्त रहता है। जमीन की नमी बरकरार रहती है। धरती के बढ़ते तापमान पर नियंत्रण रहता है। तालाब स्थानीय समाज का सामाजिक, सांस्कृतिक केन्द्र होते हैं। लोगों के जुटान से सामुदायिकता पुष्पित-पल्लवित होती है। लोगों के रोजगार के भी ये बड़ें स्रोत होते हैं।

कहां गए जीवनदाता

1947 में देश में कुल चौबीस लाख तालाब थे। तब देश की आबादी आज की आबादी की चौथाई थी। आज के दौर पर बात करें तो वैसे तो देश में तालाब जैसे प्राकृतिक जल स्रोतों का कोई समग्र आंकड़ा मौजूद नहीं है लेकिन 2000-01 की गिनती के अनुसार देश में तालाबों, बावड़ियों और पोखरों की संख्या 5.5 लाख थी। हालांकि इसमें से 15 फीसद बेकार पड़े थे, लेकिन 4 लाख 70 हजार जलाशयों का इस्तेमाल किसी न किसी रूप में हो रहा था।

अजब तथ्य

1944 में गठित अकाल जांच आयोग ने अपनी सिफारिश में कहा था कि आने वाले वर्षों में पेयजल की बड़ी समस्या खड़ी हो सकती है। इस संकट से जूझने के लिए तालाब ही कारगर होंगे। जहां इनकी बेकद्री ज्यादा होगी, वहां जल समस्या हाहाकार रूप लेगी। आज बुंदेलखंड, तेलंगाना और कालाहांड़ी जैसे क्षेत्र पानी के संकट के पर्याय के रूप में जाने जाते हैं, कुछ दशक पहले अपने प्रचुर और लबालब तालाबों के रूप में इनकी पहचान थी।

खात्मे की वजह

समाज और सरकार समान रूप से जिम्मेदार हैं। कुछ मामलों में इन्हें गैर जरूरी मानते हुए इनकी जमीन का दूसरे मदों में इस्तेमाल किया जा रहा है। दरअसल तालाबों पर अवैध कब्जा इसलिए भी आसान है क्योंकि देश भर के तालाबों की जिम्मेदारी अलग-अलग महकमों के पास है। कोई एक स्वतंत्र महकमा अकेले इनके रखरखाव-देखभाल के लिए जिम्मेदारी नहीं है।

Path Alias

/articles/aja-bhai-jaivanadaataa-haain-taalaaba

×